ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
जानकारी काल
वर्ष-24 अंक-06 अक्टूबर - 2023, पृष्ठ 54 मूल्य 2-50
सम्पादकीय
सभ्यता और संस्कृति के बीच के अंतर :-सभ्यता का रूप बाह्य है, जबकि संस्कृति का रूप आंतरिक है। संस्कृति का संबंध आत्मा से है और सभ्यता का संबंध शरीर से है। सभ्यता में फल प्राप्ति का उद्देश्य होता है, पर संस्कृति में क्रिया ही साध्य होता है। सभ्यता को आसानी से समझा जा सकता है, लेकिन संस्कृति को हृदयंगम करना कठिन है।सभ्यता मानव की बाहरी अभिरूचि का विकास एवं अभिव्यक्ति है। इसके विपरीत संस्कृति मानव की आन्तरिक अभिरूचियों का विकास एवं अभिव्यक्ति मानी जाती है।संस्कृति मनुष्य के आत्मिक, पारिवारिक और सामाजिक विकास में सहायक होती है। सभ्यता जहां व्यक्ति को भोगवादी बनाती है, वहीं संस्कृति उसे संयम सिखाती है। सभ्यता अपने लिए जीना, तो संस्कृति दूसरों के लिए भी सिखाती है। इसलिए विश्व की सभ्यता एक, पर देशों की संस्कृति भिन्न-भिन्न होगी। 1. सभ्यता वह वस्तु है जो हमारे पास है, जबकि संस्कृति वह गुण है जो हममें व्याप्त है।संस्कृति मनुष्य के आत्मिक, पारिवारिक और सामाजिक विकास में सहायक होती है। सभ्यता जहां व्यक्ति को भोगवादी बनाती है, वहीं संस्कृति उसे संयम सिखाती है। सभ्यता अपने लिए जीना, तो संस्कृति दूसरों के लिए भी सिखाती है। इसलिए विश्व की सभ्यता एक, पर देशों की संस्कृति भिन्न-भिन्न होगी।संस्कृति और सभ्यता व्यक्तियों और समाज की भलाई में योगदान करती है : पहचान और विरासत: संस्कृति और सभ्यता किसी समाज की पहचान और विरासत को परिभाषित करने में मदद करती है। वे दुनिया में किसी के अतीत और स्थान से जुड़ाव और संबंध की भावना प्रदान करते हैं।संस्कृति के प्रमुख तत्व प्रतीक, भाषा, मानदंड, मूल्य और कलाकृतियाँ हैं। भाषा प्रभावी सामाजिक संपर्क को संभव बनाती है और यह प्रभावित करती है कि लोग अवधारणाओं और वस्तुओं की कल्पना कैसे करते हैं।सभ्यता एक जटिल संस्कृति है जिसमें बड़ी संख्या में मनुष्य कई सामान्य तत्वों को साझा करते हैं। इतिहासकारों ने सभ्यताओं की बुनियादी विशेषताओं की पहचान की है। सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से छह हैं: शहर, सरकार, धर्म, सामाजिक संरचना, लेखन और कला।संस्कृति के बिना मनुष्य ही नहीं रहेंगे। संस्कृति परम्पराओं से, विश्वासों से, जीवन की शैली से, आध्यात्मिक पक्ष से, भौतिक पक्ष से निरन्तर जुड़ी है। यह हमें जीवन का अर्थ, जीवन जीने का तरीका सिखाती है। मानव ही संस्कृति का निर्माता है और साथ ही संस्कृति मानव को मानव बनाती है।भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृतियों में से एक है। सम्मान, मानवता, प्रेम, परोपकार, भाईचारा, भलाई, धर्म आदि हमारी संस्कृति की मुख्य विशेषताएं है। आज हर देश आधुनिकता की दौड़ अपनी संस्कृतियों को छोड़ रहा है, लेकिन हम भारतीयो ने आज भी अपनी संस्कृति, परंपरा और मूल्यों को नहीं छोड़ा है।भारतीय संस्कृति का उदात्त दृष्टिकोण ही उसे विश्वगुरुता प्रदान करता है, वह अपनी श्रेष्ठ आध्यात्मिक, सांस्कृतिक विरासत को अंगीकृत किये हुए हमारा न केवल मार्ग दर्शन करती है बल्कि हमें हमारे "परमवैभव" के लक्ष्य की ओर प्रेरित करती है।
भारतीय परम्परागत खेल : बाल विकास का सशक्त माध्यम
अवनीश भटनागर
उत्साह, जोश, मस्ती तथा रोमांच से भरपूर खेलकूद बच्चों को तो क्या, बड़ों को भी पसन्द हैं। दुनियाँ के सभी देशों में खेलों का एक विस्तृत इतिहास रहा है। भारत में तो प्रत्येक अवसर विशेष के लिए, प्रत्येक आयु वर्ग के लिए तथा यहाँ तक कि विभिन्न पर्व-त्यौहारों के लिए खेलों की परम्परा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। केरल में ओणम के अवसर नौकायन की स्पर्धा से लेकर ओडिशा की बाली जात्रा, और उत्तर भारत में कुश्ती, कबड्डी, खो-खो और तैराकी आदि के प्रमुख खेल हैं जो बड़ी आयु के लोगों में भी लोकप्रिय हैं। भारत की सभी प्रमुख भाषाओं के साहित्य में, पौराणिक आख्यानों में, लोक कथाओं में भी खेलों का उल्लेख मिलना है। सूरदास के पदों में ग्वाल बालों के साथ श्रीकृष्ण के गेंद खेलने, आपस में लड़ने-झगड़ने, रुठने-मनाने का वर्णन आता और गेंद के यमुना के जल में चले जाने पर कालिय नाग के मानमर्दन की कथा हम सबको ज्ञात है। मुंशी प्रेमचन्द की प्रसिद्ध कथा ‘गुल्ली-डण्डा’ को बाल-युवा मनोविज्ञान का दस्तावेज कहा जा सकता है।
आज के व्यस्तता भरे जीवन में, समय तथा स्थान की उपलब्धता के अभाव में भी खेलों के प्रति आकर्षण कम नहीं हो सका है, उसका स्वरूप भले ही बदल गया हो।
वर्ष 2020 कोरोना की वैश्विक आपदा से अलग दो सकारात्मक बातों के लिए भी स्मरण रखे जाने योग्य है। पहली है, राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा तथा दूसरी, भारत के माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा Vocal for Local का आह्वान। भारत की शिक्षा नीति और अर्थनीति के ये परिवर्तन कालक्रम से समाजनीति और राजनीति में भी व्यापक परिवर्तन के कारक बनेंगे, ऐसी आशा की जा रही है। इन दोनों नीतियों के मूल में भारत तथा भारतीयता के गौरव का भाव अन्तर्निहित है। जहाँ एक ओर राष्ट्रीय शिक्षा नीति ‘भारत केन्द्रित शिक्षा’ का उल्लेख प्रारम्भ में ही करती है, आगे के अध्यायों में पाठ्यक्रम में कला के समावेश (Art Integration ) तथा गतिविधि आधारित अनुभवजन्य अधिगम (Activity based experiential learning) की बात कहती है, वहीं दूसरी ओर, अर्थनीति तो पूरी तरह स्थानीय उत्पादन, बाजार को बढ़ावा देने तथा विदेशी बाजारों पर भारतीय समाज की निर्भरता को कम करने के विचार पर ही आधारित है।
उपर्युक्त दोनों नीतियों के इस ‘भारत तथा भारतीयता’ के मूल विचार का सह-सम्बन्ध यदि भारतीय खेलों की सुदीर्घ परम्परा के साथ जोड़ा जाए तो शिक्षा के एक सशक्त माध्यम के रूप में परम्परागत भारतीय खेलों को स्थान दिया जा सकता है।
परम्परागत भारतीय खेलों की कुछ मूलभूत विशेषताओं को निम्नांकित प्रकार से चिह्नांकित किया जा सकता है :
अधिकांश परम्परागत भारतीय खेल शून्य निवेश (Zero investment) प्रकार के हैं अर्थात या तो उनमें कोई साधन-संसाधन-उपकरण (equipment) की आवश्यकता होती ही नहीं अथवा यदि होती भी है तो स्थानीय आधार पर उपलब्ध सामग्री से निर्मित। भारत जैसे विशाल देश में जहाँ कभी भी सभी विद्यालय और अभिभावक बच्चों की खेल सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए धन व्यय नहीं कर सकते, अधिकांश भारतीय खेल सर्वसुलभ हो जाते हैं। इन्हें within the reach of common man कहा जा सकता है।
खेलों के विषय में कुछ बातें सभी शिक्षाविद् तथा विचारवान कहते हैं, जैसे खेलों से शारीरिक विकास (गति, लोच, संतुलन आदि) होता है, टीम भावना पनपती है, खेल भावना के कारण हार या जीत की स्थिति में समभाव (Sportsman spirit) का विकास होता है, शरीर सबल, सुदृढ़, संतुलित, निरोगी बनता है, स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है, आदि-आदि। सभी भारतीय पारम्परिक खेल इन सभी मापदण्डों पर खरे उतरते हैं। इनके अतिरिक्त भारतीय खेल शैक्षिक गतिविधियों के रूप में भी उपयोगी हैं जिनसे पाठ्यवस्तु को रोचक बनाया जा सकता है।
शारीरिक विकास तथा मनोरंजन के साथ-साथ बौद्धिक विकास, एकाग्रता वृद्धि, तर्कक्षमता विकास आदि की दृष्टि से भी अनेक भारतीय खेल उपयोगी हैं। शारीरिक शिक्षा के 5S सिद्धान – गति (Speed), बल (Strength), क्षमता (Stamina), कुशलता (Skill) तथा रणनीति (Strategy) के पाँचों गुणों को किसी भी परम्परागत भारतीय खेल में देखा जा सकता है।
अधिकांश भारतीय खेलों में कोई वाक्य, गीत की पंक्ति या संवाद जुड़ा रहता है। बहुत बार वह निरर्थक सा भी जान पड़ता है परन्तु यदि उसे ध्यान से सुना जाए तो उसमें से कोई प्राचीन संदर्भ, कुछ सिखाने का उद्देश्य, लयबद्धता, उत्साह सृजन आदि का स्वर सुनाई देता है। बुन्देलखण्ड और बृज के बच्चे खेलते समय ‘ओना मासी धम’ बोलते हैं जोकि ‘ॐ नमः सिद्धम्’ का बोलचाल में बिगड़ गया रूप ही है।
पहले से चले आ रहे परम्परागत खेलों के कोई कठोर, मान्यता प्राप्त नियम नहीं होने से स्थानीय आवश्यकता, साधनों की उपलब्धता, प्रतिभागियों की संख्या कम या अधिक होने पर तत्काल स्वरूप परिवर्तन किया जा सकता है। इससे बालकों में रचनात्मकता तथा तर्कक्षमता का विकास होता है। सब प्रतिभागी आपस में बातचीत और कभी कभी बहस कर के भी खेल के नियमों में बदलाव कर लेते हैं। विचारों में प्रारंभ में विरोध होने पर भी अंततः मिल-जुल कर लिए गए सामूहिक निर्णय पर सबकी सहमति और सबको पालन करना – यही तो लोकतंत्र का आधार है जो इन खेलों की सहायता से स्वत: विकसित होता है।
भारत विशाल देश हैं जिसमें क्षेत्रों-प्रान्तों में भाषा-भूषा-भोजन आदि में पर्याप्त विविधता देखी जाती है किन्तु एक राष्ट्र और संस्कृति के रूप में भारत में एकात्म भाव है, है यह बात भारत के परम्परागत खेलों में भी दिखाई देती है। भाषा-भेद के साथ अलग-अलग स्थानों पर उसी खेल का नाम अलग पाया जाता है। यह संस्कृति को व्यवहार में लाने का सशक्त माध्यम हैं।
परम्परागत भारतीय खेलों की एक तालिका उस टिप्पणी के साथ प्रस्तुत है, जिसमें खेलों का वर्गीकरण मैदान के खेल (outdoor) तथा कमरे के अंदर के खेल (indoor) के अतिरिक्त दो आधारों पर किया गया है :
(क) प्रान्त / क्षेत्र के आधार पर – संभावना है कि इनमें कुछ खेल ऐसे हो सकते हैं जिन्हें भाषा-भेद के कारण किसी अन्य प्रान्त में किसी दूसरे नाम से खेला जाता है। उदाहरण के लिए, पत्थरों की ढेरी को गेंद से मार कर गिराने और पुन: जमाने के खेल को पिट्टू, गेंदवड़ी, सुतौलिया भी कहा जाता है और कबड्डी को ‘हु-तू-तू’ भी।
(ख) राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में विद्यालयीन शिक्षा के जिस स्वरूप अर्थात् 5+3+3+4 का उल्लेख है, उसी आयु वर्ग के आधार पर। यद्यपि कोई भी खेल किसी भी आयु वर्ग द्वारा खेला जा सकता है किन्तु शारीरिक क्षमता तथा उस खेल के माध्यम से होने वाले शारीरिक मानसिक विकास को ध्यान में रख कर पहले 5 वर्ष को शिशु आयु वर्ग, दूसरे 3 को बाल वर्ग, तीसरे 3 को किशोर तथा चौथे 4 वर्ष को किशोर-तरुण आयु वर्ग के रूप में खेलों को सूचीबद्ध किया गया है।
आशा है, उपर्युक्त विवरण भारत के परम्परागत खेलों की शिक्षण माध्यम के रूप में उपयोगिता को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्र होगा। आज जब दुनियाँ भर में Back to Roots (जड़ों की ओर लौटो) का आह्वान किया जा रहा है, भारत की खेल परम्परा को भी नई पीढ़ी के संज्ञान तथा अभ्यास में लाने के लिए पाठ्यक्रम के साथ जोड़ कर जन-जन तक पहुंचाने की इस महत्वाकांक्षी योजना को अमल में लाया जाता निश्चय ही Rooted in culture, committed to progress युवा पीढ़ी के निर्माण में सहायक होगा। (लेखक विद्या भारती के अखिल भारतीय महामंत्री है।)
भद्रा विचार अक्टूबर - 2023
भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना,स्नान करना,अस्त्र शस्त्र का प्रयोग,ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना,अग्नि लगाना,किसी वस्तु को काटना,भैस,घोड़ा व ऊंट संबंधी कार्य प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य भूलोक की भद्रा ,भद्रा मुख छोड़कर कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य कर सकते है |
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
मायका
माँ की मौत के बाद जब तेरहवी भी निमट गई तब नम आँखों से चारु ने अपने भाई से विदा ली।
" सब काम निमट गये भैया माँ चली गई अब मैं चलती हूँ भैया !" आंसुओ के कारण उसके मुंह से केवल इतना निकला।
" रुक चारु अभी एक काम तो बाकी रह गया ... ये ले माँ की अलमारी खोल और तुझे जो सामान चाहिए तू ले जा !" एक चाभी पकड़ाते हुए भैया बोले।
" नही भाभी ये आपका हक है आप ही खोलिये !" चारु चाभी भाभी को पकड़ाते हुए बोली। भाभी ने भैया के स्वीकृति देने पर अलमारी खोली।
" देख ये माँ के कीमती गहने , कपड़े है तुझे जो ले जाना ले जा क्योकि माँ की चीजों पर बेटी का हक सबसे ज्यादा होता है !" भैया बोले।
"भैया पर मैने तो हमेशा यहां इन गहनो , कपड़ो से कीमती चीज देखी है मुझे तो वही चाहिए !" चारु बोली।
" चारु हमने माँ की अलमारी को हाथ तक नही लगाया जो है तेरे सामने है तू किस कीमती चीज की बात कर रही है !" भैया बोले।
" भैया इन गहने कपड़ो पर तो भाभी का हक है क्योकि उन्होंने माँ की सेवा बहू नही बेटी बनकर की है। मुझे तो वो कीमती सामान चाहिए जो हर बहन बेटी चाहती है !" चारु बोली।
" मैं समझ गई दीदी आपको किस चीज की चाह है । दीदी आप फ़िक्र मत कीजिये मांजी के बाद भी आपका ये मायका हमेशा सलामत रहेगा ! पर फिर भी मांजी की निशानी समझ कुछ तो ले लीजिये !" भाभी भरी आँखों से बोली तो चारु रोते हुए उनके गले लग गई।
" भाभी जब मेरा मायका सलामत है मेरे भाई भाभी के रूप मे फिर मुझे किसी निशानी की जरूरत नही फिर भी आप कहती है तो मैं ये हँसते खेलते मेरे मायके की तस्वीर ले जाना चाहूंगी जो मुझे हमेशा एहसास कराएगा की मेरी माँ भले नही पर मायका है !
