गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

जानकारी काल फरवरी -2022

 हिंदी मासिक 

जानकारी काल 

वर्ष-22,             अंक-09,             फरवरी - 2022,          पृष्ठ 42,        मूल्य-2-50




ओम ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः। 

जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता। सद्गुण वैभवशालिनी, त्रिभुवन विख्याता।।


संरक्षक

 श्रीमान कुलवीर शर्मा

महामंत्री समर्थ शिक्षा समिति

डॉ वी  एस नेगी

प्रोफेसर भगत सिंह कॉलेज सांध्य


 प्रधान संपादक व्  प्रकाशक

 सतीश शर्मा 


 

 कार्यालय

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 नई दिल्ली 110012


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 संपादक मंडल

 सौरभ  शर्मा,कपिल शर्मा,

गौरव शर्मा,डॉ अजय प्रताप सिंह, करुणा ऋषि, डॉ मधु वैध, 

भूप  सिंह यादव, ऋतु सिंह,

राजेश शुक्ल  


प्रकाशक व मुद्रक सतीश शर्मा के लिय ग्लैक्सी प्रिंटर-106 F,कृणा नगर नई दिल्ली 110029, A- 214 बुध नगर इं पूरी नई दिल्ली  110012 से प्रकाशित |


सभी लेखों पर संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है पत्रिका में किसी भी लेख में आपत्ति होने पर उसके विरुद्ध कार्रवाई केवल दिल्ली कोर्ट में ही होगी

 

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हिन्दू जगे तो विश्व जगेगा, मानव का विश्वास जगेगा।

भेदभावना तमस हटेगा, समरसता अमृत बरसेगा।


योग ध्यान,आयुर्वेद  और भजन कीर्तन,प्रवचन  जैसे आध्यात्मिक उपायों ने संसारभर में हिन्दू धर्म को एक वैज्ञानिक और तार्किक धर्म के रूप में स्थापित करना शुरु कर दिया है |हिन्दुओं के इस पुनर्जागरण में सबसे बड़ा योगदान भारत के सिद्धों और साधु संतों का है जिन्होंने बीते चालीस पचास सालों में एक सॉफ्ट पॉवरके रूप में अपना विस्तार किया है। बाबा रामदेव ,इस्कॉन और स्वामीनारायण जैसी संस्थाओं ने पूरी दुनिया में योग ध्यान,प्रवचन और भजन कीर्तन जैसे आध्यात्मिक उपायों द्वारा  हिन्दू चेतना, धर्म और संस्कृति को जगाया है।योग और आयुर्वेद ने तो करोना महामारी को दूर करने के काफी हद तक समाधान करने में मदद की | सीमित मात्रा में ही सही, अब हिन्दू एक वैश्विक ताकत के रूप में उभर रहा है। हिन्दुओं की दशा अब पहले  वाली नहीं है। सत्तर के दशक से पहले हिन्दू अपने को कमजोर समझता धा | अब हिन्दू ग्लोबल पॉवर के रूप में उभर रहे हैं। अब हिन्दू भारत में ही नहीं हैं, न सिर्फ भारतीय मूल के है बल्कि अब अफ्रीकी मूल के,यूरोप मूल के, चीनी मूल के और रसियन मूल के  हिन्दू  हैं। लेकिन संसार में हिन्दुओं की सबसे ताकतवर लॉबी अमेरिका में है। कहते हैं अमेरिका में यहूदियों के बाद हिन्दू दूसरी सबसे ताकतवर लॉबी के रूप में उभरे हैं। विभिन पदों पर कार्यरत है विदेश में अपने व्यापर का लोहा मनवाया है |  वो अपने और अपने धर्म समाज के प्रति सचेत हैं। वो आनेवाले खतरोंको समझते हैं और उसके निपटने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन भारत का दुर्भाग्य ये है कि भारत के लोग इस उभार के प्रति अचेत हैं। संसार में लगभग 135 करोड़ की जनसंख्या होने के बाद भी उनको भारत में ही भ्रमित किया जाता है ताकि हिन्दू समाज अपने आप को एक उभरती वैश्विक ताकत के रूप में देख ही न सके। लेकिन आज नहीं तो कल ये दिखाई देना शुरु हो जाएगा। संसार में समझदार लोगों के बीच हिन्दू धर्म सबसे ज्यादा तेजी से फैलनेवाला धर्म बन गया है जो इसकी अच्छाइयों, को देखकर सहज ही इसके प्रति आकर्षित हो रहे हैं। आज सारा विश्व योग में अपनी निरोगी काया देख रहा है और हिन्दू आध्यात्म में अपनी मन की शांति |

 हिन्दू जगे तो विश्व जागेगा ये बात सत्य होती नजर आ रही है |


शिक्षा का सांस्कृतिक स्वरूप

 – वासुदेव प्रजापति

भारतीय शिक्षा को जानने व समझने के लिए ज्ञान की बात नामक पाक्षिक स्तम्भ प्रारम्भ किया गया है। आज से ज्ञान की बात ने तीसरे वर्ष में प्रवेश किया है। प्रथम वर्ष का विषय ज्ञान एवं ज्ञानार्जन के करणों का विकास था। दूसरे वर्ष का विषय शिक्षा का भारतीय प्रतिमान : समग्र विकास था। अब तीसरे वर्ष का विषय शिक्षा का सांस्कृतिक स्वरूप है। इस वर्ष में हम शिक्षा का अधिष्ठान अध्यात्म, विषयों का अंगांगी सम्बन्ध, पठनीय विषयों का सांस्कृतिक स्वरूप, धर्मशिक्षा, कर्मशिक्षा तथा शास्त्रशिक्षा, औपचारिक व अनौपचारिक शिक्षा, बालक शिक्षा एवं बालिका शिक्षा और शिक्षा में स्वायत्तता नामक शीर्षकों के माध्यम से भारतीय शिक्षा के सांस्कृतिक स्वरूप को जानने व समझने का प्रयत्न करेंगे।

सांस्कृतिक स्वरूप से हमारा तात्पर्य

भारत की पहचान आध्यात्मिक राष्ट्र की है। अध्यात्म का व्यावहारिक स्वरूप संस्कृति है। इसलिए भारत में सब कुछ सांस्कृतिक है। अतः शिक्षा भी सांस्कृतिक है। परन्तु वर्तमान में भारत में दी जाने वाली शिक्षा का स्वरूप भौतिक है।

भारत में जीवन का भौतिक पक्ष सांस्कृतिक अधिष्ठान पर टिका हुआ है, जबकि पश्चिम में संस्कृति का आधार भी भौतिक ही है। इसलिए जीवन की प्रत्येक बात भारत और यूरोप में भिन्न-भिन्न प्रकार से व्याख्यायित होती है।

यही कारण है कि भारत की वर्तमान शिक्षा का आधार भौतिक है। जबकि सनातन शिक्षा का आधार सांस्कृतिक है। वर्तमान भारत को पुनः सनातन भारत बनाना ही भारत का भारतीयकरण है। यह तभी सम्भव होगा जब शिक्षा के भौतिक स्वरूप को सांस्कृतिक स्वरूप में बदला जाएगा।

व्यावहारिक जीवन में जब हम अध्यात्म का अधिष्ठान स्वीकार करके अपना जीवन यापन करते हैं, तब जीवन जीने की जो शैली बनती है उसे हम संस्कृति कहते हैं। चूँकि संस्कृति का सीधा सम्बन्ध व्यवहार से है, इसलिए सभी विषयों को आध्यात्मिक कहने के स्थान पर हम उसे सांस्कृतिक कहते हैं। आध्यात्मिक कहना और सांस्कृतिक कहना एक ही बात है। इसीलिए हमने शीर्षक में शिक्षा का सांस्कृतिक स्वरूप कहा है।

भारत की आध्यात्मिक संकल्पना

हमारे देश में अध्यात्म संकल्पना को लेकर बहुत भ्रम फैला हुआ है। जब हम कहते हैं कि सभी विषयों का अधिष्ठान अध्यात्म है तो सामान्य जनों की बात ही क्या विद्वान भी अध्यात्म के विषय में एकमत नहीं है। कोई अध्यात्म को संन्यास से जोड़ता है तो कोई मठ-मंदिरों के साथ जोड़ता है। कोई धर्म को ही अध्यात्म मानता है तो कोई सम्प्रदाय को अध्यात्म कहता है। कोई पूजा-अर्चना, कीर्तन-भजन, व्रत-उपवास को अध्यात्म समझते हैं तो कोई यज्ञ, त्योहार, तीर्थ यात्रा व कथा श्रवण एवं उपनिषदों के पठन-पाठन को ही अध्यात्म बतलाते हैं। परन्तु कोई भी उसे दैनन्दिन जीवन का अंग नहीं मानते, वे तो इसे इस दुनिया से परे की कोई वस्तु मानते हैं। इसी कारण से अध्यात्म के प्रति आस्था का भाव नहीं है। अतः अध्यात्म के विषय में स्पष्टता होना नितान्त आवश्यक है।

अध्यात्म में मूल शब्द आत्म है। आत्म में अधि उपसर्ग लगने से अध्यात्म शब्द बना है। इसलिए अध्यात्म का अर्थ है आत्मतत्व को विचारों, भावनाओं, व्यवहारों और व्यवस्थाओं के आधार रूप में स्वीकार करना। यहाँ आत्मतत्त्व शब्द आत्मा, परमात्मा, ब्रह्म अर्थात् ईश्वर या भगवान के लिए प्रयुक्त हुआ है। भगवान सर्वज्ञ हैं, सर्वव्यापी हैं और सर्वशक्तिमान हैं। परमात्मा ने ही यह सृष्टि बनाई है और वे स्वयं सृष्टि के प्रत्येक कण-कण में विद्यमान हैं। वे सबको देखते हैं और जानते हैं। वे पापियों को व दुर्जनों को दण्ड देते हैं और सज्जनों की रक्षा करते हैं। उसके घर में देर है अंधेर नहीं है। सामान्य लोगों में प्रतिष्ठित ये मान्यताऍं वास्तव में अध्यात्म का ही लोकभाषा में प्रकटीकरण है। लोकमानस में अध्यात्म की स्वीकृति और बौद्धिक जगत में अध्यात्म विषयक अज्ञान आज के अनेक संकटों का कारण है। अतः अध्यात्म का सही-सही ज्ञान होना अत्यावश्यक है। इस बात को हम छोटी सी कथा से समझेंगे।

सबमें प्रभु का वास

एक सब्जी वाला था। वह सब्जी की पूरी दुकान ही साइकिल पर लगाकर घूमता रहता था। प्रभु उसका तकिया कलाम था। कोई उससे पूछता, आलू कैसे लिए? वह कहता, दस रुपए प्रभु। हरि धनिया है क्या? बिल्कुल ताजा है प्रभु। वह हर एक को प्रभु कहता था। परिणाम स्वरूप लोग भी उसको प्रभु कहकर पुकारने लगे। एक दिन उससे किसी ने पूछा, तुम सबको प्रभु-प्रभु क्यों कहते हो? और लोग भी तुम्हें प्रभु कहकर क्यों बुलाते हैं? तुम्हारा कोई असली नाम है भी या नहीं?

सब्जी वाले ने कहा, है न प्रभु। मेरा असली नाम भैयालाल है प्रभु। वह अपनी कथा बताने लगा। प्रभु मैं शुरु से अनपढ़ गँवार हूँ। पहले मैं मजदूरी करता था। एक बार गाँव में एक नामी सन्त की कथा हुई। मैं भी उस कथा में गया। कथा मेरे पल्ले नहीं पड़ी, परन्तु एक लाइन मेरे दिमाग में पक्की बैठ गई। उन संत ने कहा कि हर इंसान में प्रभु का वास है। आप उसे तलाशने की कोशिश तो करो, पता नहीं किस इंसान में तुम्हें प्रभु मिल जाय और तुम्हारा उद्धार कर जाय। बस! उसी दिन से मैंने हर एक को प्रभु की नजर से देखना व पुकारना शुरु कर दिया। वाकई चमत्कार हो गया। दुनिया के लिए शैतान आदमी भी मेरे लिए प्रभु समान हो गया। मेरे दिन ऐसे फिरे कि मैं मजदूर से व्यापारी हो गया। सुख-समृद्धि के सारे साधन जुड़ते गए और मेरे लिए तो सारी दुनिया ही प्रभु रूप हो गई। इसीलिए हमारे यहाँ कहा जाता है, न जाने किस भेष में मिल जाय भगवान रे!

