गुरुवार, 18 मई 2023

वट सावित्री व्रत कथा

 


वट सावित्री व्रत कथा  

https://youtu.be/zJrEIiDTYvA

 ज्येष्ठ अमावस्या के दिन आने वाले सावित्री व्रत की कथा में निम्न प्रकार से है-भद्र देश के एक राजा थे नाम अश्वपति था। भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान नही थी। वे संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोचारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुत सम्बद्ध मंत्र से हवन करते थे । काफी सालों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर कहा कि: राजन आपके यहा एक सुन्दर व सुशील कन्या का जन्म होगा। सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने के कारण से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।

कन्या बड़ी बेहद रूपवान हुई। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयंवर खोज के लिए भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि हे राजन! यह क्या कर रहे हो तुम? सत्यवान गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, पर उसकी आयु बहुत छोटी है, वह अल्पायु हैं। एक साल बाद ही उसकी मौत हो जाएगी। ऋषिराज नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति घोर चिंता में डूब गए। सावित्री ने उनसे कारण पूछा, तो राजा ने कहा, पुत्री जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं। आपको और किसी को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए। इस पर सावित्री ने कहा कि पिता जी आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है। सावित्री हठ करने लगीं और बोलीं मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी। राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया।

सावित्री अपने सुसुराल मे ही रहकर सास-ससुर की सेवा करने लगी। समय गुजरता गया। नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बताया था। जैसे-जैसे वक्त करीब आना शुर हुआ सावित्री अधीर होने लगी। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया गया। हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी वन मे लकड़ी काटने  गया साथ में सावित्री भी गईं। जंगल में पहुंचकर सत्यवान काठ काटने के लिए एक पेड़ चढ़ गया। तभी लगा कि उसके सिर में तेज दर्द हो रहा है, दर्द से व्याकुल सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गया। सावित्री अपना भविष्य समझ गईं। सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अपनी गोद में पति के सिर को रखकर उसे लेटा दिया। उसी समय सावित्री के सामने कई यमदूतों के साथ यमराज आ पहुंचे। सत्यवान के जीव को दक्षिण दिशा की ओर लेकर जा रहे हैं। यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चलती हैं।

उन्हें देखकर यमराज ने कहा कि- हे पतिव्रता नारी! धरती तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओ। उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा- जहां मेरे पति रहेंगे मैं उनके साथ रहना है। यही मेरा पत्नी धर्म है। सावित्री के मुख से यह उत्तर सून कर यमराज प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री को वर मांगने को कहा और कहा- मैं तीन वर देता हूं। बोलो तुम कौन-कौन से तीन वर लोगी। तब सावित्री ने सास-ससुर के लिए आंख की स्थिति जताई, ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा एवं अपने पति सत्यवान के द्वारा सौ पुत्रों की मां बनने का वरमांगा। सावित्री क द्वारा वर सुनने के बाद यमराज ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा- तथास्तु! ऐसा ही होगा।सावित्री पुन: उसी वट वृक्ष के पास लौटें। जहां सत्यवान मरा पड़ा था। सत्यवान के मृत शरीर में फिर से संचार हुआ। इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति को पुन: जीवित संबंध बल्कि सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए उनके सुसुर को खोया राज्य फिर दिलवाया।

उसी समय से वट सावित्री अमावस्या और वट सावित्री पूर्णिमा के दिन वट व्रत का पूजन-अर्चन करने का विधान है। यह व्रत करने से स्वरवती महिलाओं की मनोकामना पूर्ण होती है और उनका स्वरभक्ति अखंड रहता है। सावित्री के पतिव्रता धर्म की कथा का सार :- यह है कि एकनिष्ठ पतिपरायणा स्त्रियां अपने पति को सभी दुख और कष्टों से दूर रखने में समर्थ होती है। जिस प्रकार पतिव्रता धर्म के बल से ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के बंधन से छुड़ा लिया था। इतना ही नहीं खोया हुआ राज्य तथा अंधे सास-ससुर की नेत्र ज्योति भी वापस दिला दी। उसी प्रकार महिलाओं को अपना गुरु केवल पति को ही मानना चाहिए। गुरु दीक्षा के चक्र में इधर-उधर नहीं भटकना चाहिए। वट सावित्रि व्रत में वट यानि बरगद के वृक्ष के साथ-साथ सत्यवान-सावित्री और यमराज की पूजा की जाती है। माना जाता है कि वटवृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देव वास करते हैं। अतः वट वृक्ष के समक्ष बैठकर पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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बुधवार, 17 मई 2023

सन्तान सुख


सन्तान सुख मिले सम्मान मिले सब चाहते हैं, आइए देखें कैसे- अगर पंचम भाव में जब गुरु स्थिति हो तो ऐसे व्यक्ति की  संतान  से 100 अधिक पिता करते हैं और  ऐसी  संतति  को अपने कुल का दीपक कहा जाता है। गोचर योजनाओं में जब भी गुरु लग्न पंचम, नवम व एकादश भाव में हो तो भी  संतति सुख  का योग बनता है ज्योतिष शास्त्र  में  सन्तान   प्राप्ति के कुछ उपाय भी मौजूद हैं।अमावस्या वाले दिन पीपल के पेड़ के नीचे घृत का दीपक प्रज्जवलित करें ऐसा करने से पूर्ण सुख प्राप्त होता है।अपने से बडो को सम्मानित करें सेवा करें, आपको निश्चत सुख व वैभव मिलेगा। अमावस्या वाले दिन किसी कुवारे पंडित जी के बच्चे को मीठा दूध पीने को दे। किसी गुरु कुल मे किसी बच्चे की पढ़ने में सहायता करे। अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें -

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सोमवार, 15 मई 2023

अचला एकादशी/अपरा एकादशी व्रत कथा

 


अचला एकादशी

कथा कहानी सुनने के लिए क्लिक करे

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 अचला एकादशी जेष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को मानते  हैं | इसे अपरा एकादशी भी कहते हैं | इस व्रत के करने से ब्रह्महत्या,परनिंदा, भूत योनि, जैसे निम्न कर्मों से छुटकारा मिल जाता है तथा कीर्ति पुणय  एवं धन धन्य में अभिवृद्धि होती है |


 अचला एकादशी की कथा


 बहुत समय पहले की बात है एक महीध्वज नाम का राजा था वह बड़ा ही धर्मात्मा था इसके विपरीत उसी का छोटा भाई ब्रजध्वज बड़ी ही दुष्ट प्रवृत्ति का अधर्मी तथा अन्यायी  था | वह अपने बड़े भाई को अपना दुश्मन समझता था | एक दिन अवसर पाकर उसने  अपने बड़े भाई राजा महिध्वज की हत्या करके और उसके मृत शरीर को जंगल में पीपल के वृक्ष के नीचे गाड़ दिया |

राजा की आत्मा पीपल पर वास करने लगी और आने जाने वालों को सताने लगी | अकस्मात एक दिन धौम्य में ऋषि वहां से जा रहे थे | उन्होंने अपने तपोबल से प्रेत के उत्पाद कारण और उसके जीवन का वृतांत सुना और समझा | ऋषि महोदय ने प्रसन्न होकर प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारकर परलोक विद्या का उपदेश दिया | अंत में ऋषि ने प्रेत योनि से मुक्ति पाने के लिए अचला एकादशी का व्रत करने को कहा अचला एकादशी का व्रत करने से राजा दिव्य शरीर पाकर स्वर्ग लोक को चला गया |

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें लिखे-

शर्मा जी जन्म कुंडली विशेषज्ञ व सलाहकार ।

9312002527

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सोमवार, 1 मई 2023

मोहिनी एकादशी व्रत,विधि व कथा

 

मोहिनी एकादशी व्रत 



मोहिनी एकादशी व्रत,विधि व कथा 

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मोहिनी एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को दशमी की रात से ही नियमों का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त यानि सुबह उठकर तिल का लेप लगाना चाहिए या फिर तिल मिले जल से स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद लाल वस्त्रों से सजे कलश की स्थापना कर पूजा की जाती है इसके बाद भगवान विष्णु तथा श्रीराम का  धूप, दीप फल, फूलों आदि से पूजन किया जाता है। पूजन के बाद प्रसाद वितरण कर ब्राह्मण को भोजन तथा दक्षिणा देने का विधान है। रात के समय भगवान का भजन तथा कथा का पाठ करना चाहिए।

पद्म पुराण के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह व्रत मोह बंधन तथा पापों से मुक्ति दिलाता है। सीता माता की खोज के दौरान भगवान राम ने तथा महाभारत काल में युधिष्ठिर ने मोहिनी एकादशी व्रत कर अपने सभी दुखों से छुटकारा पाया था |

 

मोहिनी एकादशी व्रत का महत्त्व 

मोहिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से सभी प्रकार के पाप तथा दुख मिट जाते हैं। यह व्रत मोह बंधन से मुक्ति दिलाता है। देवी सीता की खोज के दौरान भगवान राम ने तथा महाभारत काल में युधिष्ठिर ने मोहिनी एकादशी व्रत कर अपने सभी दुखों से मुक्ति पाई थी।

सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम  की नगरी थी  उसमें  धृतनाथ नाम राजा राज्य करता था उसके राज्य में एक धनवान वैश्य रहता था वह धर्मात्मा और विष्णु भगवान का अनन्य भक्त था उसके 5 पुत्र थे बड़ा पुत्र महा पापी था जुआ खेलना मद्यपान करना पर परस्त्री गमन वेश्याओं का संग आदि नीच कर्म करने वाला था। उसके माता पिता ने उसे कुछ धन वस्त्र आभूषण लेकर घर से निकाल दिया आभूषण बेचकर कुछ दिन उसने काट लिए। अंत में धनहीन  हो गया और चोरी करने लगा। पुलिस ने उसको पकड़ कर बंद कर दिया। दण्ड  अवधि समाप्त होने के पश्चात उसे नगर से निकाल दिया गया।वह पशु पक्षियों को मारता तथा उनको खाकर अपना पेट भरता था। एक दिन उसके हाथ एक भी शिकार ना लगा।वह भूखा प्यासा कौटिल्य मुनि के आश्रम आया और मुनि  के आगे हाथ जोड़कर बोला हे मुनिवर  मैं आपकी शरण में आया हूं मैं प्रसिद्ध पातकी हूं कृपया आप मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मेरा उद्धार हो जाए आप पतित पावन हो। मुनि  बोले वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करो अनंत जन्मों के तुम्हारे  सारे पाप नष्ट हो जाएंगे। मुनि की शिक्षा से वैश्य कुमार ने मोहिनी एकादशी  का व्रत किया और पाप रहित होकर विष्णु लोग को चला गया। इसका महात्म्य जो कोई भी सुनता या करता है उसको हजारों गोदान का फल मिलता है और पुण्य प्राप्त होता है। धन्यवाद 

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गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत

  गुरु, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का स्रोत सतीश शर्मा  गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, और यह दिन गुरुओं के प्रति सम्मा...