" चारु पूरे परिवार की तस्वीर उठाते हुए बोली और नम आँखों से विदा ली सबसे.|
पंचक विचार अक्टूबर - 2023
पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार- दिनांक 24 को 04-22 से दिनांक 28 को 07-30 तक पंचक है |
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
मूल नक्षत्र विचार- अक्टूबर 2023
दावत का दिन
देवेन्द्र कुमार
मैं स्टैंड पर बस की प्रतीक्षा का रहा था। तभी आवाज आई-‘ भगवान के नाम पे कुछ मिल जाये....’-यह चरण की गिडगिड़ाती आवाज थी। वह बस स्टैंड के पास बैठ कर भीख माँगा करता है। कई बार पुलिस उसे वहां से भगा चुकी है पर कुछ दिन बाद दोबारा लौट आता है।
मैंने कुछ सोचा और चरण के सामने जा खड़ा हुआ। इससे पहले कि वह मेरे सामने हाथ फैलाता,मैंने कहा-‘ जानते हो आज तुम्हारा जन्मदिन है और जिसका जन्मदिन होता है वह किसी से मांगता नहीं, मेहमानों को उपहार देता है। ’
‘मेरा जन्म दिन,,,, मैं.... ’चरण हडबडा गया।फिर मैंने बस स्टैंड में खड़े लोगों से कहा’-‘आज चरण का जन्म दिन है| इसने कसम खाई है कि अब से यह किसी के आगे हाथ नहीं फैलाएगा, ’चरण मुंह बाए देखता खड़ा था। उसने धीरे से कहा-‘तो मैं क्या करूंगा अब?’
यह तो चरण ने सही कहा था। मैंने उसे भीख न मांगने की कसम तो दिला दी थी,लेकिन इसके बाद वह क्या करेगा,कहाँ जाएगा, इसका इंतजाम कौन करेगा। तभी मैंने प्रीतम को वहां से जाते हुए देखा और उसे पुकार लिया। प्रीतम मेरे घर में अखबार डालता है। मैंने उसे चरण के बारे में बताया।
मैंने प्रीतम से कहा कि क्या वह चरण को बेचने के लिए रोज अखबार दे सकता है? मैंने उसे भरोसा देते हुए कहा-‘प्रीतम, तुम्हारे किसी भी नुक्सान की जिम्मेदारी मेरी होगी। चरण के लिए जो प्रयोग मैं करना चाहता हूँ उसमें तुम मेरी बहुत मदद कर सकते हो। ’
आखिर प्रीतम ने मुझे सहयोग देने का वादा किया और कुछ देर में आने की बात कह कर चला गया।
वह कुछ देर बाद लौटा तो उस दिन के अखबार लेकर। प्रीतम ने एक प्लास्टिक शीट बिछा कर उस पर हिंदी और अंग्रेजी के अखबार करीने से रख दिए। तब तक मैं चरण को बता चुका था कि उसे क्या करना है, बाकी उसे प्रीतम ने समझा दिया। चरण अखबारों के सामने बैठा रहा,पर किसी ने भी अखबार नहीं खरीदा।
मैंने कहा-‘चरण, आज पहला दिन है,लोग तुमसे अखबार खरीदेंगे लेकिन उससे पहले तुम्हें अपना हुलिया ठीक करना होगा। ’और मैं घर से एक जोड़ी कुरता पजामा ले आया। मैंने उसे कुछ पैसे दिए कि जाकर बाल कटवाने के साथ दाढ़ी भी साफ़ करा ले। फिर नहा कर कपडे बदल ले। कुछ देर बाद चरण आया तो पहचाना ही नहीं जा रहा था। मैंने पूछा-‘आज तो तुमने कुछ खाया नहीं होगा। ’ और उसे सड़क पार मदन के ढाबे पर ले गया। एकाएक मदन उसे पहचान ही नहीं पाया। फिर मैंने उसे पूरी बात बताई तो मदन हंस कर बोला-‘यह तो कोई दूसरा ही चरण बन गया है। रोज इसे देखते ही डांट कर भगा देता हूँ। पर आज तो इसकी दावत करने का दिन है। ’
चरण कुर्सी पर बैठते हुए सकुचा रहा था लेकिन मदन ने कहा-‘ आज तुम्हारा नया जन्म हुआ है। तुम मेरे मेहमान हो। ’ मैंने चाय पी और मदन ने चरण को भर पेट खिलाया। चरण फिर से अखबारों के सामने बैठ गया। मैं संतुष्ट भाव से घर चला आया।
शाम को दरवाजे की घंटी बजी,बाहर चरण खड़ा था। उसने मुझे कई नोट थमा दिए। बोला-‘ ये पैसे आपके हैं, प्रीतम ने दिए हैं,कह रहा था कि अखबार बेचने का कमीशन है। ’
‘पर यह तो तुम्हारी मेहनत की कमाई है। तुम्हें खुश होना चाहिए कि ये भीख के पैसे नहीं हैं। किसी ने तुम पर दया नहीं की है। और यह कमीशन तुम रोज कमा सकते हो। ’
‘क्या सच!’-चरण की आवाज से ख़ुशी फूटी पड रही थी। इसके बाद मैं उसे मदन के ढाबे पर ले गया। मैंने हंस कर कहा-‘मदन, आज चरण अपनी कमाई के पैसो से डिनर करने आया है। ’
मदन ने कहा –‘आपकी तरह मैंने भी चरण के लिए कुछ सोचा है। अखबार तो दोपहर तक ही बिकते हैं। उसके बाद तो चरण खाली ही रहता है। अगर वह चाहे तो दोपहर के बाद मेरे ढाबे पर काम कर सकता है। मैं एक दो दिन में ही उसे पूरा काम समझा दूंगा। दोनों समय का खाना और साथ में कुछ पैसे भी दूंगा। और हाँ मेरे कुछ आदमी रात में सफाई के बाद यहीं सोते हैं। उनके लिए मैंने नहाने –धोने का इंतजाम भी कर रखा है। चरण को सडकों पर सोने की आदत है। उसे कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। ’ चरण को भला और क्या चाहिए था। उसकी रातें तो सडक पर ही गुजरती थी, जहाँ से पुलिस कई बार भगा दिया करती थी। अब चरण सचमुच बदल गया था। सुबह अखबार बेचना और दोपहर बाद मदन के ढाबे में काम करना उसकी दिनचर्या बन गई थी।
एक शाम मैं मदन के ढाबे पर गया तो चरण काम में लगा हुआ था। मुझे देख कर वह मेरे पास चला आया। मदन ने बताया कि अब तक उसके पास चरण के कुछ पैसे जमा हो गए हैं। ‘ मैं जब भी लेने के लिए कहता हूँ तो यह कह देता है कि इसे कोई जरूरत नहीं। ’ मैंने चरण की और देखा तो वह बोला-‘ आसपास मेरे जैसे और भी कई चरण जरूर मिल जायेंगे आपको। इन पैसों को अगर आप उन्हें सुधारने पर खर्च करें तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी। ’ मैंने देखा,यह कहते हुए उसकी आँखों में गीलापन झलमला रहा था।
मदद
संजय गुप्ता
ऑफिस से निकल कर शर्मा जी ने स्कूटर स्टार्ट किया ही था कि उन्हें याद आया.. पत्नी ने कहा था 1 किलो जामुन लेते आना तभी उन्हें सड़क किनारे बड़े और ताज़ा जामुन बेचते हुए एक बीमार सी दिखने वाली बुढ़िया दिख गयी.. वैसे तो वह फल हमेशा राम आसरे फ्रूट भण्डार से ही लेते थे.. पर आज उन्हें लगा कि क्यों न बुढ़िया से ही खरीद लूँ..?
उन्होंने बुढ़िया से पूछा.. माई जामुन कैसे दिए.. बुढ़िया बोली.. बाबूजी 40 रूपये किलो..शर्माजी बोले.. माई 30 रूपये दूंगा.. बुढ़िया ने कहा.. 35 रूपये दे देना.. दो पैसे मै भी कमा लूंगी..शर्मा जी बोले.. 30 रूपये लेने हैं तो बोलो.. बुझे चेहरे से बुढ़िया ने.. " न " मे गर्दन हिला दी..
शर्माजी बिना कुछ कहे चल पड़े और.. राम आसरे फ्रूट भण्डार पर आकर जामुन का भाव पूछा तो वह बोला 50 रूपये किलो हैं.. बाबूजी कितने दूँ..?
शर्माजी बोले.. 5 साल से फल तुमसे ही ले रहा हूँ.. ठीक भाव लगाओ.. तो उसने सामने लगे बोर्ड की ओर इशारा कर दिया..बोर्ड पर लिखा था - मोल भाव करने वाले माफ़ करें.. शर्माजी को उसका यह व्यवहार बहुत बुरा लगा..
उन्होंने कुछ सोचकर स्कूटर को वापस ऑफिस की ओर मोड़ दिया.. सोचते सोचते वह बुढ़िया के पास पहुँच गए..
बुढ़िया ने उन्हें पहचान लिया और बोली.. बाबूजी जामुन दे दूँ.. पर भाव 35 रूपये से कम नही लगाउंगी..,,,,,शर्माजी ने मुस्कुराकर कहा.. माई एक नही दो किलो दे दो और भाव की चिंता मत करो.. अब बुढ़िया का चेहरा ख़ुशी से दमकने लगा जामुन देते हुए बोली.. बाबूजी मेरे पास थैली नही है.. फिर बोली.. एक टाइम था जब मेरा आदमी जिन्दा था.. तो मेरी भी छोटी सी दुकान थी..सब्ज़ी.. फल सब बिकता था उस पर.. आदमी की बीमारी मे दुकान चली गयी.. आदमी भी नही रहा.. अब खाने के भी लाले पड़े हैं.. किसी तरह पेट पाल रही हूँ.. कोई औलाद भी नही है.. जिसकी ओर मदद के लिए देखूं..
इतना कहते कहते बुढ़िया रुआंसी हो गयी और.. उसकी आंखों मे आंसू आ गए..
शर्माजी ने 100 रूपये का नोट बुढ़िया को दिया तो वो बोली बाबूजी मेरे पास छुट्टे नही हैं.. शर्माजी बोले माई चिंता मत करो.. रख लो.. अब मै तुमसे ही फल खरीदूंगा और.. कल मै तुम्हें 1000 रूपये दूंगा.. धीरे धीरे चुका देना और परसों से बेचने के लिए मंडी से दूसरे फल भी ले आना.. बुढ़िया कुछ कह पाती उसके पहले ही शर्माजी घर की ओर रवाना हो गए.. घर पहुंचकर उन्होंने पत्नी से कहा.. न जाने क्यों हम हमेशा मुश्किल से पेट पालने वाले.. थड़ी लगा कर सामान बेचने वालों से मोल भाव करते हैं किन्तु बड़ी दुकानों पर मुंह मांगे पैसे दे आते हैं.. शायद हमारी मानसिकता ही बिगड़ गयी है.. गुणवत्ता के स्थान पर हम चकाचौंध पर अधिक ध्यान देने लगे हैं.. अगले दिन शर्माजी ने बुढ़िया को 500 रूपये देते हुए कहा.. माई लौटाने की चिंता मत करना.. जो फल खरीदूंगा.. उनकी कीमत से ही चुक जाएंगे..जब शर्माजी ने ऑफिस मे ये किस्सा बताया तो सबने बुढ़िया से ही फल खरीदना प्रारम्भ कर दिया.. तीन महीने बाद ऑफिस के लोगों ने स्टाफ क्लब की ओर से बुढ़िया को एक हाथ ठेला भेंट कर दिया..बुढ़िया अब बहुत खुश है.. उचित खान पान के कारण उसका स्वास्थ्य भी पहले से बहुत अच्छा है.. हर दिन शर्माजी और ऑफिस के दूसरे लोगों को दुआ देती नही थकती.. शर्माजी के मन में भी अपनी बदली सोच और एक असहाय निर्बल महिला की सहायता करने की संतुष्टि का भाव रहता है.