आत्मतत्त्व को अधिष्ठान स्वीकारना

आत्मतत्त्व अनुभूति का क्षेत्र है, अनुभूति के आधार पर ही उसका बौद्धिक स्वरूप बना है। आत्मतत्त्व को अधिष्ठान मानने की भारतीय संकल्पना एक अति विशिष्ट संकल्पना है। यह सम्पूर्ण जगत के बारे व्यवहारों, घटनाओं, भावनाओं और व्यवस्थाओं का खुलासा करती है।

यह जगत गतिशील और परिवर्तनशील है, इस बात को स्वीकार तो सब करते हैं परन्तु सर्व प्रकार के परिवर्तनों का आलम्बन और उन सभी परिवर्तनों व गतियों को नियमन में रखने वाले तत्त्वों का आलम्बन भी आत्मतत्त्व ही है, यह नहीं मानते। यथार्थ यही है कि सभी परिवर्तनशील पदार्थों के पीछे एक सर्वथा अपरिवर्तनशील, सभी इन्द्रियों व अन्त:करण से गम्य पदार्थों के पीछे एक सर्वथा अगम्य, सभी कल्पनीय व चिन्तनीय पदार्थों के पीछे एक सर्वथा अकल्प्य व अचिन्त्य, सभी क्षरणशील व जर्जरित होने वाले पदार्थों के पीछे एक अक्षर व अजय, सभी मरणशील व नाशवान पदार्थों के पीछे एक अमर व अविनाशी, सभी आरम्भ व अन्त को प्राप्त होने वाले पदार्थों के पीछे एक अनादि व अनन्त, सभी द्वन्द्वात्मक, द्विविध, त्रिविध और अनेकविध पदार्थों के पीछे एकमेवाद्वितीय तत्त्व की अनुभूति करना और उस अनुभूति को बुद्धिगम्य बनाना तथा उसके आधार पर व्यावहारिक जीवन की रचना करना भारत के आर्षद्रष्टा ऋषियों के सामर्थ्य का परिचायक है।

मनुष्य को परमात्मा ने अपने प्रतिरूप में बनाया है, यह इसका प्रमाण है। यह सामर्थ्य आत्मानुभूति का है, यह आत्मानुभूति ही आत्मबल है। इसीलिए यह आत्मबल ही बुद्धिबल, मनोबल, प्राणबल और देहबल के रूप में आवश्यकता के अनुसार प्रकट होता है और संसार के सारे व्यवहार संचालित करता है। अतः आत्मतत्त्व के अधिष्ठान के बिना सारा सामर्थ्य, सारी क्षमताएँ, सबका अस्तित्व ही अनाश्रित हो जायेगा। इस आत्मतत्त्व को स्वीकार करना ही जीवन को आध्यात्मिक बनाना है। शिक्षा में आत्मतत्त्व के अधिष्ठान को लाकर ही हम उसे सर्वभूत हितेरता: बना सकते हैं।

भौतिक अधिष्ठान को बदलना

आज जिस अधिष्ठान पर सारा शिक्षा विचार टिका हुआ है, वह भौतिक है।

भारत की जीवन रचना में भौतिक आयाम सांस्कृतिक आयाम का एक अंग है, स्वयं अधिष्ठान नहीं है। फिर भी भारत में भौतिकता को स्वीकार करते हैं, उसे हेय नहीं मानते किन्तु उसे संस्कृति के प्रकाश में ही स्वीकारा जाता है। भौतिकता को मुख्य न मानकर संस्कृति का एक अंग मानने से भौतिकता भी अधिक समृद्ध, अधिक सार्थक, अधिक कल्याणकारी होती है। इस तथ्य को भारत की सहस्रों वर्षों की जीवन व्यवस्था ने सिद्ध कर दिखाया है।

अतः हमें सभी विषयों का भौतिक स्वरूप बदलकर उसका  सांस्कृतिक स्वरूप अपनाना चाहिए। उदाहरण के लिए भारत का मानचित्र माँगने पर राजकीय मानचित्र लाया जाता है। यह गौण को मुख्य मान लेने का परिणाम है, राजकीय क्षेत्र सम्पूर्ण सांस्कृतिक जीवन का एक अंग है। जब यह कहा जाय कि राजकीय मानचित्र लाओ तभी राजकीय मानचित्र लाना चाहिए, अन्यथा केवल मानचित्र लाने के लिए कहा जाय तब सांस्कृतिक मानचित्र ही लाना चाहिए। तब संस्कृति का स्थान मुख्य और राजकीय क्षेत्र का स्थान गौण बन जाता है।

भारतीय शास्त्रों को प्रमाण मानना

शिक्षा की विषय वस्तु को आध्यात्मिक विचार पर अधिष्ठित करना सबसे प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण चरण है। इस प्रथम चरण के अभाव में शेष सारे प्रयत्न बिना एक का शून्य जैसे निरर्थक हो जायेंगे। अतः हमें विशेष ध्यान रखकर सारे विषयों का स्वरूप सांस्कृतिक बनाना होगा। और सांस्कृतिक स्वरूप निर्धारित करते समय हमें भारतीय शास्त्रों को ही प्रमाण मानना होगा।

श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं –

य: शास्त्र विधिमुत्सृज्य वर्त्तते कामकारत:।

न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।

अर्थात् जो शास्त्रों में बताए हुए व्यवहार को छोड़कर मनमाना व्यवहार करता है, उसे न सिद्धि प्राप्त होती है न सुख प्राप्त होता है और न उसे सद्गति ही मिलती है।अतः हमें भारतीय शास्त्रों को ही प्रमाण मानना चाहिए। हाँ आवश्यक हो तो कहीं-कहीं पाश्चात्य शास्त्रों का सन्दर्भ लिया जा सकता है, परन्तु वे भारतीय शास्त्रों के अविरोधी होने चाहिए अन्यथा वे त्याज्य होंगे। हमारे लिए तो हमारे वेद, उपनिषद्, पुराण तथा गीता-रामायण ही प्रमाण शास्त्र हैं और वसिष्ठ, विश्वामित्र, याज्ञवल्क्य, वेदव्यास और कौटिल्य ही प्रमाण हैं। सभी आर्षद्रष्टा ऋषि हमारे लिए स्वत: प्रमाण हैं।

(लेखक शिक्षाविद् है, भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला के सह संपादक है और विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के सह सचिव है।

फरवरी में पड़ने वाले महापुरुषों के जन्मदिन

13 फरवरी 1879 - सरोजिनी नायडू - सुप्रसिद्ध कवयित्री, भारत कोकिला के नाम से भी जाना जाता है 


16 फरवरी 1836 - रामकृष्ण परमहंस - एक महान संत एवं विचारक

 

18 फरवरी 1486 - चैतन्य महाप्रभु - भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं।


29 फरवरी 1896 - मोरारजी देसाई - भारत के छ्ठे प्रधानमंत्री

14 फरवरी- पंडित दीनदयाल पुण्यतिथि



16 फरवरी गुरु रविदास जयंती 



फरवरी मास के महत्व पूर्ण दिवस 

1 फरवरी- तटरक्षक दिवस

भारतीय तटरक्षक यानी इंडियन कोस्ट गार्ड का स्थापना दिवस एक फरवरी को मनाया जाता है। देश की समुद्री सीमाओं की सुरक्षा से लेकर समंदर में राहत एवं बचाव कार्यों तक का जिम्मा देश के तटरक्षक ही संभालते हैं। 

2 फरवरी- विश्व आद्र भूमि दिवस

प्रत्येक वर्ष 2 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्द्रभूमि के सन्दर्भ में जागरूकता और इसके संरक्षण हेतु 'विश्व आर्द्रभूमि दिवस' (World Wetlands Day) मनाया जाता है। दरसल 2 फरवरी 1971 को ईरान के रामसर में अंतर्राष्ट्रीय महत्व के आर्द्रभूमि पर रामसर कन्वेंशन को अपनाया गया था।

4 फरवरी- विश्व कैंसर दिवस   

  यह दिन हर साल 4 फरवरी को मनाया जाता है.. विश्व कैंसर दिवस (World Cancer Day 2021) के जरिए दुनियाभर के लोगों को कैंसर के प्रति जागरुक किया जाता है, क्योंकि यह एक ऐसी घातक बीमारी है, जिसके शुरुआती लक्षण सामने नहीं आते हैं. विश्व कैंसर दिवस पहली बार पेरिस में यूनियन फॉर इंटरनेशनल कैंसर कंट्रोल (UICC) द्वारा 4 फरवरी को मनाया गया था और इसकी स्थापना की गई थी |                                                                                                                 

 9 फरवरी- सुरक्षित इन्टरनेट दिवस

9 फरवरी, 2021  यानी आज दुनियाभर में सुरक्षित इंटरनेट दिवस मनाया जा रहा है. यह सभी के लिए ऑनलाइन सुरक्षित रहने के महत्व को पहचानने का अवसर है. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य ऑनलाइन प्रौद्योगिकी और मोबाइल फोन के सुरक्षित और अधिक जिम्मेदार उपयोग को बढ़ावा देना है |  

10 फरवरी- राष्ट्रीय कृमी मुक्ति दिवस

उद्देश्य-सरकारी/सहायता प्राप्त/निजी स्कूलों व आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से 1-19 वर्ष तक के सभी बच्चों को कृमि मुक्त करना है।

 11 फरवरी- विश्व यूनानी चिकित्सा दिवस

विश्व यूनानी दिवस को सालाना 11 फरवरी को पूरे विश्व में मनाया जाता है, ताकि यूनानी चिकित्सा पद्धति के माध्यम से स्वास्थ्य देखभाल वितरण के बारे में जागरूकता फैलाई जा सके। यह दिन एक महान यूनानी विद्वान और समाज सुधारक हकीम अजमल खान की जयंती का दिन है।

12 फरवरी- राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस

राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस, भारत में हर साल 12 फरवरी को मनाया जाता है. राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद का उद्देश्य देश में सभी क्षेत्रों में उत्पादकता और गुणवत्ता चेतना को प्रेरित और प्रोत्साहित करना है. दिन का मुख्य पर्यवेक्षण समकालीन प्रासंगिक विषयों के साथ उत्पादकता उपकरण और तकनीकों के कार्यान्वयन में सभी हितधारकों को प्रोत्साहित करना है |

13 फरवरी- विश्व रेडियो दिवस

यूनेस्को ने पहली बार 13 फरवरी 2012 को विश्व रेडियो दिवस के रूप में इस दिन को मनाया था. तब से विश्वभर में इसी दिन विश्व रेडियो दिवस मनाया जाने लगा. दरअसल 13 फ़रवरी को संयुक्त राष्ट्र रेडियो की वर्षगांठ भी है. इसी दिन वर्ष 1946 में इसकी शुरूआत हुई थी |

15 फरवरी- एकल जागरूकता दिवस

सिंगल्स अवेयरनेस डे (या सिंगल्स एप्रिसिएशन डे ) 15 फरवरी को मनाया जाता है ।

 हर साल। यह एकल लोगों द्वारा मनाया जाने वाला एक अनौपचारिक अवकाश है । 

20 फरवरी- सामाजिक न्याय दिवस

साल 2007 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा एक प्रस्ताव पारित कर हर साल 20 फरवरी को विश्व सामाजिक न्याय दिवस मनाने की घोषणा की गई थी। इसके दो साल बाद पहली बार साल 2009 में विश्व सामाजिक न्याय दिवस मनाया गया। इस साल का थीम "अ कॉल फॉर सोशल जस्टिस इन द डिजिटल इकोनामी" है।

21 फरवरी- अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस

साल 1952 में बांग्लादेश में ढाका यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए 21 फरवरी को एक आंदोलन किया था। इन शहीद युवाओं की स्मृति में ही यूनेस्को ने पहली बार साल 1991 को ऐलान किया कि 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

22 फरवरी- विश्व स्काउट दिवस

विश्व स्काउट दिवस हर साल 22 फरवरी को स्काउटिंग संस्थापक रॉबर्ट बैडेन-पॉवेल (Robert Baden Powell), प्रथम बैरन बैडेन-पॉवेल (1857 में जन्में) और उनकी पत्नी ओलेव बैडेन-पॉवेल (Olave Baden Powell) की जयंती पर दुनिया भर के सभी स्काउटिंग यूनियंस द्वारा मनाया जाता है।

24 फरवरी- उत्पाद शुल्क और सेवा शुल्क

प्रतिवर्ष 24 फरवरी को केन्द्रीय अप्रत्यक्ष कर व सीमा शुल्क बोर्ड द्वारा देश भर में केन्द्रीय उत्पाद शुल्क दिवस (Central Excise Day) मनाया जाता है। इस दिवस को देश के प्रति केन्द्रीय उत्पाद व सीमा शुल्क बोर्ड की सेवा में योगदान देने के लिए मनाया जाता है

27 फरवरी- एन.जी.ओ दिवस

पूरे विश्व में 27 फरवरी का दिन विश्व एनजीओ दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य दुनियाभर में लोगों को प्राइवेट और पब्लिक सेक्टरों के एनजीओ के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने के लिए प्रेरित करना है। इसके साथ-साथ इस दिवस को मनाने का प्रमुख उद्देश्य दुनियाभर के लोगों को एनजीओ और उन्हें प्रभावों के बारे में बताना भी है।

 28 फरवरी- राष्ट्रीय विज्ञान दिवस

भारतीय महान वैज्ञानिक सर चंद्रशेखर वेंकट रमन ने साल 1928 में 28 फरवरी के दिन 'रमन प्रभाव' की खोज की थी. इस खोज के लिए उन्हें भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया में पहला नोबेल पुरस्कार मिला था. नई दिल्लीः देश में 28 फरवरी के दिन को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है |

 

एक कंजूस की कहानी

 

