शनिवार, 25 दिसंबर 2021

पौष मास

 

पौष मास

पौष विक्रमी सम्वत  में एक मास का नाम होता है | विक्रम सवंत् के अनुसार पौष 10 महीना होता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर में दिसम्बर व जनवरी का महीना होता है।पंचाग के अनुसार प्रत्येक मास का अपना महत्व होता है | इस प्रकार पौष मास का भी महत्व है। पौष मास में सूर्य की उपासना का महत्व दिया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक मास किसी न किसी देवता के लिए विशेष माना जाता है।महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित होते है। महीने का बदलना चन्द्र चक्र पर निर्भर करता है, चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर होता है उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के आधार पर रखा जाता है। पौष मास की पूर्णिमा को चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है इसलिए इस मास को पौष का मास कहा जाता है।

पौष मास में सूर्य देव की उपासना उनके भग नाम से करनी चाहिए। पौष मास के भग नाम सूर्य को ईश्वर का ही स्वरूप माना गया है। पौष मास में सूर्य को अर्ध्य देने व इनका उपवास रखने का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है कि इस मास प्रत्येक रविवार व्रत व उपवास रखने और तिल चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है।तांबे के पात्र से जल अर्घ्य करना चाहिए।जल में रोली, लाल पुष्प और अक्षत डालना शुभ होता है।अर्घ्य देते समय "ॐ आदित्याय नमः" का जाप करें। पंचांग के अनुसार पौष माह को  खरमास या मल कहते है | पौष मास का सनातन धर्म में खास महत्व होता है | कहा जाता है कि खरमास में शादी-विवाह, सगाई, मुंडन और भवन निर्माण जैसे मंगल कार्य पूरी तरह से वर्जित माने जाते हैं | मान्यता है कि इस माह में नमक का सेवन कम से कम करना चाहिए। पौष माह में चीनी की बजाए गुड का सेवन करना उत्तम होता है। इसके साथ ही अजवाइन, लौंग और अदरक का सेवन करना लाभकारी होता है। इसके अलावा पौष माह में तेल और घी का ज्यादा प्रयोग करना उत्तम नहीं होता है।इस महीने में की गई साधना लाभकारी मानी जाती है। इसके अलावा इस महीने में गर्म वस्त्रों का दान करना उत्तम माना गया है। इसके अलावा लाल और पीले रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।

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