राहू काल
राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
चौघड़िया मुहूर्त
चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है|
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अक्टूबर मास के महत्वपूर्ण दिवस
1 अक्टूबर - अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस
वृद्ध व्यक्तियों की समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 1 अक्टूबर को "अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस" के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष, अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस की थीम "सभी उम्र के लिए डिजिटल समानता" है, ताकि पुरानी पीढ़ी डिजिटल दुनिया में आसानी से जानकारी प्राप्त कर सके। यह विधेयक 14 दिसंबर 1990 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित किया गया था और तब से 1 अक्टूबर को "अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस" के रूप में याद किया जाता है।
2 अक्टूबर - अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस
अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस हर साल 2 अक्टूबर को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस भारत के राष्ट्रपिता और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेता महात्मा गांधी की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। जब स्वतंत्रता सेनानी भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब उनका अहिंसा में दृढ़ विश्वास था।
2 अक्टूबर- गांधी जयंती
महात्मा गांधी की जयंती के उपलक्ष्य में हर साल 2 अक्टूबर को गांधी जयंती मनाई जाती है। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था। वह विश्व के प्रसिद्ध नेताओं के जीवन में और हमारे जीवन में भी एक प्रेरणा हैं।
2 अक्टूबर - लाल बहादुर शास्त्री जयंती
शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय में शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और रामदुलारी देवी के घर हुआ था, उन्होंने अपना जन्मदिन महात्मा गांधी के साथ साझा किया था, जिनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
3 अक्टूबर - विश्व प्रकृति दिवस
विश्व प्रकृति दिवस हर साल 3 अक्टूबर को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। उत्सव का उद्देश्य प्रकृति के संतुलन के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। हमें प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध कराने के लिए प्रकृति का आभारी होना चाहिए और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने का संकल्प लेना चाहिए।
4 अक्टूबर - विश्व पर्यावास दिवस
विश्व पर्यावास दिवस हर साल अक्टूबर के पहले सोमवार को मनाया जाता है। इस वर्ष, यह 4 अक्टूबर को पड़ता है। विश्व पर्यावास दिवस का विषय "कार्बन मुक्त दुनिया के लिए शहरी कार्रवाई में तेजी लाना" है। विश्व पर्यावास दिवस 1985 में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव द्वारा घोषित किया गया था और पहली बार 1986 में मनाया गया था। इसका उद्देश्य हमारे पर्यावरण में मौजूद कार्बन पदचिह्नों की उपस्थिति को कम करना है।
4 अक्टूबर - विश्व पशु कल्याण दिवस
विश्व पशु कल्याण दिवस हर साल 4 अक्टूबर को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। विश्व पशु दिवस का विषय "वन और आजीविका: लोगों और ग्रह को कायम रखना" है। हर साल अत्यधिक शिकार के कारण कई प्रजातियाँ विलुप्त हो जाती हैं और कंक्रीट के जंगल बनाने के लिए जंगलों को काट दिया जाता है। यह दिन जानवरों के प्रति क्रूरता की सुरक्षा और रोकथाम के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है।
5 अक्टूबर - विश्व शिक्षक दिवस
विश्व शिक्षक दिवस हर साल 5 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है। यूनेस्को ने 1994 में 5 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस के रूप में घोषित किया। यह दिन विश्व स्तर पर शिक्षकों के काम और प्रयासों की सराहना करने के लिए मनाया जाता है। शिक्षक बेहतर भविष्य के लिए युवा पीढ़ी के दिमाग को देश और दुनिया की सद्भावना के लिए काम करने के लिए तैयार करते हैं।
8 अक्टूबर - वायु सेना दिवस
भारत में हर साल 8 अक्टूबर को वायु सेना दिवस मनाया जाता है। भारतीय वायु सेना (आईएएफ) की स्थापना 8 अक्टूबर 1932 को ब्रिटिश ताज द्वारा रॉयल इंडियन एयर फोर्स के रूप में की गई थी। 1950 में इसका नाम रॉयल इंडियन एयर फ़ोर्स से बदलकर इंडियन एयर फ़ोर्स कर दिया गया। भारतीय वायु सेना 8 अक्टूबर को अपनी 89वीं वर्षगांठ मना रही है।
9 अक्टूबर - विश्व डाक दिवस
हर साल 9 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व डाक दिवस मनाया जाता है। यह दिन हर साल लोगों और व्यवसायों के लिए डाक क्षेत्र की भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है।
10 अक्टूबर - राष्ट्रीय डाक दिवस
भारत में हर साल 10 अक्टूबर को राष्ट्रीय डाक दिवस मनाया जाता है। यह विश्व डाक दिवस का विस्तार है। डाक सेवाओं में भारतीय डाक विभाग के योगदान को मान्यता देने के लिए भारत में हर साल राष्ट्रीय डाक दिवस मनाया जाता है। भारतीय डाक विभाग अपनी डाक सेवाओं के माध्यम से कई लोगों को जोड़ रहा है। जब रोजगार की बात आती है, तो कई भर्ती कंपनियां अभी भी युवा पीढ़ी को रोजगार प्रदान करने के लिए डाक सेवाओं को बढ़ावा देती हैं।
11 अक्टूबर - अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस
11 अक्टूबर को विश्व स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। यह दिन लड़कियों के अधिकारों के बारे में आवाज उठाने और उन्हें शिक्षा के माध्यम से सशक्त बनाने के लिए मनाया जाता है। इसका उद्देश्य उन्हें अवैध गर्भपात प्रथाओं और घर पर शारीरिक शोषण से बचाना और मानव तस्करी के खिलाफ लड़ाई लड़ना है।
12 अक्टूबर - विश्व गठिया दिवस
विश्व गठिया दिवस हर साल 12 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य दुनिया भर में वृद्ध लोगों द्वारा सामना की जाने वाली गठिया और मस्कुलोस्केलेटल बीमारियों के अस्तित्व और प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
13 अक्टूबर - राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय दिवस
राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय दिवस हर साल 13 अक्टूबर को मनाया जाता है। प्राकृतिक आपदाओं और मनुष्यों के कारण होने वाले आपदा जोखिम में कमी के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस दिन की घोषणा की गई है।
14 अक्टूबर - विश्व मानक दिवस
विश्व मानक दिवस प्रत्येक वर्ष 14 अक्टूबर को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य दुनिया भर में उन हजारों विशेषज्ञों के सहयोगात्मक प्रयासों को श्रद्धांजलि देना है जो स्वैच्छिक तकनीकी समझौते विकसित करते हैं जिन्हें विभिन्न उत्पादों और सेवाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों के रूप में प्रकाशित किया जाता है।
15 अक्टूबर - विश्व सफेद बेंत दिवस (नेत्रहीनों का मार्गदर्शन)
नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड द्वारा हर साल 15 अक्टूबर को विश्व सफेद छड़ी दिवस मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य सुरक्षा के साथ-साथ नेत्रहीन लोगों की स्वतंत्रता से ध्यान हटाना और एक मार्गदर्शक के रूप में सफेद छड़ी का उपयोग जारी रखना है।
16 अक्टूबर - विश्व खाद्य दिवस
विश्व खाद्य दिवस हर साल 16 अक्टूबर को मनाया जाता है। विश्व खाद्य दिवस का विषय है "हमारे कार्य हमारा भविष्य हैं- बेहतर उत्पादन, बेहतर पोषण, बेहतर पर्यावरण और बेहतर जीवन"। इस दिन का उद्देश्य प्रत्येक मनुष्य के लिए स्वस्थ और पौष्टिक आहार के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
17 अक्टूबर - अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस
हर साल 17 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस मनाया जाता है। यह दिन गरीब लोगों की अपनी विशेषज्ञता का उपयोग करने और गरीबी उन्मूलन में योगदान देने की इच्छा बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। यह स्वास्थ्य सेवाएं, रोजगार के अवसर प्रदान करके और उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनने के लिए प्रशिक्षण देकर किया जा सकता है।
24 अक्टूबर - संयुक्त राष्ट्र दिवस
संयुक्त राष्ट्र दिवस हर साल 24 अक्टूबर को मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय संयुक्त राष्ट्र दिवस 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के लागू होने की वर्षगांठ का प्रतीक है। संयुक्त राष्ट्र दिवस 1948 से मनाया जा रहा है। वर्ष 2022 संयुक्त राष्ट्र और इसके संस्थापक चार्टर की 77वीं वर्षगांठ होगी।
24 अक्टूबर - विश्व विकास सूचना दिवस
संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर साल 24 अक्टूबर को विश्व विकास सूचना दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने लोगों का ध्यान विकासात्मक समस्याओं की ओर आकर्षित करने और उन्हें हल करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करने की आवश्यकता के लिए 1972 में विश्व विकास सूचना दिवस घोषित किया।
30 अक्टूबर - विश्व बचत दिवस
विश्व थ्रिफ्ट दिवस हर साल भारत में 30 अक्टूबर और दुनिया भर में 31 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य किसी राष्ट्र और व्यक्तियों की बचत और वित्तीय सुरक्षा के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना है।
31 अक्टूबर - राष्ट्रीय एकता दिवस या राष्ट्रीय एकता दिवस
भारत में 2014 से हर साल 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है। यह दिन सरदार वल्लभ भाई पटेल की याद में मनाया जाता है, जिन्हें भारत के लौह पुरुष के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने देश को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई. सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारत को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसे एक भारत (विविधता में एकता) बनाया।
मांगलिक दोष विचार परिहार
वर अथवा कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में 1,4,7,8 व 12 भाव में मंगल होने से ये मांगलिक माने जाते हैं,मंगली से मंगली के विवाह में दोष न होते हुए भी जन्म पत्रिका के अनुसार गुणों को मिलाना ही चाहिए यदि मंगल के साथ शनि अथवा राहु केतु भी हो तो प्रबल मंगली डबल मंगली योग होता है | इसी प्रकार गुरु अथवा चंद्रमा केंद्र हो तो दोष का परिहार भी हो जाता है |इसके अतिरिक्त मेष वृश्चिक मकर का मंगल होने से भी दोष नष्ट हो जाता है | इसी प्रकार यदि वर या कन्या किसी भी कुंडली में 1,4,7,9,12 स्थानों में शनि हो केंद्र त्रिकोण भावो में शुभ ग्रह, 3,6,11 भावो में पाप ग्रह हों तो भी मंगलीक दोष का आंशिक परिहार होता है, सप्तम ग्रह में यदि सप्तमेश हो तो भी दोष निवृत्त होता है |
स्वयं सिद्ध मुहूर्त
स्वयं सिद्ध मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,वैशाख शुक्ल तृतीया अक्षय तृतीया, आश्विन शुक्ल दशमी विजयदशमी, दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग भारत में से इसके अतिरिक्त लोकाचार और देश आचार्य के अनुसार निम्नलिखित कृतियों को भी स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है बडावली नवमी, देव प्रबोधिनी एकादशी, बसंत पंचमी, फुलेरा दूज इन में से किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है परंतु विवाह आदि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्त व कार्य करना श्रेष्ठ रहता है।
चतुर चिड़िया
एक चिड़िया ने एक खेत में खड़ी फसल के बीच घोंसला बना कर अंडे दिए। उनसे समय आने पर दो बच्चे निकले। चिड़िया दाना चुगने के लिए रोज जंगल जाती। इस बीच उसके बच्चे अकेले रहते थे। चिड़िया लौटती तो बच्चे बहुत खुश होते और उसका लाया चुग्गा खाते।
एक दिन चिड़िया ने देखा बच्चे बहुत डरे हुए हैं। उन्होंने बताया- 'आज खेत का मालिक आया था। वह कह रहा था कि फसल पक चुकी है। कल बेटों से खेत की कटाई के लिए कहेगा। इस तरह तो हमारा घोंसला टूट जाएगा फिर हम कहां रहेंगे?'
चिड़िया बोली- 'फिक्र मत करो, अभी खेत नहीं कटेगा।' अगले दिन सच में कुछ नहीं हुआ और बच्चे बेफिक्र हो गए। एक हफ्ते बाद चिड़िया को बच्चे फिर डरे हुए मिले। बोले- 'किसान आज भी आया था। कह रहा था कि कल नौकर को खेत काटने को कहेगा।'
इस बार भी चिड़िया ने बच्चों से कहा- 'कुछ नहीं होगा, डरो मत।' अगले हफ्ते बच्चों ने बताया कि किसान आज फिर आया था और कह रहा था कि फसल की कटाई में बहुत देर हो गई है। कल वह खुद ही काटेगा। यह सुनकर चिड़िया बच्चों से बोली- 'कल खेत कट जाएगा।' वह बच्चों को तुरंत एक सुरक्षित घोंसले में ले गई।
हैरान बच्चों ने पूछा- 'मां तुमने कैसे जाना कि इस बार खेत सचमुच कटेगा?'