एक नगर के बहुत बड़े सेठ का आज देंहात हो गया, उसका एक बेटा था, जो सोचने लगा, कौन आयेंगा मेरे पिताजी की मिट्टी में, जीवन भर तो इन्होनें कोई पुण्य, कोई दान धर्म नही किया बस पैंसे के पीछे भागते रहें, सब लोग कहते है ये तो कंजूसों के भी कंजूस थे, फिर कौन इनकी अंतिम यात्रा में शामिल होगा |

खैर जैसा तैसा कर, रिश्तेदार, कुछ मित्र मिट्टी में शामिल हुये, पर वहाँ भी वही बात, सब एक दूसरे से कहने लगे बड़ा ही कंजूस शख्स था, कभी किसी की मदद नही की, हर वक्त बस पैंसा, पैंसा, यहाँ तक की घरवालों, रिश्तेदारों, तक को भी पैंसे का एक_एक हिसाब ले लेता था, कभी कालोनी के किसी भी कार्यकम्र में एक रूपयें नही दिया, हर वक्त बस ताने दियें, खुद से कर लिया करो, आज देखों दो चार लोग, बस इनकी मिट्टी पर आये हैं |

बहुत देर मिट्टी रोकने के बाद कंजूस सेठ के बेटे को किसी ने कहा, अब कोई नही आयेंगा, इन्हें कोई पसंद नही करता था, एक नम्बर के कंजूस थे, कौन आयेगा इनकी मिट्टी पर, अब श्मशान ले जाने की तैयारी करो, बेटे ने हामी भर दी, शरीर को लोग उठाने लगें,पर एकाएक उनकी नजर सामने आती भीड़ पर पड़ी, कोई अंधा, कोई लगड़ा, हजारो की संख्या में महिलाए, बुजर्ग बच्चें, सामने नजर आने लगें, और उस कंजूस सेठ के शरीर के पास आकर फूटफूट कर रोने लगे, ये कहकर मालिक अब हमारा क्या होगा, आप ही तो हमारे माईबाप थे, कैसें होगा अब, सारे बच्चों ने उस कंजूस सेठ का पैर पकड़ लिया और बिलख_बिलख कर रोने लगे सेठ के बेटे से रहा नही गया, उसने पूछ बैठा कौन है आप सब और क्यूं रो रहें हैं | पास ही खड़े कंजूस सेठ के मुनीम ने कहा, ये है तुम्हारे पिता की कमाई, कंजूसीयत, ये लोग देख रहें हो,, कोई अंधा कोई अपहिज, लड़कीयाँ, महिलाए, बच्चें तुम्हारे पिता ने ये कमाया है सारी उम्र

तुम जिसें कंजूस कहते हो ये रिश्तेदार, पड़ोसी मित्र जिसे महाकंजूस कहता हैं | इन झुग्गी झोपड़ी वालो से पूछो, की बताएंगे, ये कितने दानी थे |

कितने वृध्दाआश्रम, कितने स्कूल, कितनी लड़कियों की शादी, कितनो को भोजन कितनो को नया जीवन आपके इस कंजूस बाप ने दिया हैं, ये वो भीड़ है जो दिल से आयी हैं,, आपके रिश्तेदार पडोसी जैसे नही, जो रस्म पूरी   करने के लिए आये हैं | फिर उसके बेटे ने पूछा पिताजी ने मुजे ये सब क्यू नही बताया, क्यूं हमें एक_एक पैंसे के लिए तरसतें रहे, क्यू, कालोनी के किसी भी कार्यकम्र में एक भी मदद नही की

मुनीम ने कहा, तुम्हारे पिताजी चाहते थे, तुम पैंसों की कीमत समझों, अपनी खुद की कमाई से सारा बोझ उठाओ, तभी तुम्हें लगें की हाँ पैसा कहा खर्च करना है और क्यूं, फिर मुनीम ने कहा, ये कालोनी वाले ये मित्र, ये रिश्तेदार,कभी स्वीमिंग पूल के लिए, कभी शराब, शबाब के लिए, कभी अपना नाम ऊंचा करने के लिए, कभी मंदिरों में अपना नाम लिखवाने के लिए, चंदा मांगते थे, पूछों इन सब से कभी वो आयें इनके पास की सेठ किसी गरीब, बच्ची की शादी, पढाई, भोजन अंधा की ऑख, अपहिजों की साईकिल, किसी गरीब की छत, इनके लिए कभी नही आये, ये तो आये बस खुद को दूसरो से ऊंचा दिखाने के लिए, मौज मस्ती में पैसा उड़ाने के लिए |

आज ये भीड़ है ना वो दिल से रो रही हैं, क्यूकि उन्होने वो इंसान खोया हैं, जो कई बार खुद भूखे रहकर, इन गरीबों को खाना खिलाया है, ना जाने कितनी सारी बेटियों की शादी करवाई, कितने बच्चों का भविष्य बनाया | पर हाँ तुम्हारे कालोनी वालो की किसी भी फालतू फरमाईश में साथ नही दिया |

गर तुम समझते हो ये कंजूस हैं,,, तो सच हैं,,, इन्होने कभी किसी गरीब को छोटा महसूस नही होने दिया, उनकी इज्जत रखी, ये कंजूसीयत ही हैं,,,,

आज हजारों ऑखें रो रही हैं, इन चंद लोगो से तुम समझ रहें हो तुम्हारे पिता कंजूस है तो तुम अभागें हो,,,,

बेटे ने तुरंत अपने पिता के पैर पकड़ लिए,, और पहली बार दिल से रो कर कहने लगा, बाबूजी आप सच में बहुत कंजूस थे, आपने अपने सारे नेक काम कभी किसी से नही बाँटे आप बहुत कंजूस थे 

किसी महान आदमी ने कहा हैं नेकी कर और दरिया में डाल |

नेक काम ऐसा होना चाहिए की एक हाथ से करें, तो दूसरे को पता ना चलें |

साभार,प्रमोद यादव "रंजन गोण्डव

भारतीय व्रत और उत्सव फरवरी - 2022 

दिनांक -1 अमावस्या, दि 2 गुप्त नवरात्र प्रारम्भ ,दिनांक 3 गौरी तृतीय ,दिनांक- 4 विनायक चतुर्थी व्रत,दिनांक - 5 वसंत पंचमी, दिनांक 7 रथ सप्तमी,दिनांक 8 भीमअष्टमी,दिनांक- 9 श्री दुर्गा अष्टमी,दिनांक 10 गुप्त नवरात्र पूर्ण,दिनांक-13 जया एकादशी व्रत,दिनांक-12 भीष्म द्वादशी, संक्रांति पुन्य,दिनांक -14 सोम प्रदोष व्रत,दिनांक-16  सत्य व्रत,माघ पूर्णिमा,दिनांक 21 श्री गणेश चतुर्थी व्रत,दिनांक- 23,काला अष्टमी,

दिनांक 24 सीता अष्टमी,दिनांक 25 गुरु रामदास नवमी,दिनांक- 26 विजया एकादशी व्रत,दिनांक 27 विजया एकादशी,दिनांक 28 सोम प्रदोष व्रत | 

अधिक जानकरी के लिए संपर्क करे शर्मा जी 9312002527

संत रविदास जी का जीवन- दर्शन

 – डॉ कुलदीप मेहंदीरत्ता

भारत देश की पवित्र भूमि पर समय-समय पर ऋषि-मुनियों, संत जनों और महापुरुषों ने अवतार लिया है और अपने अद्भुत और अलौकिक ज्ञान से समाज का मार्गदर्शन किया है। संत-महात्माओं और ऋषि-मुनियों के ज्ञान और तप के कारण ही भारत को विश्वगुरु की उपाधि प्राप्त हुई। महात्मा या महापुरुष कहा ही उसे जाता है जो समाज में विद्यमान अज्ञान और अधर्म के अंधकार से निकालकर हमें प्रकाश की ओर ले जाता है। बृहदारण्यकोपनिषद् में वर्णित पवमान मन्त्र ‘ॐ असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतं गमय’ जिन महापुरुषों की जीवन शैली, जीवन चर्या और सामाजिक-आध्यात्मिक व्यवहार में साकार रूप ग्रहण करता प्रतीत होता है। ऐसे महापुरुषों में शीर्षस्थ महापुरुष हैं प्रातः स्मरणीय संत रविदास जी।

ऐसा माना जाता है कि महान संत रविदास जी का जन्म विक्रमी संवत् 1433 में वर्तमान वाराणसी के निकट गाँव सीर-गोवर्धनपुर में हुआ था। हालांकि जन्मस्थान और जन्मतिथि को लेकर कई मत समाज में विद्यमान हैं। यह भी कहा जाता है कि रविवार के दिन जन्म होने के कारण उनका नाम रविदास रखा गया था। वह समय ऐसा था जब हमारे देश और समाज में जात-पात, छुआ-छूत, पाखण्ड और अंधविश्वास का बोलबाला था। लेकिन इसी समय में सामाजिक परिष्कार और लोक-परिमार्जन की विशाल दृष्टि लेकर कई संत-महात्माओं का इस धरा पर आगमन हुआ जिन्होंने न केवल समाज में फैली कुरीतियों के विरुद्ध जनजागरण का कार्य किया बल्कि समाज को जोड़ने का भी कार्य किया। ऐसे महापुरुषों में संत कवि रविदास का नाम अग्रणी रूप में स्थापित और प्रतिष्ठापित है।

संत रामानंद के शिष्य और गुरुभाई कबीर की भाँति रैदास जी का व्यक्तित्व “कागद मसि छुऔ नहीं कलम गहौ नहिं हाथ” के औपचारिक शिक्षण की अपेक्षा व्यावहारिक और आध्यात्मिक अनुभूति से ओत-प्रोत था।

“पंडित गुनी कोई ढिग न बिठाये। वेद शास्त्र किन्हुँ न पढ़ाये।।

अंतरमुखी जाउ कीन्हों ध्याना। चारिउ जुगनि का पायो गियाना।।

कागद कलम मसि कछु नाही जाना। सतगुरु दीन्हो पूरन गियाना।।”

उपरोक्त शब्दों अभिव्यक्ति करते हुए संत रविदास जी ने गुरु-महिमा को प्रतिष्ठित किया और मानव जीवन के लिए गुरु की महता और आवश्यकता को रेखांकित किया।

भक्ति-भाव से परिपूर्ण संत रविदास परम ज्ञानी होते हुए भी इतने सरल  हैं कि ‘हौ पढयौ राम को नाम, ऑन हिरदै नहिं आनौ। अवर हुँ कछु न जानों, राम नाम हिरदै नहिं छाँड़ो।।’ थोड़े से ज्ञान को पाकर फूल जाने वाले लोगों के लिए यह आइना दिखाने जैसा है कि इतना बड़ा व्यक्तित्व कितना सहजता से स्वीकार कर रहा है ‘मैं रामनाम के सिवा कुछ नहीं जानता’। भौतिकतावाद और आधुनिकतावाद से उत्पीड़ित वर्तमान मनुष्य को जीवन की वास्तविकता से परिचय कराने वाला श्रेष्ठ उदाहरण हमें संत रविदास जी के जीवन से मिलता है।

“सर्वजन हिताय, जीव मात्र के कल्याण और मानव मात्र के सम्मान की इच्छा – रैदास जी के जीवन दर्शन के अविस्मरणीय पहलू हैं।  रविदास जी कहते हैं कि ‘ऐसा चाहूँ राज मैं जहाँ मिलै सबन को अन्न। छोट बड़ो सब सम बसै, रैदास रहै प्रसन्न’।  ऐसी समाज-कल्याण की भावना और शासक वर्ग से प्रजा के हितार्थ कार्य करने की अपेक्षा और प्रेरणा विश्व के अन्य किसी साहित्य में दुर्लभ है।

आध्यात्मिक चेतना संत रविदास तथा अन्य संत कवियों के काव्य-रचाव का विशिष्ट अंग है। रविदास जी का मानना था कि प्रभु का वास्तविक स्थान मनुष्य के हृदय में है। मनुष्य के ह्रदय में ही परमात्मा निवास करता है उन्होंने कहा कि “का मथुरा का द्वारका, का कासी हरिद्वार। ‘रैदास’ खोजा दिल आपना, तउ मिलिया दिलदार”।। इस बात का सीधा-स्पष्ट संदेश था कि बाह्याचारों और आडम्बरों से नहीं बल्कि सच्चे हृदय से परमात्मा की भक्ति कर ही परमात्मा को पाया जा सकता है।

जन्म और वर्ण आधारित व्यवस्था ने भारतीय समाज और चिन्तन को जितनी हानि पहुंचाई है उतनी हानि सम्भवतः हमारे समाज को विदेशी आक्रमण और संस्कृतियाँ नहीं पहुंचा पाई।  रविदास जी “जात-पाँत के फेर मंहि, उरझि रहई सब लोग। मानुषता को खात हइ, रैदास जात कर रोग।।” के उपचार की आकांक्षा रखते हैं। सामाजिक समरसता का स्वप्न और लक्ष्य हमारे समाज की चिर प्रतीक्षित अभिलाषा है। जन्म आधारित अंतर को चुनौती देते हुए रविदास जी कहते हैं  “रैदास जन्म के कारणै, होत न कोई नीच। नर को नीच करि डारि हैं, औछे करम की कीच।।” इस प्रकार मानव-मात्र को सत्कर्म की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि जन्म के कारण कोई नीच नहीं होता बल्कि गलत कर्म करने से व्यक्ति अच्छा या बुरा होता है।

सामाजिक सम्मान और समानता का उद्घोष रविदास जी के साहित्य सृजन का अभिन्न अंग है – “एकै माटी के सभै भांडे, सभ का एकै सिरजनहार। रैदास व्यापै एकौ घट भीतर, सभ को एकै घडै कुम्हार।।” प्रभु भक्ति का मार्ग न केवल व्यक्ति के बल्कि समाज के परिवर्तन और उत्थान का मार्ग है। आध्यात्म के मार्ग पर चलने वाले पथिकों में जाति-पाति का भेद नहीं है – “जन्म जात मत पूछिए, का जात और पाँत। ‘रैदास’ पूत सम प्रभ के कोई नहिं जात-कुजात।।” इस प्रकार रविदास जी के विचारानुसार ‘रैदास एकै ब्रह्म का होई रहयों सगल पसार। एकै माटी सब घट सजै, एकै सभ कूँ सरजनहार’ प्रभु के यहाँ कोई जातिगत भेदभाव नहीं है, हम सब एक प्रभु के पुत्र हैं, एक प्रभु की रचना हैं, और मानव जाति से ही सम्बन्ध रखते हैं।


ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी को बनाने वाला वह एक ही ‘सिरजनहार’ परमात्मा है। ‘एक बूँद से सब जग उपज्या’ मन्त्र के महान साधक रविदास जी के अनुसार उस एक ही बूँद (प्रभु) का विस्तार ही यह संसार है। प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा में उसी परमात्मा का अंश विद्यमान है, फिर किस आधार पर किसी एक को श्रेष्ठ तथा किसी दूसरे को निकृष्ट समझा जाए।

सामाजिक क्रांति के अग्रदूत संत रविदास ने हिंदू मुसलमानों में भावात्मक एकता स्थापना, समरस समाज, विषमताहीन समाज की स्थापना का एक भावचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है और धार्मिक संकीर्णताओं, भेदभावों, मांसाहार, अनैतिकता, छुआछूत तथा वर्ण व्यवस्था, तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक शोषण तथा धनलिप्सा के कारण अधर्म, दुराचरण जैसे सामाजिक दुर्गुणों का परिष्कार करने की प्रेरणा दी है। एक ऐसे समरस समाज के निर्माण का लक्ष्य तभी पूरा हो सकता है जब संत रविदास जी जैसे महान व्यक्तित्व के आदर्शों को जीवन में उतारते हुए हम सभी अपना पूरा प्रयास करें।

(लेखक चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय, भिवानी (हरियाणा) में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष है।)

संस्कारित परिवार, संयुक्त परिवार ,श्रेष्ठ परिवार 

हम सबको भगवान शिव के परिवार से  सप्रेम और आपसी सामंजस्य की शिक्षा अवश्य प्राप्त करनी चाहिए | भगवान शंकर के परिवार में पार्वती, कार्तिक और गणपति के अलावा और भी प्राणी हैं, भगवान शिव का वाहन बैल, माता पार्वती का वाहन सिंह, कार्तिक का वाहन मोर और गणेश जी का वाहन चूहा, सभी वाहन एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं फिर भी सभी एक साथ  प्यार से रहते  है,वैल सिंह को प्यार करता है | भगवान के गले में लटके सांप की आज्ञा को मोर मानता है, चूहा सब पर  दादागिरी का रौब जमाता है | ऐसा अनोखा संगम केवल भगवान शिव के परिवार में ही हो सकता है | आजकल तो एक परिवार के पांच व्यक्ति हो तो उन पांचों की विचारधारा अलग अलग होती है, पिता पुत्र की बात नहीं मानता तो पति पत्नी के विपरीत चलती है ऐसे परिवार में सदा क्लेश का वातावरण रहता है यदि हम भगवान शिव के परिवार से प्रेम करते हैं तो हमे सामंजस्य  की शिक्षा लेकर आपस में प्रेम पूर्वक रहना चाहिए, जिस तरह भगवान शिव का परिवार रहता है | एकल परिवारों की अपेक्षा संयुक्त परिवार में रहने वाले माता पिता और बच्चे सभी लोग अधिक स्वास्थ्य रहते हैं | एक साथ रहना सुरक्षित ही नहीं अच्छे स्वास्थ्य का मूल भी है | परिवार में दादा दादी अपने पोते पोतियो के साथ घुल मिलकर रहने से कई बड़ी बड़ी  समस्यसये सहज समाप्त हो जाती है | एक साथ नहीं रह सकते हो तो हमें अपने सब आनंद के विषयों को ढूंढ कर उनको एक साथ मनाना चाहिए | जैसे दिवाली,होली,रक्षाबंधन व दशहरा इत्यादि | ऐसे अनेकों त्यौहार हैं जो हम परिवारके सभी सदस्य अलग-अलग रहते हुए भी एक साथ मिलकर बना सकते हैं |संस्कारित रहेंगे, संयुक्त रहेंगे, तो परिवार का भला होगा, संस्कारित परिवार, संयुक्त परिवार ,श्रेष्ठ परिवार |

सतीश शर्मा 




CAREER



Accumulation of degrees is in no way a reflection of your success.

Pursuing any career after finishing school requires a unique set of skills. It is unfortunate that in our schools, many students avoid opting for vocational streams for the fear of not being successful in the future. It is not a rare sight where we find brilliant/ or average students who are devoid of basic practical skills regardless of what they score in examinations. We need to consti remind ourselves that 98% in exams do not guarantee a successful career.

 It is how they say, a time for paradigm shift. Hunnar (Talent) is a must for all of us to be sustainable in the ongoing global trends. Upskilling and reskilling are important tools as we learnt during this global pandemic. We witnessed an unprecedented challenge during 2019– aside from finding a vaccine, a new normal emerged in terms of learning. Connecting and interacting became an integral part of our lives. Suddenly, technology took the front seat. The schools, the CBSE board, which rightly, so always banned the use of mobile phones during class, shifted to the use of any tool for virtual classes.

 The Internet challenge, affordability, urban divide , poor health etcetera completely took over and our educators and parents had no other option but to adapt to the new normal. We all became digital without any formal education.

 A silent yet powerful education revolution brewed only to become much more impactful during this unusual time. It is truly the time when we must wake up to focus on creating a well equipped talent pool for a global secured future for our country. The fundamental understanding of concepts is indispensable if we want to continue on this journey of employability .The approach and teaching modules need to be restructured to make the maximum use of new technology and jobs.

 Wisdom must take the front seat rather than simply acquiring knowledge from textbooks.

AI and Machine learning inclusion in teaching and learning pedagogies will help students to be skilled in Digital tools and to be able to succeed in the real world. The need of the hour is to bridge the learning/ or skill gap making vocational training pivotal in these modern times for skill driven careers.

 Now that we have all seen and understood that the focus needs to shift to practical skills for a successful career, the academic boards are redesigning their curriculum.

 Extra curricular activities are now being encouraged for enhancing interpersonal and people's skills. The focus now must shift toward holistic development as opposed to accumulation of medals. Let our future generation be future ready for metaverse skills.

 Rome is not built in a day thus we need patience and perseverance to achieve this target of upgrading our skills.. IMchnical skills may assure you jobs,

However soft skills can take you toTOP

Or break you as a manager ….(jokes apart)

Madhu ved

Educationist

mdh.ved@gmail.com


पंचक विचार फरवरी - 2022  

पंचक विचार -(धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से रेवती नक्षत्र तक) पंचको में दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना मकान दुकान आदि की छत डालना चारपाई पलंग आदि बुनना,दाह संस्कार,बांस की चटाई दीवार प्रारंभ करना आदि स्तंभ रोपण तांबा पीतल तृण काष्ट आदि का संचय करना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है समुचित उपाय एवं पंचक शांति करवा कर ही उक्त कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होगा ध्यान रहेगा  पंचर नक्षत्रों का विचार मात्र उपरोक्त विशेष कृतियों के लिए ही किया जाता है विवाह मंडल आरंभ गृह प्रवेश प्रवेश उपनयन आदि मुद्दों से तो पंचक नक्षत्रका प्रयोग शुभ माना जाता है पंचक विचार-दिनांक 02 को 06-44 से दिनांक 06 को 17-09 बजे तक पंचक हैं |

अधिक जानकरी के लिए संपर्क करे शर्मा जी 9312002527

ग्रह स्थिति फरवरी - 2022

ग्रह स्थिति - दिनांक 4 बुध मार्गी ,दिनांक 13 सूर्य कुम्भ में, दिनांक 24 शनि उदय, गुरु पश्चिम अस्त  दिनांक 26 मंगल मकर में , दिनांक 27 शुक्र मकर में |

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नौकासन

 

आसन करने की विधि -  पीठ के बल लेट जाए।आपके हाथ जांघ के बगल हो और आपकी शरीर एक सीध में हो।अपने शरीर को ढीला छोड़े और सांस पर ध्यान दें।अब आप सांस लेते हुए अपने सिर, पैर, और पुरे शरीर को 30 डिग्री पर उठायें।ध्यान रहे आपके हाथ ठीक आपके जांघ के ऊपर हो।इस आसन में शरीर की आकृति नाव के समान हो जाती है। इसलिए इसे नौकासन कहा जाता है। 

आसन करने के लाभ - इस आसन में पूरे शरीर का भार पेट पर आ जाता है। बाकी शरीर आगे-पीछे से ऊपर उठ जाता है, जिससे पेट की मांसपेशियों की ताकत बढ़ती है व पाचन संस्थान स्वस्थ व बलिष्ठ हो जाता है | प्रतिदिन नौकासन का अभ्यास करने से पेट की अतिरिक्त चर्बी गायब होने लगती है। पेट के साथ ही कमर का मोटापा भी कम हो जाता है। -नौकासन करने से पीठ, पैर, कमर और पेट की मांसपेशियां भी मजबूत होती हैं। -मेरूदंड को मजबूत करने के लिए भी नौकासन करना चाहिए।नौकासन को अपने शरीर की छमता अनुसार करना चाहिए। इसे खाली पेट करें। जब धकान हो रुक जाए | 

 


 

चंद्र ग्रह

 

नवग्रहों में सूर्य के बाद चन्द्रमा ज्योतिष में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रह है | चंद्र ग्रह कर्क राशी का स्वामी है | 

कमजोर चंद्र के कारण होने वाले कष्ट - व्यक्ति को स्त्री पक्ष से या स्त्री को लेकर कष्ट बना रहता है | हारमोंस की समस्या और अवसाद का योग बनता है नींद न आने की समस्या भी होती है,व्यक्ति बार बार नींद में चौंक कर उठ जाता है | व्यक्ति को माता का सुख नहीं मिलता या व्यक्ति के सम्बन्ध माता से ख़राब होता है |

चंद्र दोष दूर करने के उपाय - कुण्डली में उत्पन्न चंद्र दोष को दूर करने के लिए सर्वौत्तम उपाय है कि सोमवार के दिन भगवान शिव का गाय के दूध से रूद्राभिषेक करना चाहिए।स्फटिक की माला पहनने से भी चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है।चंद्रोदय के समय दूध में चावल और बताशा डाल कर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए।चंद्र नीच का हो तो चंद्र की चीजों का दान नही लेना चहिये। शिव चालीसा का नियमित पाठ करें। चंद्र पीड़ा की विशेष शांति हेतु चांदी, मोती, शंख, सीप, कमल और पंचगव्य मिलाकर सात सोमवार तक स्नान करें। पंच धातु के शिवलिंग का निर्माण करके उसका यथायोग्य पूजन करने से चंद्र पीड़ा शांत होती है। सोम वार के व्रत करे | पूर्णिमा के दिन चंद्र दर्शन करे व चन्द्रमा की रौशनी में चंद्र मन्त्र का जाप करे | चंद्र देव को सफेद रंग प्रिय है इसलिय सोमवार व पूर्णिमा को सफेद रंग की चीज दान करे |

चंद्र ग्रह का रत्न - मोती 

चंद्र ग्रह की धातु - सुवर्ण , चांदी,

चंद्र ग्रह का वार - सोमवार 

दान योग्य वस्तु - चावल ,मिश्री ,दही ,स्वेत वस्त्र ,श्वेत पुष्प ,शंख ,श्वेत चन्दन |

चन्द्रमा कमजोर होने पर होने वाले रोग तिल्ली ,पांडू ,यकृत ,कफ ,उदर संबंधी रोग  

चंद्रदेव मंत्र

ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:। ॐ भूर्भुव: स्व: अमृतांगाय विदमहे कलारूपाय धीमहि तन्नो सोमो प्रचोदयात्

चौघड़िया मुहूर्त 

चौघड़िया मुहूर्त देखकर कार्य या यात्रा करना उत्तम होता है। एक तिथि के लिये दिवस और रात्रि के आठ-आठ भाग का एक चौघड़िया निश्चित है। इस प्रकार से 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात मानें तो प्रत्येक में 90 मिनट यानि 1.30 घण्टे का एक चौघड़िया होता है जो सूर्योदय से प्रारंभ होता है | 