चिड़िया बोली- 'जब तक इंसान किसी काम के लिए दूसरों पर निर्भर रहता है, उसके संपन्न होने में संदेह रहता है। लेकिन जब वह काम को खुद करने की ठान लेता है तो जरूर पूरा होता है।' किसान ने जब खुद खेत काटने की सोची, तभी तय हुआ कि अब खेत जरूर कट जाएगा।
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ग्रह स्थिति अक्टूबर-2023
ग्रह स्थिति - दि-1 बुध कन्या में,दि-1 शुक्र सिंह में,दि- 3 मंगल तुला में,दि- 6 बुध पूर्वास्त,दि-17 सूर्य तुला में,दि-18 बुध तुला,दि-30 राहु मीन में,केतु कन्या मे |
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे शर्मा जी - 9312002527,9560518227
सर्वार्थ सिद्धि योग अक्टूबर -2023
दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक है|
बुध ग्रह के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए
निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं।
बुध ग्रह के उपाय में मंत्रों का जाप और पूजा करना शामिल हो सकता है। बुध ग्रह के प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न रत्नों का प्रयोग किया जा सकता है,जैसे कि पन्ना और मूंगा। धार्मिक तत्त्वों में बुध के प्रभाव को कम करने के लिए दान और सेवा का महत्व होता है। कुछ लोग बुध ग्रह के प्रभाव को कम करने के लिए विशेष व्रत और उपवास आदि का पालन करते हैं। ध्यान दें कि ये सभी विशिष्ट धार्मिक अनुष्ठान और विश्वासों पर आधारित हैं और उनका व्यक्तिगत प्रभाव भिन्न-भिन्न लोगों पर भिन्न हो सकता है। यदि आपको किसी विशेष समस्या के लिए सही दिशा में मार्गदर्शन की आवश्यकता है, तो संपर्क करे शर्मा जी 9312002527
सुर्य उदय- सुर्य अस्त अक्टूबर-2023
जन्म कुंडली दिखाने के लिए व बनवाने हेतु संपर्क करें-
जन्म कुंडली विशेषज्ञ व सलाहकार शर्मा जी
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वर वधू के लिए निम्नलिखित फार्म भरे ।
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गिरधारी का सूरज
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
अरे कमबख्त, तुझे ये ही काम करना था तो फिर इतना पढ़ा लिखा ही क्यूँ था?हमारे अरमान तो धरे के धरे रह गये, नाम डूबा दिया तूने।
गिरधारी अपने मुहल्ले की दुकान में कपड़े सिलाई का कार्य करता था।एक ही बेटा था अनुज।गिरधारी निम्न मध्यम श्रेणी में था।उसने सोचा था बेटे को पढ़ा दूँ तो नौकरी करेगा तो परिवार को राहत मिलेगी।अपनी औकात के अनुसार अनुज को उसने ग्रेजुएट करा दिया।गिरधारी के लिये ग्रेजुएट तक की शिक्षा बहुत थी,उसका मानना था कि बस अपने अनु ने इतना पढ़ लिया है तो बस नौकरी अब लगी,अब लगी।
घर से दुकान और दुकान से घर तक जिसकी दुनिया हो उसे आज की शिक्षा,बेरोजगारी वातावरण का क्या पता?पर अनुज ने वास्तविकता पहचान अपने पिता के दर्जी के काम को ही नये रूप में बढ़ाने का निश्चय किया।
अनुज ने रेडीमेड कपडो की एक दो कम्पनी से संपर्क करके उनसे ट्रायल के लिये छोटे आर्डर लिये।कपड़ा कंपनी ने ही दे दिया।सिलाई वास्ते वो अपनी दुकान पर आया तो उसके पिता भड़क गये,उन्हें पढ़े लिखे बेटे का दर्जी का काम करना, अपना नाम डुबाना लग रहा था।
अनुज ने अपने पिता को समझाया कि बाबूजी नौकरी मिल नही रही तो अपने काम करने में क्या हर्ज है?बाबूजी यदि हमने ये आर्डर समय पर पूरे करके दे दिये तो हमे बडे आर्डर मिलने का मार्ग खुल जायेगा।बाबूजी मेरी सहायता करो,मैं आपको निराश नही करूँगा।मन मार कर गिरधारी ने अनुज के आर्डर को पूरा कर दिया।
सफाई से काम, समय से पूर्व काम से कंपनी के डायरेक्टर काफी प्रसन्न हुए और अबकी बार अनुज को पहले से बड़ा आर्डर दे दिया।समस्या थी स्टाफ और मशीनों की।अनुज ने प्रधानमंत्री बेरोजगार योजना के अन्तर्गत ऋण लेकर मशीनें भी खरीद ली तथा अपनी बराबर वाली एक और दुकान भी किराये पर ले ली।कारीगर भी बढ़ा लिये।अनुज ने अपने इसी पैतृक व्यवसाय को आधुनिक रूप में आगे बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया।कंपनी के मनमुताबिक, सही और सही समय पर आर्डर पूरा करना अनुज ने अपनी विशेषता बना ली।
धीरे धीरे अनुज की मेहनत रंग लाने लगी।अब उसने अपनी भी रेडीमेड कपडो की एक फैक्ट्री रजिस्टर्ड करा ली थी।परिवार की आय भी दिन दूनी रात चौगनी बढ़ने लगी थी।गिरधारी को अब दुकान में मशीन के सामने रात दिन खटना नही पड़ता था।गिरधारी अब अक्सर कहता अनुज ने तो अपने घर मे रोशनी ही रोशनी कर दी है।
पितृ पक्ष
पितृ पक्ष या पितरपख, १६ दिन की वह अवधि है जिसमें हिन्दू लोग अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं और उनके लिये पिण्डदान करते हैं। इसे 'सोलह श्राद्ध', 'महालय पक्ष', 'अपर पक्ष' आदि नामों से भी जाना जाता है।
पितृ पक्ष 2023 तिथि
पूर्णिमा श्राद्ध - 29 सितंबर 2023,प्रतिपदा श्राद्ध - 30 सितंबर 2023
द्वितीया श्राद्ध - 1 अक्टूबर 2023,तृतीया श्राद्ध - 2 अक्टूबर 2023
चतुर्थी श्राद्ध - 3 अक्टूबर 2023,पंचमी श्राद्ध - 4 अक्टूबर 2023,
षष्ठी श्राद्ध - 5 अक्टूबर 2023,सप्तमी श्राद्ध - 6 अक्टूबर 2023,
अष्टमी श्राद्ध - 7 अक्टूबर 2023,नवमी श्राद्ध - 8 अक्टूबर 2023
दशमी श्राद्ध - 9 अक्टूबर 2023,एकादशी श्राद्ध - 10 अक्टूबर 2023
द्वादशी श्राद्ध - 11 अक्टूबर 2023,त्रयोदशी श्राद्ध - 12 अक्टूबर 2023
चतुर्दशी श्राद्ध - 13 अक्टूबर 2023.अमावस्या श्राद्ध - 14 अक्टूबर 2023
इंदिरा एकादशी
अश्विन माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी कहते हैं | यह एक मात्र ऐसी एकादशी है जो पितृ पक्ष में पड़ती है | मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से व्रती को पितृ पक्ष में श्राद्ध करने के समान फल की प्राप्ति होती है. इसलिए इंदिरा एकादशी व्रत अन्य एकादशियों के व्रत की तुलना में बेहद खास हो जाता है |
आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन इंदिरा एकादशी का व्रत रखा जाता है | एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि आप मुझे आश्विन कृष्ण एकादशी व्रत के महव के बारे में बताएं | तब भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि इस व्रत को इंदिरा एकादशी व्रत के नाम से जानते हैं. इस व्रत को करने से पुण्य प्राप्त होता है व पितरों की मुक्ति होती है |
इंदिरा एकादशी व्रत कथा
एक समय में इंद्रसेन नामक राजा महिष्मति नगर पर शासन करता था | राजा विष्णु भगवान का भक्त था,उसके पास किसी चीज की कमी नहीं थी | एक दिन उसके राजदरबार में नारद मुनि पधारे. राजा ने उनका आदर सत्कार किया और आने का प्रयोजन पूछा | तब नारद जी ने कहा कि वे एक दिन यमलोक गए थे | उन्होंने यमराज से मुलाकात की उनकी प्रशंसा की उस दौरान उन्होंने तुम्हारे पिता को देखा वे यम लोक में थे नारद जी ने राजा इंद्रसेन को उसके पिता का संदेशा बताया. उसके पिता ने कहा था कि किसी कारणवश उनसे एकादशी व्रत में कोई विघ्न बाधा हो गई थी, जिसके फलस्वरूप उनको यम लोक में यमराज के पास समय व्यतीत करना पड़ रहा है | यदि तुम से संभव हो सके तो अपने पिता के लिए इंदिरा एकादशी व्रत करो | इससे वे यमलोक से मुक्त होकर स्वर्ग लोक में स्थान पा सकेंगे | तब राजा इद्रसेन ने नारद जी से इंदिरा एकादशी के व्रत की विधि बताने का अनुरोध किया | नारद जी ने कहा कि इंदिरा एकादशी व्रत के दिन तुम स्नान आदि करके भगवान शालिग्राम के समक्ष अपने पितरों का श्राद्ध विधिपूर्वक करो | ब्राह्मणों को फलाहार और भोजन कराओ | फिर उनको दक्षिणा दो. इसके बाद बचे हुए भोजन को गाय को खिला दो | फिर धूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु का पूजन करो | फिर रात्रि के समय में भगवान का कीर्तन कर जागरण करो | अगले दिन सुबह स्नान आदि के बाद पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराओ | तत्पश्चात स्वयं भी भोजन करके व्रत को पूरा कर भगवान का आशीर्वाद ले | नारद जी ने कहा कि हे राजन! तुम विधिपूर्वक इंदिरा एकादशी व्रत को करो ऐसा करने से तुम्हारे पिता शीघ्र स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त करेंगे | ऐसा कह नारद जी वहां से चले गए | जब आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी आई तो राजा इंद्रसेन ने विधिपूर्वक इंदिरा एकादशी व्रत किया | इस व्रत के पुण्य प्रभाव से उसके पिता यमलोक से मुक्त होकर विष्णु लोक को चले गए | एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा इंद्रसेन को भी स्वर्ग लोक की प्राप्ति हुई |
नवरात्र
नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
घटस्थापना तिथि - रविवार 15 अक्टूबर 2023,घटस्थापना मुहूर्त - प्रातः 06:30 मिनट से प्रातः 08: 47 मिनट तक,अभिजित मुहूर्त - सुबह 11:48 मिनट से दोपहर 12:36 मिनट तक
15 अक्टूबर 2023 - मां शैलपुत्री (पहला दिन) प्रतिपदा तिथि,16 अक्टूबर 2023 - मां ब्रह्मचारिणी (दूसरा दिन) द्वितीया तिथि,17 अक्टूबर 2023 - मां चंद्रघंटा (तीसरा दिन) तृतीया तिथि,18 अक्टूबर 2023 - मां कुष्मांडा (चौथा दिन) चतुर्थी तिथि,19 अक्टूबर 2023 - मां स्कंदमाता (पांचवा दिन) पंचमी तिथि,20 अक्टूबर 2023 - मां कात्यायनी (छठा दिन) षष्ठी तिथि,21 अक्टूबर 2023 - मां कालरात्रि (सातवां दिन) सप्तमी तिथि,22 अक्टूबर 2023 - मां महागौरी (आठवां दिन) दुर्गा अष्टमी,23 अक्टूबर 2023 - महानवमी, (नौवां दिन) शरद नवरात्र व्रत पारण,24 अक्टूबर 2023 - मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन, दशमी तिथि (दशहरा)
पापांकुशा एकादशी
पापांकुशा एकादशी यह व्रत आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है | इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करके ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए | इस एकादशी में भगवान पदमनाभ की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है | प्रातकाल उठकर नित्यकर्मो,स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का विधिवत पूर्ण भक्ति भाव से पूजन करें और भोग लगाएं | प्रसाद वितरण कर सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मण को तिल,भूमि,अन्न ,जूता,वस्त्र,छाता आदि का दान कर भोजन कराएं | भगवान के निकट भजन कीर्तन कर रात्रि जागरण करें | उपवास के दौरान अन्न का सेवन ना करें एक समय फलाहार करें |
पापांकुशा एकादशी की कथा- एक बहेलिया था जो विंध्याचल पर्वत पर निवास करता था | जिसका काम के अनुरूप ही नाम क्रोधन था | उसने अपना समस्त जीवन हिंसा,लूटपाट,मिथ्या,भाषण,शराब और वैश्यागमन कर बिता दिया | यमराज ने उसके अंतिम समय से एक दिन पहले अपने दूत को उसे लाने के लिए भेजा दूतों ने क्रोधन को बताया कि कल तुम्हारा अंतिम दिन है | हम तुम्हें लेने के लिए आए हैं | मोत के डर से वह ऋषि के आश्रम पहुंचा | उसने ऋषि से अपने प्राण रक्षा के लिए उपाय पूछा व भक्तिपूर्वक प्रार्थना कर अनुनय विनय करने लगा | ऋषि को उस पर दया आ गई उन्होंने उसे आश्विन शुक्ल एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु की पूजा की सारी विधि बताई | संयोगवश उस दिन एकादशी थी क्रोधन ने ऋषि द्वारा बताएं पापांकुशा एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया | भगवान की कृपा से वह विष्णुलोक को चला गया | यम दूत हाथ मलते रह गए |