अधिक जानकरी के लिए संपर्क करे शर्मा जी 9312002527


भद्रा विचार फरवरी- 2022 

भद्रा काल का शुभ अशुभ विचार - भद्रा काल में विवाह मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन आदि मांगलिक कृत्य का निषेध माना जाता है परंतु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन करना,स्त्री प्रसंग में,यज्ञ करना, स्नान करना, अस्त्र शस्त्र का प्रयोग, ऑपरेशन कराना, मुकदमा करना, अग्नि लगाना, किसी वस्तु को काटना,घोड़ा ऊंट संबंधी कार्य, प्रशस्त माने जाते हैं सामान्य परिस्थिति में विवाह आदि  शुभ मुहूर्त में भद्रा का त्याग करना चाहिए परंतु आवश्यक परिस्थितिवश अति आवश्यक कार्य  में पंडित जी से विचार कर लेना चाहिए 9312002527 

दिनांक 

शुरू 

दिनांक 

समाप्त 

04

16-12

05

03-47

08

06-16

08

19-23

12

03-09

12

16-27

15

21-43

16

10-04

19

10-12

19

21-56

22

18-34

23

05-45

25

23-48

26

10-39



मोती 



मोती एक सुंदर चमकदार सफेद रंग का अपार दर्शक प्राणित रत्न है | यह चंद्रमा का रत्न है | मोती एक विशेष जाति की शिप के गर्भ से प्राप्त होता है संस्कृत में मोती को मुक्ता,मुक्ताफल कहते हैं | जिस मोती में जितनी अधिक परत होती है वह उतना ही बड़ा और सुडोल मालूम पड़ता है क्योंकि अधिक परतो वाला मोती बड़े आकार का होने से वह प्रकाश को ज्यादा परिवर्तित करता है | और चंद जी मिनटों में मोती की तरफ देखने वाले को मोह लेता है | यदि मोती के निर्माण के दौरान कोई विजातीय द्रव्य शिप  में घुस जाए तो मोती टेढ़ा मेढ़ा हो जाता है  एवं चमक हींन  हो जाता है | 

मोती के भेद - मोती के 8  भेद होते  हैं | गज मोती,वराह मोती,सर्प मोती मत्स्य मोती, मेघ मोती,बांस मोती, शंख मोती व सीपी मोती | मोती के प्रकार - उत्तम मोती, अनुपयोगी मोती, ऑस्ट्रेलिया मोती , नेचुरल मोती व अमरीकन मोती | ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करने वाला रत्न मोती है | जिन जातकों का चंद्रमा कमजोर हो तो उन्हें मोती धारण करना शुभ होता है | उग्र चंद्रमा अगर मंगल या राहु के साथ हो तो व्यक्ति को बेचैनी और अनमनापन रहता है | ऐसी अवस्था में भी सुध मोती की अंगूठी या मोती की माला धारण करने से लाभ मिलता है | मेष, कर्क, वृश्चिक और मीन लग्न के लिए मोती धारण करना लाभदायक है।सिंह, तुला और धनु लग्न वालों को विशेष दशाओं में ही मोती धारण करने की सलाह दी जाती है।इसे धारण करने से व्‍यक्ति अपने गुस्‍से पर काबू करना सीख जाता है। सर्दी जुकाम की समस्‍याएं दूर होती हैं और मन में सकारात्‍मक विचारों का प्रवाह बढ़ने लगता है। पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार मोती का संबंध मां लक्ष्‍मी से माना जाता है। मोती को धारण करने से मां लक्ष्‍मी की विशेष कृपा प्राप्‍त होती है।मोती शुक्ल पक्ष के सोमवार को धारण करना शुभ माना गया है | मोती को हमेशा सोमवार को खरीना चाहिए। इसे चांदी में बनवाकर कनिष्ठिका या फिर अनामिका में पहना जाता है। मोती को पहनने के ​पहले शुभ समय अवश्य देख लें। मोती की प्राण प्र​तिष्ठा करने किसी भी पुष्य नक्षत्र, सोमपुष्य या सोमवार को आये अमृत सिद्ध योग में की जा सकती है।पुरूषों को 7.25 रत्ती एवं महिलाओं को 4.25 रत्ती का मोती धारण करना चाहिए। मोती के साथ गोमेद धारण नहीं चाहिए। मोती और चांदी दोनों ही चंन्द्रमा से संबंध रखते हैं। इसलिए मोती को चांदी में ही धारण करना शुभ रहता है।मोती को चांदी की अंगूठी में दाहिने हाथ की कनिष्ठिका अंगुली में पहनें ।काला मोती शनि का प्रतीक माना जाता है, राहु का भी समावेश होता है | काले धागे में काला मोती धारण करने के चमत्कारी परिणाम होते हैं | इसको धारण करने से नजर नहीं लगती, शनि का महादशा और साढेसाती के कष्टों से मुक्ति मिलती है | काला मोती धारण करने से हर मनोकामना पूरी होती है, शत्रुओं का भय नहीं रहता है |


सर्वार्थ सिद्धि योग फरवरी-2022

दैनिक जीवन में आने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शीघ्र ही किसी  शुभ मुहूर्त का अभाव हो,किंतु शुभ मुहर्त के लिए अधिक दिनों तक रुका ना जा सकता हो तो इन सुयोग्य वाले मुहर्तु  को सफलता से ग्रहण किया जा सकता है | इन से प्राप्त होने वाले अभीष्ट फल के विषय में संशय नहीं करना चाहिए यह योग हैं सर्वार्थ सिद्धि,अमृत सिद्धि योग एवं रवियोग | योग्यता नाम तथा गुण अनुसार सर्वांगीण सिद्ध कारक  है|अधिक जानकरी के लिए संपर्क करे शर्मा जी 9312002527

दिनांक

प्रारंभ

दिनांक

समाप्त

06

17-09

07

07-09

08

21-27

10

07-08

14

11-52

15

07-04

15

13-48

16

07-03

18

07-01

18

16-41

20

06-59

20

16-42

23

14-41

24

13-30

27

08-46

28

06-51

28

07-01

01

05-18

 

मूल नक्षत्र विचार  फरवरी - 2022 





दिनांक

शुरू 

दिनांक

समाप्त 

05

16-08

07

18-58

15

13-48

17

16-10

24

13-30

26

10-31


सुर्य उदय- सुर्य अस्त फरवरी-2022 


दिनांक

उदय 

दिनांक

अस्त 

07-13 

1

17-56

5

07-11

5

18-00

10

07-07

10

18-03

15

07-03

15

18-07

20

06-59

20

18-11

25

06-54

25

18-14

28

06-51

28

18-16


बंदउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥

बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥





माघ मास 

माघ मास में जन्मे सुंदर चेहरा ,मनोहर ,नरम  स्वभाव ,अपनी इक्छा अनुसार कार्य करने वाली /वाला दुसरो को अपनी बात पूरी तरह प्रकट ना होने दे |

पंचांग के अनुसार माघ  (चंद्रमास) वर्ष का ग्यारहवां महीना होता है। पौष के बाद माघ माह प्रारंभ होता है। इसका नाम माघ इसलिए रखा गया क्योंकि यह मघा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा से प्रारंभ होता है। चंद्रमास के महीने के नाम नक्षत्रों पर ही आधारित है, जैसे पौष का पुष्य नक्षत्र से संबंध है। पुराणों में माघ मास के महात्म्य का वर्णन मिलता है।

पद्म पुराण में माघ मास में कल्पवास के दौरान स्नान, दान और तप के माहात्म्य के विस्तार से वर्णन मिलता है। इसके अलावा माघ में ब्रह्मवैवर्तपुराण की कथा सुनने के महत्व का वर्णन भी मिलता है।

माघ कृष्ण द्वादशी को यम ने तिलों का निर्माण किया और दशरथ ने उन्हें पृथ्वी पर लाकर खेतों में बोया था। अतएव मनुष्यों को उस दिन उपवास रखकर तिलों का दान कर तिलों को ही खाना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है। 

माघ मास में प्रयाग संगम तट पर कल्पवास करने का विधान है। साथ ही माघ मास की अमावास्या को प्रयागराज में स्नान से अनंत पुण्य प्राप्त होते हैं। वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, रुद्र, आदित्य तथा मरूद्गण माघ मास में प्रयागराज के लिए यमुना के संगम पर गमन करते हैं।माघ मास में  स्नान, दान, और जप,तप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है | भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है | माघ मास में पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और इच्छाएं भी पूरी होती हैं। प्राचीन पुराणों में यहां तक कहा गया है कि भगवान नारायण को प्राप्त करने के लिए सबसे सुगम रास्ता माघ मास के पुण्य काल में पवित्र नदियों में स्नान करना है।

वैसे तो हर मास का अपना विशेष स्थान है लेकिन माघ मास विशेष पुण्यदायी माना गया है। मान्यता है कि इस महीने किए गए पुण्य कार्यों का फल हमेशा कई जन्मों तक मिलता है। माघ मास के बारे में जो भी व्यक्ति जरूरतमंद की मदद करता है और ब्रह्मावैवर्त 


पुराण का दान करता है, उसे ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है। 

माघ मास में  हर रोज गीता का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से मन शांत रहता है और नारायण का आशीर्वाद भी मिलता है। ऐसा करने से हमारे अंदर के सभी नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं और इससे भाग्य भी आपका साथ देना शुरू कर देता है। माघ मास में नियमित गीता पाठ से सोचने और समझने की शक्ति में बृद्धि होने लगती है।

विष्णु भगवान को तिल अर्पित करें, तिल से भगवान की पूजा और तिल बोलने मात्र से पाप का प्रभाव तिल-तिल कर क्षय होने लगता है। नियमित तिल खाने और जल में तिल डालकर स्नान करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है।

संसार में कोई भी मनुष्य सर्वज्ञ नहीं है, सभी लोग अल्पज्ञ हैं।इसलिए सभी लोगों से कहीं न कहीं, छोटी,बड़ी,जाने अनजाने,कुछ न कुछ गलतियां होती ही रहती हैं। 

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भागवत कथा सात का महत्व  

हम सात दिन की कथा सुनके अपने जीवन के सभी सातो दिनों को पवित्र कर लेते हैं! पाप रहित बनें!  राजा परीक्षित को सात दिन का शाप मिला तो तुरंत अपने पुत्र जनमेजय को  सौंपकर चलपड़े! पर मन में एक प्रश्न है? जीवन में प्रश्नो का होना बहुत महत्वपूर्ण है, अबोध बालक जो कुछ नहीं जनता वह भी एक दिन में न जाने कितने सारे प्रश्न करता है! फिर हम भी तो परमात्मा के विषय में अबोध हैं, कुछ जानते नहीं, हमारे पण्डित जी ने जो कहा उसी के आधार पर हमारी पूजा बढ़ जाती है!

तो हमें अपनी पूजा नहीं बढा़नी हमें तो श्रद्धा बढा़नी है, जब तक जानकारी नहीं  होगी, तब तक श्रद्धा भी नहीं बढे़गी! इसलिए परमात्मा की प्रीति के लिए प्रश्न जरूरी है, परन्तु प्रश्न करने से पहले ध्यान दें की हम प्रश्न किससे कर रहे है! और प्रश्न कहां कर रहे हैं! दूसरी बात हम जिनसे प्रश्न करते हैं! उनके प्रती आदर भाव आवश्यक है! महाभारत में जब अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रश्न किया, तो प्रश्न के पहले अर्जुन ने अपने आपको शिष्य माना! इसलिए आप जब शिष्य भाव से प्रश्न करेंगे, तो आपको प्रश्नों के उत्तर अवश्य मिलेंगे! राजा परीक्षित के जीवन में भी प्रश्न आया, और प्रश्न था की अब तक तो मैं जिया, खूब ऐश्वर्य भी पाया, पर अब मेरी जिन्दगी सिर्फ सात दिन की है, और मुझे मरना भी होगा? पर मैं मरूं कैसे? और मरने बाले को करना क्या चाहिए? अपनी मृत्यु को सुधारने के लिए राजा, राज्य को त्याग​कर गंगा नदी के तट पर अनसन में बैठगया! और शुक देव जी ने उसे मरने की विधी बताई!

पहले वर्तमान सुधारो, राजा परीक्षित अपना भूत भूलगया और वर्तमान को सुधारने का प्रयास किया!  भविष्य की चिन्ता मत करो यदी वर्तमान अच्छा है, तो भविष्य भी उज्वल होगा, वर्तमान की चिन्ता करते जो बैठा रहता है, वह मूर्ख है! दूसरी बात की ठाकुर जी की बड़ी कृपा है की हम अन्धे नहीं हैं! हमारे पास एक नहीं पूरी दो आंखें हैं हम बहुत भाग्यशाली हैं, परन्तु आंख है पर द्रष्टी नहीं है! आंख तो भगवान ने दी, पर द्रष्टी हमें सत्संग से मिलती है! हम इन सात दिन के सत्संग से दृष्टी प्राप्त करें,

अरे दृष्टी होगी तभी तो दर्शन प्राप्त होगा!

देखने में और दर्शन में अन्तर है! हम देखते हैं जगत को और दर्शन जगदीश का करें, देखने के लिए आंख की आवश्यकता है पर दर्शन के लिए दृष्टी जरूरी है! यदी दृष्टी नहीं तो दर्शन नहीं! तो हम दृष्टी श्रीमद्भागवत कथा से प्राप्त करें!

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनके पास आंख तो है पर दृष्टी नहीं! वही इस संसार में भटकते रहते हैं! और कुछ ऐसे भी होते हैं जिनको आंख नहीं पर दृष्टी है, और वो उसी दृष्टी से समूचे संसार का दर्शन करते हैं! देखने और दर्शन करने में बहुत अन्तर है!

सूरदास बाबा जी के पास आंख तो नहीं पर दृष्टी थी, जिससे वे जगत के साथ​-साथ जगदीश​का भी दर्शन करते थे! एक बार बाबा सूरदास जी को पास के ही गांव से बुलाबा आया, रात्रि का समय था, तो बाबाजी ने एक हाथ में लाठी पकड़ी, दूसरे हाथ में चिमनी लिया और निकल पड़े! कुछ ही दूरी पर एक आंख​वाला मिला, बाबा को देखा! बाबा जय श्रीकृष्णा !

बाबा, शब्द पहचानते हुए बोले- जय श्रीकृष्णा!

आंख बाला-  बाबा इतनी रात को कहां जा रहे हैं!

बाबा- बस यहीं पास में भजन होना है, वहीं जा रहा हूँ!

आंख बाला- अच्छा-अच्छा! पर बाबा के हाथ में चिमनी देख वह चकित हुआ और बोला-

बाबा बुरा न मानों तो एक बात कहूं?

बाबा- हां हां बोलो क्या बात है?

आंख बाला- बाबा! आपको तो दिन में भी कुछ दीखता नहीं, तो रात में क्या! आपने ये चिमनी क्यों लिया है?

बाबा- मुस्कुराते हुए! हां तू ठीक कहता है, पर जिनको आंख है उनको तो दीखेगा! और वो मुझसे टकराएंगे नहीं! और बात भी सही है, आंख बाले ही यहां वहां भटकते हैं! ऐसा तीखा जबाब दियाबाबा ने की उस आंख बाले की आंख खुल ग​ई! सूरदास जी के पास आंखें नहीं थी, पर दृष्टी थी! बिना आंख बाले के पास यदी जीवन जीने की दृष्टी है तो बस उनको जीवन का सही मार्ग मिल जाता है!

श्रीमद्भागवत कथा क्या है?

श्रीमद्भागवत कोई पुस्तक नहीं, कोई साधारण ग्रंथ नहीं, श्रीमद्भागवत तो भगवान   श्रीकृष्ण   का साक्षात वांग्मय स्वरूप है! यहां पर एक परिभाषा देते हुए संत कहते है-

!!भगवता प्रोक्तं इति भागवतं !!

भगवान ने अपने मुख से कहा है जो वह भागवत!  भगवान नारायण ही भागवत के प्रथम  प्रवक्ता  हैं! भगवान नारायण ने सर्वप्रथम भागवत कथा ब्रह्मा जी को सुनाई! जिसे कहते है चतुश्लोकी भागवत! ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र नारद जी को सुनाई, नारदजी ने व्यास जी को सुनाई! व्यासजी ने उसका विस्तार किया, व्यास का एक अर्थ विस्तार भी है! तो व्यासजी ने विस्तार किया, भागवत को बारह (12) स्कन्ध और 335 अध्याय तथा 

18000 श्लोकों का विस्तार किया!

फिर व्यासजी ने यह भागवत कथा अपने ही पुत्र शुकदेव जी को सुनाई, और शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सुनाई, और उसी समय यह कथा सूतजी ने सुनी, तो सूतजी ने शौनकादि सहित 88000 ऋषियों को भागवत कथा सुनाया! इस तरह से यह कथा परंपरागत रूप से आज आप भी इस कथा का रसपान कर रहें हैं! इतनी चर्चा के बाद अब हम कथा की ओर चलते हैं! सबसे पहले हम आपका परिचय भागवतजी से कराते हैं, और भागवतजी की महिमा का श्रवण करते हैं! कथा प्रारंभ करने से पहले हम महात्म की चर्चा  करते हैं, क्योंकि जब तक हम किसी की महिमा न सुनें, तब तक बात असर नहीं करती! इसलिए  पहले भागवतजी से परिचय हो, भागवतजी अपनी महिमा स्वयं नहीं करते, तो भागवतजी की महिमा गाता कौन है?

भागवतजी का परिचय हमसे पद्मपुराण करा रहे हैं! व्यासजी की यह आज्ञा है, कि वक्ता पहले पद्मपुराण के अन्तर्गत महात्म्य के जो छ​: अध्याय का महात्म्य वर्णन है, वह पहले कहें और भागवत जी का परिचय करायें! क्योंकि-


बड़े  बड़ाई  न  करें,  बड़े न  बोलें  बोल !

हीरा मुख से न कहे, लाख हमारा मोल !!

अपने ही मुख कोई अपनी बड़ाई प्रसंशा नहीं करता, बस यही कारण है की दूसरे ग्रंथ भागवत जी की महिमा गाते हैं, हमसे परिचय कराते हैं! तो आईये  हम भागवत जी की महिमा का रसपान करें, पद्मपुराण के माध्यम से, आरम्भ में वेदव्यासजी ने मंगलाचरण किया तो हम भी यहां पर मंगलाचरण करें!

कोई शुभ कार्य करने से पहले मंगल कामना की जाती है या मंगल आचरण किया जाता है, यही तो मंगलाचरण है!

सच्चिदाऽनन्दरूपाय 

हमारे वेदों ने, शास्त्रों ने, संतो ने दो बात बताई है! एक बात तो यह की परम तत्व का परिचय, और दूसरी बात उसकी प्राप्ती का उपाय! जब परिचय हुआ की यह रसगुल्ला है, तो फिर उसकी प्राप्ती  की इच्छा होती है! तो....प्रश्न उठता है, की गुरूदेव हम परमतत्व की प्राप्ती कैसे करें?

तो यहां पर गुरूदेव ने प्राप्ती का साधन बताया! पहले तो परिचय दिया, वो भी एक नहीं पूरे तीन प्रकार से! (१)स्वरूप परिचय (२)कार्य परिचय (३)स्वभाव परिचय! तो पहला स्वरूप परिचय-सच्चिदाऽनन्दरूपाय 

यह हुआ स्वरूप परिचय! स्वरूप कैसा है ?.... सत चित और आनन्द स्वरूप! सत शब्द से सास्वता बताई है, अब सत है ठीक है, पर सत के साथ चित याने चेतन्यता, तो चेतन्यता का होना परम आवश्यक है, नहीं तो सत जड़ हो जायेगा!  जैसे- माईक है पर बिजली नहीं है! तो?.. माईक जड़ हो गया न! इसलिए सत के साथ चित भी आवश्यक है! अब चलो ठीक है सत है चित भी है, पर आनन्द नहीं है, हां सत और चित के साथ आनन्द का होना अतिआवश्यक है! क्यों?.. क्योंकी माईक है और बिजली भी है पर वक्ता अर्थात बोलने बाला नहीं है, तो ये दोनों व्यर्थ हैं!

इसलिए यदी माईक है तो लाईट का होना आवश्यक है और माईक लाईट दोनों हैं तो वक्ता का होना  जरूरी है! अत्: सत है तो चित का होना आवश्यक है और सत चित दोनों हैं तो आनंद की अनुभूति होनी ही है! इसमें संका नहीं, तो परमात्मा कैसा है? सत्य चित्य और आनन्द स्वरूप, यह हुआ स्वरूप परिचय! किसी ने पूछा- गुरुदेव वो करते क्या हैं? तो यहां पर कार्य का परिचय दिया! 

विश्वोत्पत्यादि हेतवे

क्या करते हैं?... विश्व की उत्पत्ती करते हैं! आगे आदि शब्द भी जुड़ा है, तो आदि का मतलब...?उत्पत्ती ही नहीं करते और भी कुछ करते हैं, क्या...?  उतपत्ती, स्थिती और लय, मतलब जन्म भी  देते हैं, पालन, पोषण भी करते हैं, और फिर विनाश भी कर देते हैं!

किसी ने कहा महाराज​! उत्पत्ती, स्थिती, और लय तो हम भी करते हैं! अच्छी बात है, पर उसकी उत्पत्ती, स्थिती, लय में और उत्पत्ती, स्थिती, लय में बहुत अंतर है! हमारी उत्पत्ती में मोह है, पालन में अपेक्षा है, और लय में सोक है! कैसे?.. हम उत्पत्ती करते हैं तो संतान से मोह होता है, हम उसका पालन, पोषण करते हैं, पढा़ते- लिखाते हैं, योज्ञ बनाते हैं! फिर हम उससे अपेक्षा रखते हैं, की अब तो हम बूढे़ हो ग​ए हैं, अब पुत्र ही  हमारी सेवा करेगा, ये अपेक्षा है! पर हमें मिलता क्या है?.. उपेक्षा! हमारा ही बेटा हमें, अपनाने से मना कर देता है! मोह हुआ, अपेक्षा भी हुई, अब यदी दैव बस किसी दुर्घटना में वह पुत्र मारा गया, तो शोक भी हो गया!


परन्तु परमात्मा को, न तो अपनी उत्पत्ती पर मोह होता है, न ही अपेक्षा और न शोक, क्योंकि जहां मोह है, वहां शोक,  और जहां अपेक्षा वहां उपेक्षा का होना अनिवार्य है! भगवान सूर्य नारायण, हमने जब से देखा वे समय से उदय समय से अस्त होते हैं, पूरी पृथ्वी को  प्रकाशित करते हैं! जिस कारण ही हमारा जीवन है, तो क्या उन्होंने आपको कभी विल भेजा! पवन देवता, वरुण देवता ने कभी किराया मांगा, हमारी हवा लेते हो, हमारा पानी पीते हो लो ये विल चुकाओ! ब्रम्ह को अपनी श्रृष्टी में न तो मोह है, और न ही अपेक्षा! उत्पत्ती, स्थिती,  और लय यह परमात्मा का कार्य परिचय हुआ!  अब इनका स्वभाव कैसा है?..

तापत्रय विनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुम​:

तो स्वभाव कैसा है?..

महाराज नमस्कार करने मात्र से मानव के तीनों तापों को मिटा देतें हैं! इतने दयालू स्वभाव के हैं!  केवल नमस्कार करने मात्र से सारे दु:ख दूर हो जाते हैं!



मुखिया मुखु सो चाहिए खान-पान कहुँ एक ।

पालई-पोषई सकल अंग तुलसी सहित विवेक ||

 तुलसीदास जी के अनुसार मुखिया मुख के समान होना चाहिए ।जो खाने पीने के लिए तो अकेला है लेकिन विवेक -पूर्ण हर अंगों का पालन पोषण करता है ।

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर ।

वसीकरन इक मंत्र है परिहरु बचन कठोर ।।

 मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते है ।किसी को भी वश में करने का ये मंत्र होता है । इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह कठोर वचन छोड़कर मीठा बोलने का प्रयास करे ।

अटूट विश्वास 

मेरी बेटी की शादी थी और मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर शादी के तमाम इंतजाम को देख रहा था उस दिन सफर से लौट कर मैं घर आया तो पत्नी ने आ कर एक लिफाफा मुझे पकड़ा दिया | लिफाफा अनजाना था लेकिन प्रेषक का नाम देख कर मुझे एक आश्चर्यमिश्रित जिज्ञासा हुई !

‘अमर विश्वास’ एक ऐसा नाम जिसे मिले मुझे वर्षों बीत गए थे |मैं ने लिफाफा खोला तो उस में 1 लाख डालर का चेक और एक चिट्ठी थी. इतनी बड़ी राशि वह भी मेरे नाम पर |

मैं ने जल्दी से चिट्ठी खोली और एक सांस में ही सारा पत्र पढ़ डाला । पत्र किसी परी कथा की तरह मुझे अचंभित कर गया. लिखा था -

आदरणीय सर, मैं एक छोटी सी भेंट आप को दे रहा हूँ  मुझे नहीं लगताकि आप के एहसानों का कर्ज मैं कभी उतार पाऊंगा |

ये उपहार मेरी अनदेखी बहन के लिए है. घर पर सभी को मेरा प्रणाम !

आप का, अमर !

मेरी आंखों में वर्षों पुराने दिन सहसा किसी चलचित्र की तरह तैर गए !

एक दिन मैं चंडीगढ़ में टहलते हुए एक किताबों की दुकान पर अपनी मनपसंद पत्रिकाएं उलटपलट रहा था कि मेरी नजर बाहर पुस्तकों के एक छोटे से ढेर के पास खड़े एक लड़के पर पड़ी | वह पुस्तक की दुकान में घुसते हर संभ्रांत व्यक्ति से कुछ अनुनयविनय करता और कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर वापस अपनी जगह पर जा कर खड़ा हो जाता | मैं काफी देर तक मूकदर्शक की तरह यह नजारा देखता रहा | पहली नजर में यह फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों द्वारा की जाने वाली सामान्य सी व्यवस्था लगी, लेकिन उस लड़के के चेहरे की निराशा सामान्य नहीं थी | वह हर बार नई आशा के साथ अपनी कोशिश करता, फिर वही निराशा !