पर्यावरण संरक्षण
मु.ला. सारस्वत
जननी है प्रकृति जीवों की,
मानव रचना सर्वोत्तम है।
सर्वोत्तम बेशक है लेकिन,
कृत्यों से ये बड़ा अधम है।।
घाव निरंतर देता आया असह्य
हो रहे अब प्रकृति को।
कुपित प्रकृति उद्यत है अब,
अपनी ही कृति की इति को।।
छमा याचना अब भी कर ले,
ले ले शपथ आज के बाद।
मां प्रकृति को करो न विकृत ,
प्रकृति है जीवन प्रसाद।।
चित एकाग्र कैसे करे
शरीर ,मन और आत्मा को एक साथ लाने का कार्य है योग | योग हमारे लिय उतना ही अवश्यक है जितना भोजन या जल |
महर्षि पतंजलि ने योग को चित्त की वृत्तियों के निरोध के रूप में परिभाषित किया है | उन्होंने “योगसूत्र” नाम से “योगसूत्रों” का एक संकलन किया है,जिसमें उन्होंने पूर्ण कल्याण तथा शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि के लिए आठ अंक वाले योग का एक मार्ग विस्तार से बताया है | अष्टांग योग ( आठ अंकों वाला योग ), को आठ अलग-अलग चरणों वाला मार्ग नहीं समझना चाहिए; यह आठ आयामों वाला मार्ग है | जिसमे आठों आयामों का अभ्यास एक साथ किया जाता है |
योग के आठ प्रकार
यम - पांच सामाजिक नैतिकता
अहिंसा - शब्दों से विचारों से और कर्मो से किसी को अकारण हानी नहीं पहुंचाना
सत्य - विचारों की सत्यता,परम सत्य में स्थित रहना, जैसा विचार मन में वैसा ही प्रमाणिक वाणी से बोलना,
अस्तेय - चोर प्रवृत्ति का ना होना
ब्रह्मचर्य - दो अर्थ है चेतना को ब्रह्म के ज्ञान में स्थित करना सभी इन्द्रिय जनित सुखों में संयम बरतना ,अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना और दुसरो की वस्तु की इच्छा नहीं करना
नियम - पांच व्यक्तिगत नैतिकता
शोच - शरीर और मन की शुधि
संतोष - संतुष्ट और प्रसन्न रहना
तप - स्वय से अनुशाषित रहना
स्वाध्याय - आत्मचिंतन करना
ईश्वर प्रणिधान - ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण पूर्ण होना चाहिए
आसन - योगासनों द्वारा शारीरिक नियन्त्रण आसन शरीर को साधने का तरीका है |
प्राणायाम - प्राणायाम - प्राण + आयाम | इसका शाब्दिक अर्थ है - ‘प्राण ( श्वसन ) को लंबा करना’ या ‘प्राण ( जीवनशक्ति ) को लंबा करना’ (प्राणायाम का अर्थ स्वास को नियंत्रण करना या कम करना नहीं है |) प्राण या स्वास का आयाम या विस्तार ही प्राणायाम कहलाता है | यह प्राण शक्ति का प्रवाह कर व्यक्ति को जीवन शक्ति प्रदान करता है |
प्रत्याहार - इन्द्रियों को अन्तर्मुखी करना महर्षि पतंजलि के अनुसार जो इन्द्रियां चित को चंचल कर रही है ,उन इन्द्रियों का विषयों से हट कर एकाग्र हुए चित स्वरूप का अनुकरण करना ही प्रत्याहार है |
प्रत्याहार से इन्द्रियां बस में रहती है | और उन पर पूर्ण विजय प्राप्त हो जाती है | अत चित के निरुद्ध हो
जाने पर इन्द्रियां भी उसी प्रकार निरुद्ध हो जाती है | जिस प्रकार रानी मधुमक्खी के एक स्थान पर रुक जाने पर अन्य मधुमखियाँ भी उसी स्थान पर रुक जाती है |
धारणा - धारणा शब्द धृ धातु से बना है जिसका अर्थ होता है संभालना ,थामना या सहारा देना | योग दर्शन के अनुसार मन के भीतर या बाहर विशेष पर चित्त को स्थिर करने का नाम धारणा है | आशय यह कि है की यम,नियम,आसन,प्राणायाम और प्रत्याहार द्वारा इंद्रियों को उनके विषयों से हटाकर चित में स्थिर किया जाता है | स्थिर हुए चित को एक स्थान पर रोक लेना ही धारणा है |
ध्यान - किसी एक स्थान पर या वस्तु पर निरंतर मन स्थिर होना ही ध्यान है |
समाधि -ध्यान की उच्च अवस्था को समाधि कहते हैं | हिंदू जैन बौद्ध तथा योगी आदि सभी धर्मो में इसका महत्व बताया गया है | जब साधक ध्येय वस्तु के ध्यान में पूरी तरह से डूब जाता है और अपने अस्तित्व का ध्यान नहीं रहता तो उसे समाधि कहा जाता है |
ध्यान के वस्तु को चैतन्य के साथ विलय करना | इसके दो प्रकार है - सविकल्प और अविकल्प | अविकल्प समाधि में संसार में वापस आने का कोई मार्ग या व्यवस्था नहीं होती | यह योग पद्धति की चरम अवस्था है |
सरदार वल्लभभाई पटेल
मैं शिक्षक हूँ
श्वेता रसवंत,वसन्त विहार(नई दिल्ली)
मैं शिक्षक हूँ
और मुझे शिक्षक होने पर गर्व है
मैं राष्ट्र का निर्माता व भविष्य की रक्षक हूँ।
(मगर )शिक्षक होने से पूर्व मैं भी हूँ शिक्षार्थी एक।
मेरे भी शिक्षक है एक नही अनेक।
जन्म से पूर्व ही अभिमन्यु बन मेने भी कुछ सीखा होगा।
आज जो हूँ मै उस पर जन्मपूर्व शिक्षा का , कुछ अंश अवश्य दिखता होगा।
जन्म के बाद माँ ने मेरी लोरी गा कर सुनाई होगी।
और इस तरह दादा दादी मां पिता की झलक बचपन सेही मुझमे छाई होगी।
दाखिला लिया होगा शिक्षालय में
शिक्षक से सीखना शुरू हुआ होगा।
यहाँ तक कि शिक्षा थी नीव मेरी।
दिखाई देती नही कभी।
मुझको भी धुंधली याद ही है पर
इन गुरुओं बिन आगे की शिक्षा न पाई होती।
नमन करती हूं इन शिक्षको को
जिन्होंने आगे की राह बनाई होगी।
फिर सिलसिला चला शिक्षा का।
अनेक शिक्षकों ने मुझे थी शिक्षा दी।
शिक्षक बनने की इच्छा भी उनके महान चरित्र ने मुझमे जगाई जो थी।
मैं करती थी शिक्षक का मान बहुत, दिल मे भी था सम्मान बहुत।
बचपन मे खेल खेल में अनेक बार शिक्षक की भूमिका निभाती में थी।
अच्छा लगता था टीचर बन कर
सहपाठियों संग पढ़ना व पढ़ाना मुझे।
फेवरेट टीचर सा पाठ पढ़ाना व यू अपना पाठ भी दोहराना मुझे।
फिर बन गई सचमुच में मैं भी शिक्षिका
और बच्चों में खुद को पाने लगी अंतिमा।
अपने कर्तव्यों पर खड़ा उतरना है, सोचने लगी
मन मे मेरे यह बात अब थी आने लगी।नई पीढ़ी को अब मैं पढ़ाने लगी।
शिक्षा संग मूल्यों को भी मैं जगाने लगी।
समय के साथ बच्चे अब बदलने लगे।
गूगल बाबा को शिक्षक बनाने लगे।
वो पहले ,सा उनमें ठहराव नही। बेवसाइटों की अब तो कमी नही।
शिक्षक सा स्नेह डिजिटल गुरु दे सकता नही।
मातृत्व रूपी आँचल वहाँ मिलता नहीं।
शिक्षक हूँ मैं ,शिक्षार्थी को सही राह दिखाउंगी।
आचरण से सिखला कर आचार्य बन जाऊंगी।
बच्चो को ज्ञान की शक्ति संग सम्पूर्ण प्रेम भी मैं दूँगी।
उनकी गलतियों पर ख़फ़ा में हो जाऊं मगर बद्दुआ उन्हें कभी भी ना दूँगी।
राष्ट्रप्रेम की भावना, हर मन मे मुझे जगानी है।
विश्वगुरु बने भारत मेरा,यही राह सिखलानी है।।
वो आगे बढे, और सुखी रहे चरित्र के सच्चे , व ज्ञानी बने।
माता पिता का मान बने, मेरे भारत का अभिमान बने।।
हर शिक्षार्थी को खुला आसमान मिले।समाज मे उसका मान बड़े।
चरित्र से सदा पाक साफ बने।
शिक्षक दिवस पर हमें यही उपहार मिले।।
खानदान
किशन लाल शर्मा
30 जनवरी 1972 को घर छुट्टी आया हुआ था और पोस्ट - ऑफिस में कुछ काम से गया था। वहां पिलानी के स्थानीय छात्र मिल गए। कुशल मंगल पूछा। पूछने लगे मेजर साहब बांग्लादेश की लड़ाई के समय आप कहाँ पर थे ? मैंने बताया मैं पूर्वी क्षेत्र में था। अभी अगरतला से आया हूँ , लड़ाई के समय तो हमने चटगांव कैप्चर किया था। छात्र यह जानकार बड़े खुश हुए। बोले आज 30 जनवरी है। अखिल भारतीय महात्मा गाँधी मेमोरियल डिबेट तीन बजे सेंट्रल ऑडिटोरियम में है। विषय है ; क्या भारत द्वारा एक तरफ़ा युद्ध विराम की घोषणा करना ठीक है या गलत। आप ही के मतलब का विषय है ; आप अवश्य आएं। मैं जब हॉल में जाने लगा तो पाया उस डिबेट का सभापति उन्होंने मुझे घोषित किया हुआ था। डिबेट के पश्च्यात मैंने बांग्लादेश की लड़ाई की कुछ आँखों देखी बातें बताईं। BITS , पिलानी का एक पूर्व छात्र जो अभी -अभी लड़ाई के क्षेत्र से आया है और उसने अपने अनुभव डिबेट के बाद साझे किये तो जो छात्र - छात्राएं उस फंक्शन में नहीं आये थे वह सब भी मुझे सुनना चाहते थे। तीन - चार फरवरी को मेरा भाषण इंजीनियरिंग हॉल में रखा गया था और उस दिन हॉल खचाखच भरा हुआ था। अगस्त से दिसंबर तक हम लड़ाई की तैयारी में लगे थे। बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी की ट्रेनिंग दी थी। उसके बाद चटगांव की लड़ाई तक के बहुत सारे अपने अनुभव बताये। आज मैं अपने लेक्चर की पूरी तैयारी करके गया था। हॉल के बाहर चटगांव नेवी बेस से लाये हुए कुछ नेवी वालों के कोट के पीतल के बटन , कई रेल टिकट तथा कुछ अन्य आइटम्स आदि एक टेबल पर रखे थे। लेक्चर के बाद बच्चों ने बड़े उत्साह के साथ टेबल पर रखी चीजों को देखा। यह तो स्वाभाविक सी बात है बाद में टेबल पर किलो - सवा किलो पीतल के बटनों में से आधा किलो बटन ही बच पाए होंगे। लेक्चर के बाद मैं घर आ गया और पिताजी के साथ कॉफ़ी पी रहा था। थोड़ी देर में घंटी बजी और मैं घर के बाहर आया। दो हॉस्टल के छात्र मुझसे मिलने के लिए आये थे। एक छात्र ने शुरुआत की। अंकल ये आपका घर नहीं जानते थे इसलिए ये मुझे घर बताने के लिए साथ लाए हैं। ये आपसे कोई बात करना चाहते हैं। दूसरे छात्र ने बड़ी झिझक के साथ बोलना शरू किया। अंकल आपके लेक्चर के बाद सभी लोग हॉल के बाहर टेबल पर रखे पीतल के बटन उठा रहे थे। मैंने भी ये बटन वहां से उठा लिए थे। अपने कोट की जेब से बटन निकालते हुए उस छात्र ने बताया कि अंकल हॉस्टल में कमरे में जा कर मैंने यह महसूस किया कि मैंने यह गलत काम किया है। सभी स्टूडेंट्स उठा रहे थे तो मैंने
भी उनकी देखा - देखी कुछ बटन उठा लिए। मैंने गलत काम किया। ये बटन मैं आप को लौटने आया हूँ। मैं आपका घर नहीं जानता था ; इसलिए मैं इनको साथ लाया हूँ। दूसरे छात्र ने अब इस छात्र का परिचय दिया। अंकल ! इसका नाम सुनील शास्त्री है। ये हमारे स्वर्गीय पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के छोटे पुत्र हैं। यह परिचय सुन कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई। मैंने बटन लौटते हुए सुनील शास्त्री को कहा , बेटा ! मैं तुम्हारी जगह होता तो बाकी स्टूडेंट्स की भांति मैं भी बटन उठा कर लाता। ये बटन मैं भी तो यादगार के लिए चटगांव से उठा कर लाया हूँ। अब ये बटन आपको मेरी तरफ से एक भेंट हैं। आप अपने पास रखें। हमें घमंड है आप शास्त्री जी के पुत्र हो और उन्हीं की तरह एक सच्चे और ईमानदार इन्सान हो। मेरा आपको बहुत - बहुत आशीर्वाद है। यहां कुछ खानदान की परिभाषा समझ आती है।
लाल बहादुर शास्त्री
शास्त्री जी एक सामान्य परिवार में पैदा हुए थे,सामान्य परिवार में ही उनकी परवरिश हुई और जब वे देश के प्रधानमंत्री बने तबभी वह सामान्य ही बने रहे। विनम्रता सादगी और सरलता उनकी पहचान थी
धर्म संकट
–शिखा धीमान
एक बार की बात है एक गजानन्द नाम का व्यक्ति बहुत ही पुण्यात्मा व्यक्ति था. ईश्वर के प्रति परम् आस्था थी.
वो अपने परिवार सहित जिसमे उसकी पत्नी और छोटे छोटे बच्चे थे सब को लेकर तीर्थ यात्रा के लिए निकला। ये घटना उस ज़माने की है ज़ब सिर्फ बैल गाड़िया अथवा घोड़ा गाड़िया ही हुआ करती थी.
गजानंद परिवार सहित पैदल ही यात्रा करता हुआ बहुत दूर तक जा पहुंचा. जेठ की गर्मी थी थकान के मारे पूरे शरीर से पसीना छूटने लगा प्यास से गला सूखने लगा तो एक पेड़ की छाँव मे रुके और अपने साथ जो पानी लाए थे उसे पी कर अपनी प्यास बुझाई.