मैं काफी देर तक उसे देखने के बाद अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाया और उस लड़के के पास जा कर खड़ा हो गया !

वह लड़का कुछ सामान्य सी विज्ञान की पुस्तकें बेच रहा था | मुझे देख कर उस में फिर उम्मीद का संचार हुआ और बड़ी ऊर्जा के साथ उस ने मुझे पुस्तकें दिखानी शुरू कीं मैंने उस लड़के को ध्यान से देखा | साफ सुथरा, चेहरे पर आत्मविश्वास लेकिन पहनावा बहुत ही साधारण |ठंड का मौसम था और वह केवल एक हलका सा स्वेटर पहने हुए था | पुस्तकें मेरे किसी काम की नहीं थीं फिर भी मैं ने जैसे किसी सम्मोहन से बंध कर उस से पूछा - ‘बच्चे, ये सारी पुस्तकें कितने की हैं ?’

‘आप कितना दे सकते हैं, सर ?’अरे, कुछ तुम ने सोचा तो होगा !‘आप जो दे देंगे,’ - लड़का थोड़ा निराश हो कर बोला !

‘तुम्हें कितना चाहिए ?’ उस लड़के ने अब यह समझना शुरू कर दिया कि मैं अपना समय उस के साथ गुजार रहा हूँ !‘5 हजार रुपए,’ वह लड़का कुछ कड़वाहट में बोला | ‘इन पुस्तकों का कोई 500 भी दे दे तो बहुत है,’ -  मैं उसे दुखी नहीं करना चाहता था फिर भी अनायास मुंह से निकल गया | अब उस लड़के का चेहरा देखने लायक था. जैसे ढेर सारी निराशा किसी ने उस के चेहरे पर उड़ेल दी हो | मुझे अब अपने कहे पर पछतावा हुआ. मैं ने अपना एक हाथ उस के कंधे पर रखा और उस से सांत्वना भरे शब्दों में फिर पूछा - ‘देखो बेटे, मुझे तुम पुस्तक बेचने वाले तो नहीं लगते, क्या बात है. साफसाफ बताओ कि क्या जरूरत है ?’

वह लड़का तब जैसे फूट पड़ा | शायद काफी समय निराशा का उतारचढ़ाव अब उस के बरदाश्त के बाहर था |

‘सर, मैं 10+2 कर चुका हूं. मेरे पिता एक छोटे से रेस्तरां में काम करते हैं | मेरा मेडिकल में चयन हो चुका है. अब उस में प्रवेश के लिए मुझे पैसे की जरूरत है| कुछ तो मेरे पिताजी देने के लिए तैयार हैं, कुछ का इंतजाम वह अभी नहीं कर सकते,’ लड़के ने एक ही सांस में बड़ी अच्छी अंगरेजी में कहा !

‘तुम्हारा नाम क्या है ?’ मैं ने मंत्रमुग्ध हो कर पूछा !‘अमर विश्वास !’ ‘तुम विश्वास हो और दिल छोटा करते हो. कितना पैसा चाहिए ?’

‘5 हजार,’ - अब की बार उस के स्वर में दीनता थी !

‘अगर मैं तुम्हें यह रकम दे दूं तो क्या मुझे वापस कर पाओगे ? इन पुस्तकों की इतनी कीमत तो है नहीं,’ इस बार मैं ने थोड़ा हंस कर पूछा |‘सर, आप ने ही तो कहा कि मैं विश्वास हूं. आप मुझ पर विश्वास कर सकते हैं | मैं पिछले 4 दिन से यहां आता हूं, आप पहले आदमी हैं जिस ने इतना पूछा अगर पैसे का इंतजाम नहीं हो पाया तो मैं भी आप को किसी होटल में कपप्लेटें धोता हुआ मिलूंगा,’ - उस के स्वर में अपने भविष्य के डूबने की आशंका थी | उस के स्वर में जाने क्या बात थी जो मेरे जेहन में उस के लिए सहयोग की भावना तैरने लगी | मस्तिष्क उसे एक जालसाज से ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं था, जबकि दिल में उस की बात को स्वीकार करने का स्वर उठने लगा था | आखिर में दिल जीत गया. मैं ने अपने पर्स से 5 हजार रुपए निकाले, जिन को मैं शेयर मार्किट में निवेश करने की सोच रहा था, उसे पकड़ा दिए | वैसे इतने रुपए तो मेरे लिए भी माने रखते थे, लेकिन न जाने किस मोह ने मुझ से वह पैसे निकलवा लिए | ‘देखो बेटे ! मैं नहीं जानता कि तुम्हारी बातों में, तुम्हारी इच्छाशक्ति में कितना दम है, लेकिन मेरा दिल कहता है कि तुम्हारी मदद करनी चाहिए, इसीलिए कर रहा हूँ | तुम से 4-5 साल छोटी मेरी बेटी भी है मिनी. सोचूंगा उस के लिए ही कोई खिलौना खरीद लिया,’ - मैं ने पैसे अमर की तरफ बढ़ाते हुए कहा |

अमर हतप्रभ था. शायद उसे यकीन नहीं आ रहा था. उस की आंखों में आंसू तैर आए !

उस ने मेरे पैर छुए तो आंखों से निकली दो बूंदें मेरे पैरों को चूम गईं |‘ये पुस्तकें मैं आप की गाड़ी में रख दूं ?’‘कोई जरूरत नहीं. इन्हें तुम अपने पास रखो. यह मेरा कार्ड है, जब भी कोई जरूरत हो तो मुझे बताना | वह मूर्ति बन कर खड़ा रहा और मैं ने उस का कंधा थपथपाया, कार स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी !

कार को चलाते हुए वह घटना मेरे दिमाग में घूम रही थी और मैं अपने खेले जुए के बारे में सोच रहा था, जिस में अनिश्चितता ही ज्यादा थी | कोई दूसरा सुनेगा तो मुझे एक भावुक मूर्ख से ज्यादा कुछ नहीं समझेगा. अत: मैं ने यह घटना किसी को न बताने का फैसला किया |दिन गुजरते गए. अमर ने अपने मेडिकल में दाखिले की सूचना मुझे एक पत्र के माध्यम से दी | मुझे अपनी मूर्खता में कुछ मानवता नजर आई. एक अनजान सी शक्ति में या कहें दिल में अंदर बैठे मानव ने मुझे प्रेरित किया कि मैं हजार 2 हजार रुपए उस के पते पर फिर भेज दूं | भावनाएं जीतीं और मैं ने अपनी मूर्खता फिर दोहराई | दिन हवा होते गए. उस का संक्षिप्त सा पत्र आता जिस में 4 लाइनें होतीं !

2 मेरे लिए, एक अपनी पढ़ाई पर और एक मिनी के लिए, जिसे वह अपनी बहन बोलता था | मैं अपनी मूर्खता दोहराता और उसे भूल जाता. मैं ने कभी चेष्टा भी नहीं की कि उस के पास जा कर अपने पैसे का उपयोग देखूं, न कभी वह मेरे घर आया | कुछ साल तक यही क्रम चलता रहा. एक दिन उस का पत्र आया कि वह उच्च शिक्षा के लिए आस्ट्रेलिया जा रहा है | छात्रवृत्तियों के बारे में भी बताया था और एक लाइन मिनी के लिए लिखना वह अब भी नहीं भूला | मुझे अपनी उस मूर्खता पर दूसरी बार फख्र हुआ, बिना उस पत्र की सचाई जाने | समय पंख लगा कर उड़ता रहा. अमर ने अपनी शादी का कार्ड भेजा. वह शायद आस्ट्रेलिया में ही बसने के विचार में था | मिनी भी अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी. एक बड़े परिवार में उस का रिश्ता तय हुआ था | अब मुझे मिनी की शादी लड़के वालों की हैसियत के हिसाब से करनी थी | एक सरकारी उपक्रम का बड़ा अफसर कागजी शेर ही होता है. शादी के प्रबंध के लिए ढेर सारे पैसे का इंतजाम…उधेड़बुन…और अब वह चेक ? मैं वापस अपनी दुनिया में लौट आया. मैं ने अमर को एक बार फिर याद किया और मिनी की शादी का एक कार्ड अमर को भी भेज दिया| शादी की गहमागहमी चल रही थी. मैं और मेरी पत्नी व्यवस्थाओं में व्यस्त थे और मिनी अपनी सहेलियों में | एक बड़ी सी गाड़ी पोर्च में आ कर रुकी | एक संभ्रांत से शख्स के लिए ड्राइवर ने गाड़ी का गेट खोला तो उस शख्स के साथ उस की पत्नी जिस की गोद में एक बच्चा था, भी गाड़ी से बाहर निकले | मैं अपने दरवाजे पर जा कर खड़ा हुआ तो लगा कि इस व्यक्ति को पहले भी कहीं देखा है. उस ने आ कर मेरी पत्नी और मेरे पैर छुए |

‘‘सर, मैं अमर…’’ - वह बड़ी श्रद्धा से बोला !

मेरी पत्नी अचंभित सी खड़ी थी. मैं ने बड़े गर्व से उसे सीने से लगा लिया | उस का बेटा मेरी पत्नी की गोद में घर सा अनुभव कर रहा था. मिनी अब भी संशय में थी | अमर अपने साथ ढेर सारे उपहार ले कर आया था | मिनी को उस ने बड़ी आत्मीयता से गले लगाया | मिनी भाई पा कर बड़ी खुश थी |

अमर शादी में एक बड़े भाई की रस्म हर तरह से निभाने में लगा रहा | उस ने न तो कोई बड़ी जिम्मेदारी मुझ पर डाली और न ही मेरे चाहते हुए मुझे एक भी पैसा खर्च करने दिया  | उस के भारत प्रवास के दिन जैसे पंख लगा कर उड़ गए | इस बार अमर जब आस्ट्रेलिया वापस लौटा तो हवाई अड्डे पर उस को विदा करते हुए न केवल मेरी बल्कि मेरी पत्नी, मिनी सभी की आंखें नम थीं |

हवाई जहाज ऊंचा और ऊंचा आकाश को छूने चल दिया और उसी के साथसाथ मेरा विश्वास भी आसमान छू रहा था | मैं अपनी मूर्खता पर एक बार फिर गर्वित था और सोच रहा था कि इस नश्वर संसार को चलाने वाला कोई भगवान नहीं हमारा विश्वास ही है ।

हनुमान का अवतार

श्रीराम की सेवा के लिए शंकरजी ने लिया हनुमान का अवतार

राम से है नेह, स्वर्ण-शैल के समान देह,

ज्ञानियों में अग्रगण्य, गुण के निधान हैं।

महाबलशाली हैं अखण्ड ब्रह्मचारी, यती,

वायु के समान वेग, शौर्य में महान हैं।।

राघव के दूत बन लंक में निशंक गये,

सीता-सुधि लाये, कपि यूथ के प्रधान हैं।

भक्त-प्रतिपाल, क्रूर दानवों के काल-ब्याल,

अंजनी के लाल महावीर हनुमान हैं।।

रुद्रावतार श्रीहनुमान : - श्रीरामावतार के समय ब्रह्माजी ने देवताओं को वानर और भालुओं के रूप में पृथ्वी पर प्रकट होकर श्रीराम की सेवा करने का आदेश दिया था। सभी देवता अपने-अपने अंशों से वानर और भालुओं के रूप में उत्पन्न हुए। सृष्टि के संहारक भगवान रुद्र भी अपने प्रिय श्रीहरि की सेवा करने तथा कठिन कलिकाल में भक्तों की रक्षा करने की इच्छा से पवनदेव के औरस पुत्र और वानरराज केसरी के क्षेत्रज पुत्र हनुमान के रूप में अवतरित हुए।

जेहि शरीर रति राम सों सोइ आदरहिं सुजान।

रुद्रदेह तजि नेहबस बानर भे हनुमान।। (दोहावली १४२)

वायुपुराण में भगवान शिव के हनुमान के रूप में अवतार लेने के सम्बन्ध में कहा गया है–

अंजनीगर्भसम्भूतो हनुमान् पवनात्मज:।

यदा जातो महादेवो हनुमान् सत्यविक्रम:।।

अर्थात्–महादेव सत्यपराक्रमी पवनपुत्र हनुमान के रूप में अंजनी के गर्भ से उत्पन्न हए। स्कन्दपुराण में भी ऐसा ही उल्लेख मिलता है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के मोहिनीस्वरूप पर आसक्त शिवजी के स्खलित तेज को देवताओं ने गौतम ऋषि की पुत्री अंजनी के गर्भ में वायु द्वारा स्थापित कर दिया, जिससे शिव के अंशावतार हनुमानजी प्रकट हुए। अत: हनुमानजी रुद्रावतार माने जाते हैं। हनुमान तन्त्रग्रन्थों में उनका ध्यान, जप, मन्त्र आदि रुद्र रूप में ही किया जाता है। हनुमद् गायत्री में भी उन्हें रुद्र कहा गया है–

‘ॐ वायुपुत्राय विद्महे वज्रांगाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।’