कुछ देर आराम करने के बाद आगे की यात्रा तय करने लगे… अब चलते चलते ऐसी जगह पर पहुंचे की दूर दूर तक कोई नही, गर्मी भी अपनी चरम सीमा पर आग बरसा रही थी…
अब साथ मे जो पानी लाए थे वो भी खत्म हो चुका था.
गजानंद ईश्वर का नाम जपते भजते हुए आगे बढ़ते रहा और ईश्वर से कहता रहा हे ईश्वर तू ही कोई मार्ग दिखा.
तभी कुछ दुरी पर गजानंद को एक साधु तप करता हुआ नजर आया, व्यक्ति ने उस साधु से जाकर अपनी समस्या बताई। साधु बोले कि यहाँ से एक कोस दूर उत्तर की दिशा में एक छोटी दरिया बहती है,
जाओ जाकर वहाँ से पानी लेकर अपने परिवार की प्यास बुझा लो। साधु की बात सुनकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई और उसने साधु को धन्यवाद दिया। पत्नी एवं बच्चों की स्थिति नाजुक होने के कारण गजानंद ने रुकने के लिये बोला और खुद बाल्टी उठाए पानी लेने चला गया।
गजानंद दरिया से पानी लेकर लौट रहा था तो उसे रास्ते में पाँच व्यक्ति मिले जो अत्यंत प्यासे थे। पुण्य आत्मा को उन पाँचो व्यक्तियों की प्यास देखी नहीं गयी और अपना सारा पानी उन प्यासों को पिला दिया।
जब वो दोबारा पानी लेकर आ रहा था तो पाँच अन्य व्यक्ति मिले जो उसी तरह प्यासे थे। पुण्य आत्मा गजानंद सोच मे पड़ गया की अरे प्रभु ये कैसी लीला है तेरी.
अब ये कैसे धर्म संकट मे फंसा दिया मुझे. वहाँ मेरी पत्नी और बच्चे प्यास से व्याकुल है और यहां ये लोग भी बुई हालत मे. अब ऐसे मे इनको प्यासा छोड़ कर चला जाऊ तो स्वार्थी कहलाऊंगा. और समय पर उन तक ना पहुंचा तो पापी कहलाऊंगा.
ये कैसी परीक्षा है प्रभु, कृपया कोई मार्ग दिखाओ. इस बार फिर गजानंद ने उनसब को पानी पिला दिया और तेजी से दौड़ता हुआ दरिया से फिर पानी ले आया.
यही घटना बार-बार हो रही थी, और काफी समय बीत जाने के बाद जब वो नहीं आया तो साधु उसकी तरफ चल पड़ा। बार-बार उसके इस पुण्य कार्य को देखकर साधु बोला- “हे पुण्य आत्मा, तुम बार-बार अपनी बाल्टीभरकर दरिया से लाते हो और किसी प्यासे के लिए खाली कर देते हो।यह जानते हुए भी की उधर तुम्हारे बच्चे भी प्यासे है. इससे तुम्हें क्या लाभ मिला?
पुण्य आत्मा ने बोला मुझे क्या मिला, या क्या नहीं मिला इसके बारे में मैंने एक बार भी विचार नही किया पर मैंने अपना स्वार्थ छोड़कर अपना धर्म निभाया।
साधु बोला आखिर ये कैसा धर्म है – “ऐसे धर्म निभाने से क्या फायदा जब तुम्हारे अपने बच्चे और परिवार ही जीवित ना बचें?
तुम अपना धर्म ऐसे भी निभा सकते थे जैसे मैंने निभाया। पुण्य आत्मा ने पूछा- “कैसे महाराज?
साधु बोला- “मैंने तुम्हे दरिया से पानी लाकर देने के बजाय दरिया का रास्ता ही बता दिया। तुम्हें भी उन सभी प्यासों को दरिया का रास्ता बता देना चाहिए था।
ताकि तुम अपने परिवार की प्यास भी बुझा सको और अन्य प्यासे लोगों की बहुत प्यास बुझ जाए । फिर किसी को अपनी बाल्टी खाली करने की जरुरत ही नहीं”। इतना कहकर साधु अंतर्ध्यान हो गया।
इस तरह तुम इस धर्म संकट से बाहर निकल सकते थे.
यह सुन गजानंद तुरंत बाल्टी मे पानी लिए सबको दरिया का रास्ता बताता हुआ अपने परिवार की प्यास बुझाने के लिए दौड़ा.
सीख - इस कहानी से हमें सीख मिलती है हम ज़ादा से ज़ादा लोगों की मदद कैसे कर सकते है.
यदि जीवन मे किसी मदद या सेवा करना चाहते हो तो कोसिस यही करो की उसे खुद इतना समर्थवान बना दो की वो अपना आगे का जीवन स्वयं सवारने योग्य हो जाए. इस तरह हम ज्यादा लोगों की मदद और सेवा कर पाएंगे|ज़ब आपको लगे की सामने वाले मे सामर्थ्य है या उसे सामर्थ्यवान बनाया जा सकता है तो उसे ज्ञान दो.उसे वो मार्ग बना दो जिससे वो अपना हित खुद कर सके|
जहाँ सुमति तहाँ सम्पति नाना; जहाँ कुमति तहाँ बिपति निदाना|
जिस घर में आपसी प्रेम और सद्भाव होता है वहां सारे सुख और संपत्ति होती है और जहाँ आपस में द्वेष और वैमनष्य होता है उस घर के वासी दुखी व विपन्न हो जाते हैं |
जहाँ माता पिता अपनी संतानों को बोझ समझते हैं वह संतानें भी समय आनेपर अपने माता पिता से दुर्व्यवहार करती है और उन्हें दाने दाने को मोहताज कर देती है|
और जहाँ माता पिता अपने बच्चों को प्रेम और सद्भाव के वातावरण में पालते हैं और उन्हें अपने कार्य कलापों द्वारा सही शिक्षा देते हैं, वो संतानें जिस भी कार्य को हाथ में लेती हैं उसमें सफलता प्राप्त करती हैं | माता पिता जितनी भी संतानें हो उन्हें पलने पोसने और उनको व्यवस्थित रूप में स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ती है. वहीं पर माँ बाप बूढ़े हो जाने पर अपनी संतानों को बोझ लगने लग जाते हैं. इसमें पूर्व कर्म को छोड़ दिया जाय तो कहीं ना कहीं माँ बाप कि गलती भी हो सकती है, उन्होंने अपने संतानों को सही मूल्य नहीं दिए हों या फिर उनका खुदका व्यवहार अपने माता पिता के प्रति अच्छा ना रहा हो जिसे देखा कर संतानों ने उन्हीं से यह शिक्षा पाई हो |
भारत शब्द का उदय और वास्तविक भावार्थ
डी के गर्ग,सहयोग:आचार्य राहुलदेव,दिल्ली
यह तो आप स्वीकार करते है की भारत देश अतीत में सोने की चिड़िया और विश्व गुरु के नाम से जाना जाता रहा है। हमारे ऋषि मुनि विज्ञान , अध्यात्म ,चिकित्सा और शिक्षा के क्षेत्र में विश्व गुरु रहे है। चाणक्य, आर्यभट्ट, शुश्रुत,चरक, धनवंतरी, अत्रि ऋषि, गौतम , विश्वामित्र आदि अनंत ऋषि हुए है जिनका लोहा विश्व आज भी मानता है ।
हमारे मूल ग्रंथ संस्कृत भाषा में ही है।संस्कृत हमारी देव भाषा है और अन्य सभी भारतीय भाषाएं भी संस्कृत भाषा का ही प्रत्यक्ष या अप्रत्क्षय रूप है । हमारे पुरातन ग्रंथ परमात्मा की वाणी चारो वेद भी संस्कृत में है ।इसलिए हमारे नाम ,शहरो के नाम,नदियों के नाम आदि भी संस्कृत भाषा से प्रभावित है ।इससे यह भी पता लगता है कि हमारे पर्वतों, नदियों, नगरों आदि के नाम भी वेदों से लिये गये हैं।
उपरोक्त विशिष्ट विशेषताओं वाले देश को भारत नाम दिया गया। और यहाँ रहने वाले भारतीय।
ये एक सम्मान सूचक शब्द है।जिसके हम सभी हकदार है।इसी भूमि पर राम,कृष्ण,बुद्ध,दयानंद जैसे महापुरुष पैदा हुए।
भारत शब्द का भावार्थ
जब भी कोई शब्द विशेष रुप से चर्चा में आता है तो उस शब्द का वास्तविक भावार्थ समझने के लिए मैं उस शब्द को पहले वेद में तलाश करके उसके विभिन्न भावार्थ का अध्ययन करता हूं।
चारो वेद में ढूंढने से मालुम हुआ कि भारत शब्द मूल रुप से वैदिक शब्द है। यह शब्द वेद में भी मिलता है। इसका अर्थ भी बहुत अच्छा है। ये ध्यान रहे की वेदों मंत्रो में 'भारत' शब्द द्वारा कोई भारत का इतिहास या भारत की कोई गाथा नहीं गाई गई है। क्योंकि वेदों में कोई इतिहास नहीं होता। परन्तु हमारे भारतीय शब्दों की महिमा क्या होती है, हमारे शब्द कितने अर्थ पूर्ण और भाव पूर्ण होते है उसका अनुभव आपको जरूर होगा।
आइए इसका भावार्थ समझते है।
'भासृ दीप्तौ' धातु से भारत शब्द बनता है अर्थात् प्रकाश या ज्ञान में रत रहने वाला 'भारत' कहलाता है।
हमारे गौरव और स्वाभिमान के प्रतीक 'भारत' शब्द को चारों वेदों में ढूंढने पर छः मन्त्रों में भारत शब्द मिलता है।
*श्रेष्ठं यविष्ठ भारताग्ने द्युमन्तमा भर।*
*वसो पुरुस्पृहं रयिम्॥* - ऋग्वेद २/७/१
*पदार्थ -* हे (वसो) सुखों में वास कराने और (भारत) सब विद्या विषयों को धारण करनेवाले (यविष्ठ) अतीव युवावस्था युक्त (अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशमान विद्वान् ! आप (श्रेष्ठम्) अत्यन्त कल्याण करनेवाली (द्युमन्तम्) बहुत प्रकाशयुक्त (पुरुस्पृहम्) बहुतों को चाहने योग्य (रयिम्) लक्ष्मी को (आ, भर) अच्छे प्रकार धारण कीजिये।
*-त्वं नो असि भारताग्ने वशाभिरुक्षभिः।*
*अष्टापदीभिराहुतः॥* - ऋग्वेद २/७/५
*पदार्थ -* हे (भारत) सब विषयों को धारण करनेवाले (अग्ने) विद्वान् ! जो (वशाभिः) मनोहर गौओं से वा (उक्षभिः) बैलों से वा (अष्टापदीभिः) जिनमें आठ सत्यासत्य के निर्णय करनेवाले चरण हैं। उन वाणियों से (आऽहुतः) बुलाये हुए आप (नः) हम लोगों के लिये सुख दिये हुए (असि) हैं।सो हम लोगों से सत्कार पाने योग्य हैं।
*य इमे रोदसी उभे अहमिन्द्रमतुष्टवम्।* *विश्वामित्रस्य रक्षति ब्रह्मेदं भारतं जनम्॥*
- ऋग्वेद ३/५३/१२
*पदार्थ -* हे मनुष्यो ! (यः) जो (इमे) ये (उभे) दोनों (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी (ब्रह्म) धन वा ब्रह्माण्ड (इदम्) इस वर्त्तमान (भारतम्) वाणी के जानने वा धारण करनेवाले उस (जनम्) प्रसिद्ध मनुष्य आदि प्राणि स्वरूप की (रक्षति) रक्षा करता है जिस (इन्द्रम्) परमात्मा की हम (अतुष्टवम्) प्रशंसा करें उस (विश्वामित्रस्य) सबके मित्र की ही उपासना आप लोग करें।
*तस्मा अग्निर्भारतः शर्म यंसज्ज्योक्पश्यात्सूर्यमुच्चरन्तम्।*
*य इन्द्राय सुनवामेत्याह नरे नर्याय नृतमाय नृणाम्॥*
- ऋग्वेद ४/२५/४
*पदार्थ -* हे मनुष्यो ! (यः) जो (अग्निः) अग्नि के सदृश वर्त्तमान (भारतः) धारण करनेवाले का यह धारण करनेवाला (शर्म्म) गृह के सदृश सुख को (यंसत्) प्राप्त होवे वह (उच्चरन्तम्) ऊपर को घूमते हुए (सूर्य्यम्) सूर्य्यमण्डल को (ज्योक्) निरन्तर (पश्यात्) देखे (तस्मै) उस (नृणाम्) विद्या और उत्तमशीलयुक्त मनुष्यों के (नृतमाय) अत्यन्त मुखिया (नरे) नायक (नर्य्याय) मनुष्यों में कुशल (इन्द्राय) उत्तम ऐश्वर्य्यवान् के लिये (इति) ऐसा (आह) कहता है, उसको हम लोग (सुनवाम) उत्पन्न करें।
आग्निरगामि भारतो वृत्रहा पुरुचेतनः। दिवोदासस्य सत्पतिः॥ - ऋग्वेद ६/१६/१९
पदार्थ - हे विद्वान् जनो ! जो (दिवोदासस्य) प्रकाश के देनेवाले का (भारतः) धारण करने वा पोषण करने और (वृत्रहा) मेघ को नाश करनेवाला (पुरुचेतनः) बहुत चेतन जिसमें वह (सत्पतिः) श्रेष्ठ स्वामी (अग्निः) अग्नि के सदृश तेजस्वी सूर्य्य (आ, अगामि) प्राप्त किया जाता है, उसका हम लोग सेवन करें।
उदग्ने भारत द्युमदजस्रेण दविद्युतत्। शोचा वि भाह्यजर॥ - ऋग्वेद ६/१६/४५
पदार्थ - हे (भारत) धारण करनेवाले (अजर) जरा दोष से रहित (अग्ने) विद्वन् ! आप (अजस्रेण) निरन्तर (द्युमत्) प्रकाशवाले को (दविद्युतत्) प्रकाशित करते हो, उसके लिये आप (उत्, शोचा) अत्यन्त प्रकाशित हूजिये और (वि, भाहि) विशेष करके प्रकाशित करिये।
देवी के कुछ मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
जो देवी माँ संसार के सभी प्राणियों में शक्ति रूप में विद्यमान हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
जो देवी माँ संसार के सभी प्राणियों में विष्णुमाया के नाम से कही जाती हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते ।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी माँ संसार के सभी प्राणियों में चेतना कहलाती हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता ।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी माँ संसार के सभी प्राणियों में बुद्धि के रूप में विद्यमान हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो देवी माँ संसार के सभी प्राणियों में निद्रा के रूप में विद्यमान हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है।
किताब
जीवन के पथ पर राह दिखाती है
हर मुश्किल आसान बनाती है
इस जीवन में जिसका सच्चा साथ
कोई और नहीं वो है 'किताब'
किंकर्तव्यविमूढ़ हम होते हैं जब,
ये ही समाधान बताती है
दूर कर देती है जो सब भटकाव
कोई और नहीं वो है 'किताब'
गूढ रहस्य समझाती है , जीवन के
आलोकित करती ये अंतस तम हर के
अवचेतन मन में जो लाती है ठहराव
कोई और नहीं वो है 'किताब'
सरिता बहती है इससे ज्ञान की
रक्षा होती है इससे सम्मान की
करती नहीं है कभी कोई भेदभाव
कोई और नहीं है वो है 'किताब'
रूपा शर्मा नौएडा
स्वप्न क्यों दिखते है
किशन लाल शर्मा
अचानक से पिछले कुछ दिनों में रात को सोते हुए सपनों में मुझे रोज सांप दिखाई देने लगे। मैं अक्सर सांप से डरता नहीं हूँ फिर भी प्रति दिन रात को कोई भी सपना आये ; उसमें सांप अवश्य कहीं न कहीं लटका हुआ , चलता हुआ ; छुपा हुआ दिखाई दे। मुझे सपने याद रहते हैं। दूसरे दिन सुबह उठ कर जब मुझे रात में देखे हुए सपने की याद आती है और उसमें सर्प देवता जी के दर्शनों का स्मरण होता है तो मन को कुछ अच्छा नहीं लगता। कम से कम रात में सोते हुए सपना तो अच्छा आये। जीवन में सपनों की दुनिया में ही तो सबसे अधिक आनंद आता है।
दिन में मैं मित्रों से चर्चा करता कि मुझे रोज रात को साँपों के सपने आते हैं। इसका क्या कारण हो सकता है ? क्या भगवान शिव मुझसे नाराज हैं ? मुझे क्या उपाय करना चाहिए जिससे कि रात को मुझे सपनों में सांप दिखने बंद हो जाएं। उन सभी का यही मत होता था
कि मैं दिन में सांपों के चित्र ना देखूं और ना ही सांपों के विषय पर किसी से चर्चा करूं। जब मैं साँपों को दिन में याद ही नहीं करूंगा तो वह मेरे सपनों में नहीं आएंगे। मैं तो सांपों को बिलकुल भी याद नहीं करता था; फिर भी मेरे सपनों में रोज सांप क्यों आते हैं ? मैं
बहुत परेशान रहता था। कई दिनों से इसका कारण ढूंढने में लगा था और अचानक से उसका कारण मुझे एक दिन मेरे कार गैरेज में ही मिल गया। साइकिल की एक टयूब का लम्बा सा टुकड़ा पड़ा मेरे गैरेज में पड़ा रहता था जिस पर मेरी नज़र रोज जाती थी। यही काला सा साइकिल की टयूब का टुकड़ा रोज मेरे सपने में सांप बन कर दिखाई देता था। बड़े आश्चर्य की बात है कि कुछ सेकण्ड्स के लिए यह साइकिल टयूब का टुकड़ा मेरी आँखों के सामने आता था जिस पर मैं कोई विशेष ध्यान भी नहीं देता था। फिर भी इसका चित्र मेरे स्मृति - पटल पर स्टोर हो जाता था और यही मेरे सपनों में सांप बन कर दिखाई देता था। जैसे ही मेरे मस्तिष्क ने रोज रात में साँपों के सपनों में आने के कारण को इंगित किया , मैंने तत्काल उस साइकिल के टयूब के टुकड़े को वहां से हटा दिया। उस दिन के बाद रात में मेरे सपनों में सांपों ने आना बंद कर दिया ।
इस घटना से एक शिक्षा तो स्पष्ट तौर से यह मिलती है कि आप चाहें या ना चाहें , मानव शरीर की आँखें एक क्लोज सर्किट टी० वी० / कैमरे की भांति हैं; जिसके समक्ष जो कुछ हो रहा है, जिसे वह देख या उसके कान सुन रहे हैं, वह आपके मस्तिष्क नुमा सुपर कंप्यूटर की हार्ड डिस्क में भेज रही है और वह सब लगातार आपके मस्तिष्क की मेमोरी ( स्मरण -शक्ति ) में रिकॉर्ड ( जमा ) होता रहता है। अपने घर की चारदीवारी में, बाहर सड़क, बाजार, गांव , शहर स्कूल - कॉलेज , देश - विदेश , समाचार - पत्रों , रेडियो या टी० वी० में जो कुछ हो रहा है जिसे आप देख वा सुन रहे हैं ,वह सब रिकॉर्ड हो रहा है। जो कुछ आप सुन या देख रहे हैं उसको यदि आप दोहराते रहे हैं तो वह विषय या घटना आपकी स्मरण - शक्ति में अधिक समय तक रहती है ; अन्यथा धीरे - धीरे वह समय के अनुसार आपकी स्मृति से विलुप्त हो जाती है।
भगवान राम ने आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक मां दुर्गा की उपासना की थी। इसके बाद दशमी तिथि को उन्होंने रावण का वध किया था। इसी कारण हर साल विजयदशमी के पर्व को मनाया जाता है।
संस्मरण
किशन लाल शर्मा
सन 1962 में चीन ने अकारण ही भारत पर हमला कर दिया और तिब्बत तथा भारत के बहुत सारे क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया। भारत ने अपनी सुरक्षा के लिए सेना का विस्तार करना आरम्भ किया। मैंने एन० सी० सी० के सभी सर्टिफिकेट पास कर रखे थे। देश की रक्षा
के लिए सेना में सेकण्ड - लेफ्टिनेंट भर्ती हो गया। उस समय देश में अलग ही जोश था। पल्टन से अपने घर पिलानी ( झुंझुनू ) छुट्टी जा रहा था। दिल्ली से रोहतक - भिवानी होते हुए पंजाब रोडवेज की बस पिलानी जाती थी। बस भिवानी बस -अड्डे पर रुकी हुई थी।
एक सज्जन बहुत परेशान से थे ; उन्होंने मुझसे आकर पूछा , क्या आप पिलानी जा रहे हैं ? मैंने हाँ कहा। कहने लगे मेरा बेटा बिड़ला हाई स्कूल में पढ़ता है। उसका आज पत्र आया है। उसकी हॉस्टल की मेस्सिंग की फीस समाप्त होगई है। क्या आप उसके हॉस्टल में
यह पच्चास रुपये जमा करा देंगे ? बच्चे का नाम और कक्षा एक कागज़ पर लिख कर दे गए। उन्होंने मेरा नाम या परिचय नहीं पूछा। बस पिलानी पहुंची और मैं बिड़ला हॉस्टल जो रास्ते में पहले आता है ; उतर कर हॉस्टल -वार्डन सर के घर गया। उन्होंने मुझे स्कूल में
पढ़ाया था और वह मेरे एन० सी० सी० के सर भी थे। मुझे देख कर बहुत खुश हुए। उनका एक एन० सी० सी० कैडेट अब सेना में सेकण्ड - लेफ्टिनेंट बन गया है। सर को जब मैंने अपने आने का कारण बताया तो उस छात्र को उन्होंने बुलवाया और मैंने उसे पच्चास रुपये
दिए और उससे कहा अपने पापा को एक पोस्ट - कार्ड लिख देना कि तुम्हें पैसे मिलगये हैं। उसके बाद हॉस्टल से मैं अपने घर चला गया।
यह घटना उस समय की है जब मोबाइल फोन या पे - टीएम आदि की सुविधा नहीं थी। एक सेकण्ड - लेफ्टिनेंट ; जिसका एक महीने का वेतन कुल चार सौ और बीस - तीस रुपये था। उस समय पच्चास रुपये एक अच्छी खासी रकम हुआ करती थी। जिन सज्जन ने मुझे ये पच्चास रुपये दिए वह ना मुझे जानते थे ना मैं कभी उनसे मिला था। उन्होंने तो मेरा नाम भी नहीं पूछा। मेरा नाम किशन लाल है। मैं उनको मुरारी लाल भी बता सकता था। मैं छुट्टी आया था। पूरे पच्चास रुपये मिले थे ; छुट्टियों में यार - दोस्तों में मौज मस्ती के लिए। ये रुपये मैंने अपनी जेब में क्यों नहीं रख लिए ? हॉस्टल में जा कर उस छात्र को क्यों दे कर आया ? ऐसे विचार मेरे मन में उस समय क्यों नहीं आये ? शायद समाज का उस समय का वातावरण इतना दूषित नहीं था , जैसा आज है। मैं आज सत्तर साल बाद यह बात सोचता हूँ कि यदी मैं उस समय पच्चास रुपये अपनी जेब में रख लेता और उसके बाद जब भी मेरी बस भिवानी के बस स्टेंड पर रुकती तो मेरा मन अंदर से मुझे कोसता।
बेटा ! तूने किसी के साथ धोखा किया था। और यदि मैंने ऐसा धोखा उस समय किया होता तो आज मैं ये घटना लिख भी नहीं सकता था।
जम्मू - काश्मीर सीमा पर सियालकोट सैक्टर में सुचेतगढ़ बी० एस० एफ० की एक पोस्ट है। युद्ध योजना में सेना का भी वहाँ कुछ रोल है। सर्दियों में हम अपने जवानों को उस क्षेत्र की यदा -कदा रेकी करवाते हैं। एक रात मैंने देखा जिस बरसिम की खेती में मेरा तम्बू है
उसके पास के खेतों में एक किसान पानी दे रहा है। मैंने संतरी को आवाज दी और कहा , मेरे थर्मस से एक मग में चाय ले जाओ और जो किसान खेती में पानी दे रहा है उसको चाय पिलाओ और उस से पूछो अगर उसको इस खेत में भी पानी देना है तो मेरा तम्बू अभी निकाल कर कच्चे रास्ते पर रात के लिए लगा दो। संतरी थोड़ी देर में लौट कर आया और बोला; साहब ! वह सिविलियन कह रहा है कि उसे आज इस खेत में पानी नहीं देना है । उसने चाय नहीं पी साहब और बोला वह चाय नहीं पीता। मैंने संतरी को दुबारा उस किसान के पास भेजा और कहा , जाओ और उसको हुक्म से चाय पिला कर आओ। इतनी ठंड में सुबह - सुबह पानी दे रहा है। उसे ठंड लग रही होगी। उसे बोलना हम चाय पिला रहे हैं; शराब नहीं। बोलो साहब ने हुकम दिया है , तुम चाय पियोगे। उस किसान ने चाय पी ली।
उस दिन सुचेतगढ़ पोस्ट की रेकी कर हम ग्यारह - बारह बजे लौटे। अच्छी धूप खिली थी, मैं अपना कम्बल बिछा कर जमीन पर लेट कर आराम करने लगा था। खेत की दूसरी ओर मांद पर मैंने खेत के किसान को बैठा हुआ देखा। मैंने हाथ का इशारा देकर किसान को पास बुलाया। वह आकर पास में बैठ गया। मैंने उससे पूछा , क्या ये आपका खेत है ? उसने कहा , हाँ ! ये हमारा खेत है। मैंने कहा आज तो आपने इसमें पानी नहीं दिया , इससे आपको तो नुकसान होगा। ये तो आपने बरसीम लगाई है। इसको तो पानी चाहिए। बोला कोई बात नहीं ; आजकल ठंडी का मौसम है , अगले गेडे में पानी लग जायेगा। अब तब संतरी हम दोनों के लिए मग में चाय ले आया था। चाय पीते हुए किसान ने मुझसे पूछा ,साहब !