श्रीहनुमानजी की जन्मतिथि : - श्रीहनुमानजी की जन्मतिथि के सम्बन्ध में दो मत हैं। प्रथम मत के अनुसार चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार के दिन शुभ मुहुर्त में भगवान शंकर ने हनुमानजी के रूप में अवतार लिया। जबकि ‘अगस्त्य-संहिता’ के अनुसार कार्तिकमास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को मंगलवार के दिन, स्वाती नक्षत्र में, मेष लग्न की उदयबेला में माता अंजना (अंजनी) के गर्भ से स्वयं शिवजी कपीश्वर हनुमान के रूप में प्रकट हुए।

पुराणों में ऐसा वर्णन मिलता है कि राजा दशरथ द्वारा किए गए पुत्रेष्टि-यज्ञ में हवनकुण्ड से उद्भूत चरु (खीर) का जो भाग कैकेयी को दिया गया था, उसे एक चील झपट कर ले गयी। चील के चंगुल से छूटकर वह चरु तपस्या में लीन वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी की अंजलि में जा गिरा। 

तभी आकाशवाणी द्वारा अंजनी को आदेश मिला कि वह इस चरु को ग्रहण करे, जिससे उसे परम पराक्रमी पुत्र की प्राप्ति होगी। उसी चरु के प्रभाव से हनुमानजी का जन्म हुआ। कैकेयी का चरु जब चील झपट कर ले गयी, तब कौसल्या और सुमित्रा ने अपने हिस्से के चरु में से कैकेयी को दिया। इस प्रकार एक चरु से राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और हनुमानजी प्रकट हुए।

जन्म के कुछ समय बाद बालक हनुमान को भूख से व्याकुल देखकर मां अंजना वन से फल लाने चली गयीं। उस समय सूर्योदय हो रहा था। सूर्य के अरुण बिम्व को फल समझकर बालक हनुमान ने छलांग लगायी और पवन के समान वेग से सूर्यमण्डल में पहुंच गए और सूर्य का भक्षण करना चाहा–

बाल समय रवि भक्षि लियो तब

तीनहुँ लोक भयो अंधियारो।

ताहि सों त्रास भयो जग को,

यह संकट काहु सो जात न टारो।।

देवन आनि करी विनती तब,

छांड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।

को नहिं जानत है जग में प्रभु,

संकटमोचन नाम तिहारो।। (संकटमोचन हनुमानाष्टक)

उस दिन ग्रहणकाल होने से राहु भी सूर्य को ग्रसने के लिए पहुंचा था। हनुमानजी ने फल पकड़ने में उसे बाधा समझकर धक्का दे दिया। घबराकर राहु इन्द्र के पास पहुंचा। सृष्टि-व्यवस्था में विघ्न समझकर इन्द्र ने हनुमानजी पर वज्र से प्रहार कर दिया, जिससे हनुमानजी की बायीं ओर की ठुड्डी (हनु) टेढ़ी हो गयी और पृथ्वी पर गिरकर अचेत हो गए। 

अपने पुत्र पर वज्र के प्रहार से वायुदेव अत्यन्त कुपित हो गए और उन्होंने संसार में अपना संचार बंद कर दिया। वायु ही समस्त जीवों के प्राणों का आधार है, अत: वायु के संचरण के अभाव में संसार में हाहाकार मच गया। सभी जीवों को व्याकुल देखकर पितामह ब्रह्मा उस स्थान पर गए जहां वायुदेव अपने मूर्छित पुत्र को गोद में लिए बैठे थे।

 ब्रह्माजी के हाथ के स्पर्श से हनुमानजी की मूर्च्छा टूट गयी। सभी देवताओं ने उन्हें अस्त्र-शस्त्रों से अवध्यता का वरदान दिया। ब्रह्माजी ने वरदान देते हुए कहा–’वायुदेव! तुम्हारा यह पुत्र शत्रुओं के लिए भयंकर होगा। रावण के साथ युद्ध में इसे कोई जीत नहीं सकेगा। यह श्रीराम की प्रसन्नता प्राप्त करेगा।’

श्रीरामचरित्र को प्रकाश में लाने के लिए हनुमानजी का अवतार : - संसार में ऐसे तो उदाहरण हैं जहां स्वामी ने सेवक को अपने समान कर दिया हो, किन्तु स्वामी ने सेवक को अपने से ऊंचा मानकर सम्मान दिया है, यह केवल श्रीरामचरित्र में ही देखने को मिलता है–

मेरे जियँ प्रभु अस बिसवासा।

रामतें अधिक रामकर दासा।।

श्रीरामचरित्र को प्रकाश में लाने के लिए हनुमानजी का अवतार हुआ। रामायणरूपी महामाला के महारत्न हनुमानजी यदि रामलीला में न हों तो वनवास के आगे की लीला अपूर्ण ही रह जाएगी। भगवान श्रीराम को हनुमान परम प्रिय हैं तो हनुमानजी के रोम-रोम में राम बसते हैं। श्रीरामरक्षास्तोत्र (३०) में हनुमानजी कहते हैं–

माता रामो मत्पिता रामचन्द्र:

स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र:।

सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु-

र्नान्यं जाने नैव जाने न जाने।।

अर्थात्– ’श्रीराम ही मेरे माता, पिता, स्वामी तथा सखा हैं, दयालु श्रीरामचन्द्र ही मेरे सर्वस्व हैं। उनके अतिरिक्त मैं किसी और को जानता ही नहीं।’

प्रभु श्रीराम ने भी हनुमानजी को हृदय से लगाकर कहा–’हनुमान को मैं केवल अपना प्रगाढ़ आलिंगन प्रदान करता हूँ; क्योंकि यही मेरा सर्वस्व है।’श्रीरामजी के द्वार पर हनुमानजी सदैव विराजमान रहते हैं। उनकी आज्ञा के बिना कोई भी रामजी की ड्योढ़ी में प्रवेश नहीं कर सकता–‘राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।’ हनुमानजी श्रीराम के अंग बतलाए गए हैं। इसलिए हनुमानजी की पूजा किए बिना श्रीराम की पूजा पूर्ण फलदायी नहीं होती।

अतुलित बल के धाम हनुमानजी के लिए की गयी तुलसीदासजी की प्रार्थना आज जन-जन का कण्ठमन्त्र बन गयी है–

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं

दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं

रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।। शिव और रुद्र में भेदबुद्धि के कारण लंकादहन : - 

हनुमन्नाटक के एक प्रसंग में रावण मन-ही-मन यह सोचता है कि मेरे दसों सिरों को चढ़ाने से शिवजी तो प्रसन्न हो गए, परन्तु एकादश रुद्र को मैं संतुष्ट न कर सका (हनुमानजी ग्यारहवें रुद्र के अंश माने जाते हैं); क्योंकि मेरे पास ग्यारहवां सिर था ही नहीं। इसी कारण शिवकोप से ही मेरी लंका का दहन हुआ। मैंने शिव और रुद्र में भेद किया, मेरी मति मारी गयी थी जो मैंने ऐसा किया। यही भेदबुद्धि नाश का कारण बनती है। इसलिए साधक को शिवजी और रुद्र में दोनों में अभेदबुद्धि रखनी चाहिए।

हनुमानजी ने लिखा था रामचरित-काव्य : - कहा जाता है कि हनुमानजी ने अपने वज्रनख से पर्वत की शिलाओं परएक रामचरित-काव्य लिखा था। उसे देखकर महर्षि वाल्मीकि को दु:ख हुआकि यदि यह काव्य लोक में प्रचलित हुआ तो मेरे आदिकाव्य का उतना आदर नहीं होगा। वाल्मीकि ऋषि को संतुष्ट करने के लिए हनुमानजी ने वे शिलाएं समुद्र में डाल दीं। सच्चे भक्त में यश, मान, बड़ाई प्राप्त करने की इच्छा नहीं होती, वह तो अपने प्रभु का पावन यशही संसार में गाता है।हनुमान जयन्ती के अवसर उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए शुद्ध घी मिश्रित सिन्दूर से हनुमानजी के विग्रह का श्रृंगार (चोला चढ़ाना), गुड़, भुना चना, भीगा चना, बूंदी व बेसन के लड्डुओं का भोग, सुन्दरकाण्ड और हनुमानचालीसा का पाठ आदि करना चाहिए।

हे हनुमान! महाबलवान, सुजान महा दु:ख कष्ट मेटैया।

ज्ञान को पोषक, भक्त को तोषक, मोह को शोषक बन्ध कटैया।।

अंजनिपूत, श्रीराम को दूत, भगावत भूत जो जीव डटैया।

राम को दास, पूरे सब आस, मेटे भव त्रास, जो रामरटैया।। (श्रीआनन्दलहरीजी महाराज


नारी 



छूटा हुआ किसी को भी अच्छा नहीं लगता

पर इस छूटे हुए को छूट जाने देते हैं

कई लोग,

हां ! मैंने देखा है

इस छूटे हुए को समेट देती है वो 


कभी बेटी बनकर तो कभी बहन बनकर 

कभी  पत्नी बनकर और कभी माँ बनकर 

छूटे हुए को समेटने की कोशिश में रहती है वो


हां मैंने महसूस किया है कई बार

मॉं-बाप का घर छूट जाने पर

अपनी पहचान को गूंथ लेती है

एक नए घर-परिवेश में

सींचती है नई भूमि पर नए रिश्ते

और मायके में छूटे हुए 

उन लाडभरे इतराते रिश्तों की मिठास को

यादों में हौले- हौले पुचकारती है वो।


मुसीबत के फैले काले घने साये में

जब घर-भर का छूट जाता है साहस और धैर्य,

उस समय दौड़- दौडकर बांधती है

घर की  कच्ची हर डोर को

हां !मैंने जान लिया है

इस छूटे हुए को समेट देती है वो 


छूट जाती है उसकी अपनी पहचान

उसकी अपनी उड़ान

उसका मन ,उसका साथ छोड़

जुड़ जाता है उसके घर-बाहर से

सब कुछ छूट जाने पर भी

सैकड़ों कार्यों से,सैकड़ों चिंताओं से

लदी-भरी दौड़ती फिरती है

वो यहाँ से वहाँ ।

हां !मैंने मान लिया है

इस छूटे हुए को समेट देती है वो 

          

—इंदिरा वेद


 

     

हिंदी है मन की भाषा’     

                                   

भारत के मन का भाव है हिंदी 

जान मानस की आवाज़ है हिंदी|

सबको साक्षर बनाती हिंदी 

राष्ट्र का आधार है हिंदी| 

सबसे सुन्दर भाषा  है हिंदी

एकता की अनुपम परंपरा है हिंदी| 

हिंदुस्तान की गौरव गाथा है हिंदी 

साहित्य का असीम सागर है हिंदी| 

हिंदी ही है सबकी असली पहचान, 

दिलाना है इसको विश्व में सम्मान| 


हिंदी ही वो भाषा जो सहर्ष सीखें हम 

हिंदी में ही बोझिल मन का बोझ हल्का करें हम| 

आओ हम सब इसका मान बढ़ाएँ 

हिंदी बोलें व ज्ञान बढ़ाएँ |

भारत की सुसंस्कृति की है यह पहचान 

कभी न करना इसका अपमान| 

हिंदी है वो भाषा जो सहर्ष सीखें हम 

हिंदी में ही बोझिल मन का बोझ हल्का करें हम| 

रेनू दत्ता

 

राहू काल 

 

 राहुकाल -राहुकाल दक्षिण भारत की देन है,दक्षिण भारत में राहु काल में कृत्य करना अच्छा नहीं माना जाता, राहु काल में शुभ कृतियों में वर्जित करने की परंपरा अब हमारे उत्तरी भारत में भी अपनाने लगे हैं राहुकाल प्रतिदिन सूर्यादि वारों में भिन्न-भिन्न समय पर केवल डेढ़ डेढ़ घंटे के लिए घटित होता है |

अधिक जानकरी के लिए संपर्क करे शर्मा जी 9312002527





बसंती चावल 

बसंत पंचमी वाले दिन बसन्ती चावल  खाने का रिवाज है | बनाये लाजबाब बसन्ती चावल | 

चावल बनाने की सामग्री - 1/2  कप  बासमती चावल, 2  चम्मच घी ,1/2 इंच लंबा दालचीनी का टुकड़ा ,2 लॉन्ग,2 इलाइची ,1/3 कप चीनी शक्कर, 10 केसर के धागे ,1/4 टेबलस्पून इलायची का पाउडर,4 बदाम , 4 काजू ,8 किसमिस | 

चावल बनाने की विधि - बासमती चावल को तीन चार बार पानी से धो लें और उन्हें 20 मिनट के लिए पानी में भिगो दें | एक पतीले में मध्यम आंच पर चावल को दो कप पानी के साथ चावल 90% तक उबले | चावल में से पानी  निकालें | | एक भारी तले वाली कढ़ाई में घी डाले ,लोंग ,इलाइची व दालचीनी को हल्का भुने | चावल डाले ,चीनी /शक्कर को धोड़े पानी में मिला कर डाले | दो चम्मच  दूध में केसर भिगो कर डाले |सारा मिला कर हलकी आंच पर पकाए |उपर काजू ,बादाम के छोटे करके व इलाइची पाउडर बुरक दे | तैयार है  बसन्ती चावल |

मिथलेश शर्मा 


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जून माह का पंचांग

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