आप कहाँ के रहने वाले हैं ? रात आपने मुझे ठण्ड में हुकम देकर चाय पिलाई। मैंने गांव के बड़े - बूढ़े को जाकर यह सब बताया। फ़ौज वाले तो यहां अपनी एक्सरसाइज करने सालों से आते - जाते रहे हैं। ये खेत तो हमारे हैं। हम तो यहीं रहते हैं। पर आज तक किसी भी मेजर ने मेरे साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जैसा आपने किया। आप अपना तम्बू रात को ही हटाने के लिए तैयार हो गए; जिससे मैं खेत को पानी दे दूँ। मेरा नुकसान ना हो। और फिर मैंने शंका - शर्म से आपकी चाय पीने के लिए मना किया तो आपने मुझे हुकम देकर चाय पीने के लिए कहा। आजतक मैंने आप जैसा मेजर साहब नहीं देखा। मुझे बड़ा अचम्भा हुआ। आपके अच्छे व्यवहार के बारे में पूछने पर उस बूढ़े- बुजर्ग ने कहा , इसके दो कारण हो सकते हैं। एक या तो उस मेजर ने अपने जीवन में बहुत दुःख देखे हैं जिससे वह अब बंदा बन गया है। किसी को दुःख नहीं दे सकता। दूसरा या फिर वो कोई खानदानी आदमी है , कभी किसी के साथ गलत व्यवहार नहीं कर सकता। मैंने थोड़ा मुस्कुरा कर उसको उत्तर दिया , भाई ! ईश्वर की कृपा से मुझे आजतक कभी कोई दुःख नहीं देखने को मिले हैं। हाँ ! घर से मैं एक ठीक घर से हूँ।
महाराजा अग्रसेन
अग्र बंधुओं के पितृपुरुष महाराजा अग्रसेन भगवान राम के वंशज और भगवान श्रीकृष्ण के समकालीन थे। वे राजा राम के पुत्र कुश की 34वीं पीढ़ी की संतान थे। महाभारत के युद्ध में 15 साल की आयु में पिता के साथ शामिल भी हुए थे।
नवदुर्गा
9 दिव्य औषधियां हैं नवदुर्गा के 9 रूप
प्रत्येक देवी आयुर्वेद की भाषा में मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन उचित व साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करतीं है। अत: मनुष्य को इनकी आराधना एवं सेवन करना चाहिए। नवदुर्गा यानि मां दुर्गा के नौ रूप। जानकारों के अनुसार 9 औषधियों में भी विराजते हैं, मां अम्बे के यह नौ रूप, जो समस्त रोगों से बचाकर जगत का कल्याण करते हैं। नवदुर्गा के नौ औषधि स्वरूपों को सर्वप्रथम मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया गया और चिकित्सा प्रणाली के इस रहस्य को ब्रह्माजी द्वारा उपदेश में दुर्गाकवच कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि यह औषधियां समस्त प्राणियों के रोगों को हरने वाली और और उनसे बचा रखने के लिए एक कवच का कार्य करती हैं, इसलिए इसे दुर्गाकवच कहा गया। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष जीवन जी सकता है। यहां हम जानकारों से बातचीत के बाद आपको बता रहे हैं, दिव्य गुणों वाली उन 9 औषधियों के बारे में जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है -
1. प्रथम शैलपुत्री यानि हरड़ - नवदुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। कई प्रकार की समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़, हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप हैं। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है। इसमें हरीतिका (हरी) भय को हरने वाली है।पथया - जो हित करने वाली है। कायस्थ - जो शरीर को बनाए रखने वाली है।अमृता - अमृत के समान।हेमवती - हिमालय पर होने वाली। चेतकी - चित्त को प्रसन्न करने वाली है।श्रेयसी (यशदाता) शिवा - कल्याण करने वाली।
2. द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानि ब्राह्मी - ब्राह्मी, नवदुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। यह आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों का नाश करने वाली और स्वर को मधुर करने वाली है। इसलिए ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है।यह मन व मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है। अत: इन रोगों से पीडित व्यक्ति को ब्रह्मचारिणी की आराधना करनी चाहिए।
3. तृतीय चंद्रघंटा यानि चन्दुसूर - नवदुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इसे चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है, जो लाभदायक होती है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है। अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी को चंद्रघंटा की पूजा करनी चाहिए।
4. चतुर्थ कुष्माण्डा यानि पेठा - नवदुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है, इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक व रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। इन बीमारी से पीडित व्यक्ति को पेठा का उपयोग के साथ कुष्माण्डा देवी की आराधना करनी चाहिए।
5. पंचम स्कंदमाता यानि अलसी - नवदुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता है जिन्हें पार्वती व उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है। अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।इस रोग से पीड़ित व्यक्ति ने स्कंदमाता की आराधना करनी चाहिए।
6. षष्ठम कात्यायनी यानि मोइया - नवदुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है। इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका। इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार व कंठ के रोग का नाश करती है। इससे पीडित रोगी को इसका सेवन व कात्यायनी की आराधना करनी चाहिए।
7. सप्तम कालरात्रि यानि नागदौन - दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है।इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगाने पर घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली और सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है। इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीडित व्यक्ति को करनी चाहिए।
8. अष्टम महागौरी यानि तुलसी - नवदुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है। तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है व हृदय रोग का नाश करती है। तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि: तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् । मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।इस देवी की आराधना हर सामान्य व रोगी व्यक्ति को करनी चाहिए।
9. नवम सिद्धिदात्री यानि शतावरी - नवदुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल व वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। यह रक्त विकार औरं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इससे पीडित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना करनी चाहिए।
इस प्रकार प्रत्येक देवी आयुर्वेद की भाषा में मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन उचित व साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करतीं है। अत: मनुष्य को इनकी आराधना एवं सेवन करना चाहिए।
रानी चेन्नम्मा की जीवनी
वह वीरांगना थीं कित्तूर रानी चेन्नमा। चेन्नमा का जन्म 23 अक्टूबर 1778 ई. में काकतीय राजवंश में कर्नाटक राज्य के बेलगावी जिले के काकती ग्राम में हुआ थारानी ने अपने दत्तक राजकुमार शिवलिंगप्पा को कित्तूर का शासक स्वीकार करने का अनुरोध किया। लेकिन अंग्रेजों ने रानी की यह मांग ठुकरा दी। फौरन ही रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया।
भाषा भेद
- कविता वाचक्नवी
कुटिल होने के कारण आचार्य चाणक्य को कौटिल्य कहा जाता है" यह कथन आज जब विशाखदत्त के संस्कृत नाटक 'मुद्राराक्षस' के हिंदी रुपान्तरण (रांगेय राघव जी द्वारा) के सन्दर्भ के साथ पढ़ने में आया, तो रहा नहीं गया और मुझे लिखना पड़ा कि जिस किसी ने ऐसा लिखा है उस का भाषा से परिचय प्राथमिक स्तर का है। संस्कृत में बहुधा सम्बोधन, विशेषण आदि नाम के रूप में भी आते हैं। जैसे पृथा का पुत्र पार्थ और कुन्ती का पुत्र कौन्तेय, जह्नु की पुत्री जाह्नवी, वचक्नु की पुत्री वाचक्नवी इत्यादि। ऐसे कई हजार उदाहरण हैं। किन्तु जिस प्रकार यहाँ कौटिल्य की व्युत्पत्ति बताई गई है, वह बताने वाले की अल्पमति प्रमाणित करता है। क्योंकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द की एक मूल धातु होती है।
तथा प्रत्येक धातु से सैंकड़ों–हजारों (सकारात्मक-नकारात्मक अर्थात्मक ) शब्द बनते हैं। इसी प्रक्रिया को अपनाने की संस्तुति हमारे संविधान में शब्दनिर्माण के सन्दर्भ में की गई है। अस्तु।
तो संक्षेप में कहना हो तो कौटिल्य शब्द कुटिल से नहीं अपितु कूट (नीति) से आया है। अर्थात् जो कूटनीति का विशेषज्ञ है वह कौटिल्य, न कि जो कुटिल है वह कौटिल्य। दोनों में धरती और आकाश का अन्तर है। आचार्य चाणक्य चन्द्रगुप्त मौर्य के महामन्त्री तथा नन्द वंश के संहारक थे।और रही बात विशाखदत्त के संस्कृत नाटक 'मुद्राराक्षस' में एक द्वारपाल पात्र द्वारा कौटिल्य के आगमन पर ऐसा कहने की, तो नाटक में किसी पात्र के मुँह से कुछ कहा जाना सैद्धान्तिक नहीं होता, व न ही लेखक के विचार। वह पात्र के मनोभाव व्यक्त करने के लिए होता है। जैसे तुलसी का ढोर गँवार, या किसी नाटक में रावणदल के मुँह से राम को कायर कहना या पत्नी की रक्षा में असमर्थ कहना आदि। किसी पात्र के सम्वाद द्वारा शब्द की व्युत्पत्ति सिद्ध नहीं होती। भले ही कृति तुलसी की हो या विशाखदत्त या रांगेय राघव की। यदि कृति की माँग है कि पात्र वहाँ कटूक्ति करे, तो लेखक उसे शब्द देगा ही । पात्र द्वारा की गयी कटूक्ति को भाषा की सैद्धान्तिकी या नीति अथवा सामाजिक सैद्धान्तिकी से सिद्ध नहीं किया जा सकता। वे उस पात्र के राग-द्वेष जनित निजी विचार होते हैं। उन को प्रमाण मान कर चाणक्य को कुटिल कहने लगना बहुत ही दु:खद एवं अशोभनीय है। और अनुचित तथा अशुद्ध तो है ही।
बंदा सिंह बहादुर का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 को राजौरी में हुआ था. बहुत कम उम्र में वो घर छोड़ कर बैरागी हो गए और उन्हें माधोदास बैरागी के नाम से जाना जाने लगा. वो अपने घर से निकल गए और देश भ्रमण करते हुए महाराष्ट्र में नांदेड़ पहुंचे जहाँ 1708 में उनकी मुलाक़ात सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह से हुई.
विवाह आदि मे शुभाशुभ विचार
ज्येष्ठ मास, ज्येष्ठ पुत्र और ज्येष्ठ कन्या यह तीन ज्येष्ठ विवाह संस्कार में विशेषतया वर्जित माने जाते हैं। परन्तु यदि दो ज्येष्ठ वर्तमान हों अर्थात् लड़का-लड़की दोनों ज्येष्ठ (बड़े) हों, परन्तु महीना ज्येष्ठ के अतिरिक्त हो अथवा लड़का-लड़की में से एक ज्येष्ठ हो और दूसरा अनुज हो, तो ज्येष्ठ मास में भी विवाह करना सामान्य एवं मध्यम फल होता है-
द्वी ज्येष्ठी मध्यमी प्रोत्तत्रवेक ज्येष्ठ शुभावहः । ज्येष्ठ त्रयं न कर्वीत् विवाहे सर्वसम्मतम् || वाराहमिहिर
तथापि आवश्यक परिस्थितिवश ज्येष्ठ मास में कृतिका से सूर्य निकल जाने पर सूर्य दानादि करके विवाह करने में कोई हानि नहीं। मुनि भारद्वाज के मतानुसार ज्येष्ठ के महीने की भान्ति मार्गशीर्ष मास में भी अग्रज लड़का-लड़की एवं मार्ग मास-तीनों का यथासम्भव त्याग करें।
सगे भाई-बहन के विवाह छः मास के भीतर नहीं करने चाहिएं। यदि इस बीच संवत् परिवर्तन हो जाए, तो कोई दोष नहीं (मु. मार्तण्ड)। पुत्र के विवाह के उपरान्त अपनी कन्या का विवाह ६ महीने तक न करें। इसी तरह विवाह के बाद ६ महीने तक मुण्डन, यज्ञोपवीत आदि शुभ कार्य न करें। (नारद), परन्तु कन्या विवाह के पश्चात् पुत्र विवाह ६ मास के भीतर शुभ है। दो सगे भाईयों का विवाह दो सगी बहनों से न करें अथवा एक वर के साथ दो सगी बहनों का विवाह न करें (वसिष्ठ) तथा जिस वर को अपनी कन्या देवें, उसकी बहन के साथ अपने लड़के का विवाह न करे (नारदः) । ,
दो सगे भाईयों या दो सगी बहनों का एक संस्कार ६ महीने के भीतर करना सम्भव है (वृद्धमनुः) । दो सहोदर (भाई-बहन) के संस्कार आवश्यक स्थिति उत्पन्न होने पर नदी, पर्वत, स्थान एवं पुरोहित भेद (भिन्न) से एक ही दिन अथवा ६ महीने के भीतर शुभ होंगे (शागंधर) जुड़वें भाई-बहन के मांगलिक कार्य एक ही मण्डप में भी शुभ हैं। विवाहादि मंगल कार्य से ६ मास तक लघु मंगल कार्य न करें। यह ६ महीने का निषेध केवल तीन पीढ़ि तक के मनुष्यों के लिए कहा है।
मङ्गल संस्कार से ६ महीने तक पितृकर्म, श्राद्धादि न करे। वाग्दान अर्थात् विवाह सम्बन्ध का निश्चय हो जाने के बाद वर-कन्या के कुल में माता-पिता, भाई आदि निकटस्थ बन्धु को दुःखद मृत्यु हो जाने पर एक वर्ष के पश्चात् विवाह आदि शुभ कार्य करना चाहिए (निर्णयसिंधु) परन्तु अपवाद स्वरूप संकट काल में अथवा अंत्य आवश्यक स्थिति बसएक मास के बाद अथवा सूतक निवृत्ति के बाद जब पाठ हम शांति एवं यथाशक्ति द्रव्य वस्त्र गोदान आदि के बाद शुभ कार्य कर सकते हैं |
महात्मा गांधी
मोहनदास करमचन्द गांधी (जन्म: 2 अक्टूबर 1869 - निधन: 30 जनवरी 1948) जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है,स्वदेशी और चरखे का प्रचार किया, हरिजन उद्धार के लिए आंदोलन चलाया, सालों साल जेल में बिताए, कई सत्याग्रह किए, भारत छोड़ो आंदोलन चलाया और अंग्रेजों के लिए असंभव कर दिया कि वे भारत को अपने अधीन कर सकें |
तप्त हृदय को, सरस स्नेह से,जो सहला दे, मित्र वही है
रूखे मन को, सराबोर कर,जो नहला दे, मित्र वही है
प्रिय वियोग, संतप्त चित्त को,जो बहला दे, मित्र वही है
अश्रु बूँद की, एक झलक से,जो दहला दे, मित्र वही है।
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आकाश गंगा खगोल शास्त्र व ज्योतिष
खगोल शास्त्र,एक ऐसा शास्त्र है जिसके अंतर्गत पृथ्वी और उसके वायुमण्डल के बाहर होने वाली घटनाओं का अवलोकन, विश्लेषण तथा उसकी व्याख्या की जाती है। यह वह अनुशासन है जो आकाश में अवलोकित की जा सकने वाली तथा उनका समावेश करने वाली क्रियाओं के आरंभ,बदलाव व भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन करता है।
ज्योतिष शास्त्र, जिसमें स्थिर तारों, सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों के अवलोकन और व्याख्या के माध्यम से सांसारिक और मानवीय घटनाओं की आँकलन शामिल है।वो पांच प्रमुख अंग हैं जिनकी सहायता से आँकलन करते है नक्षत्र, तिथि, योग, करण और वार. कौन सा दिन कितना शुभ है और कितना अशुभ, ये इन्हीं पांच अंगो के माध्यम से जाना जाता है |